हिंसा के बीच नदारद यूसुफ पठान, सोशल मीडिया पर चाय की चुस्की लेते हुए तस्वीर ने बढ़ाया विवाद
- Post By Admin on Apr 19 2025

मुर्शिदाबाद : वक्फ अधिनियम में संशोधन को लेकर बीते 11 और 12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद जिले के कई इलाकों में हिंसा भड़क उठी। इस तनावपूर्ण स्थिति में जब तृणमूल कांग्रेस के तमाम सांसद और विधायक मैदान में सक्रिय नजर आए, तब बरहामपुर से सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान कहीं दिखाई नहीं दिए। इससे न सिर्फ जनता, बल्कि पार्टी के अंदर भी असंतोष की लहर दौड़ गई है।
हिंसा के समय यूसुफ पठान की एक तस्वीर ने और भी विवाद को हवा दे दी, जिसमें वे चाय की चुस्की लेते हुए मुस्कुराते नजर आए और पोस्ट में लिखा — "आनंद का आनंद लें।" इस पोस्ट के बाद राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई कि क्या यूसुफ पठान गंभीर मुद्दों से मुंह मोड़ रहे हैं? क्या वे जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी भूमिका को समझने में चूक रहे हैं? मुर्शिदाबाद जिले में तीनों लोकसभा सांसद तृणमूल कांग्रेस से हैं — जंगीपुर से खलीलुर रहमान, मुर्शिदाबाद से अबू ताहिर खान और बरहामपुर से यूसुफ पठान। हिंसा का सबसे अधिक असर जंगीपुर क्षेत्र के सुती, शमसेरगंज और धुलियान इलाकों पर पड़ा। यूसुफ पठान के निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्यक्ष हिंसा नहीं हुई, लेकिन वे आसपास के प्रभावित क्षेत्रों से दूरी बनाए रखे रहे। जबकि बाकी सांसदों और विधायकों ने जमीनी हालात का जायजा लिया और लोगों के बीच जाकर उनका संबल बढ़ाया।
तृणमूल कांग्रेस के ही सांसद अबू ताहिर खान ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यूसुफ पठान की अनुपस्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा — "वह बाहरी व्यक्ति हैं, राजनीति में नए हैं। लेकिन इस तरह दूर रहना लोगों को गलत संदेश दे रहा है। हमारा दायित्व सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित नहीं है। हम सभी को मिलकर जनता के साथ खड़ा होना चाहिए।" पार्टी के भीतर यह भी चर्चा है कि यूसुफ पठान की निष्क्रियता से पार्टी की साख को नुकसान पहुंच सकता है, खासकर तब जब पूरा राज्य चुनावी मोड में है। विपक्ष पहले ही तृणमूल को बाहरी चेहरों को टिकट देने पर घेर चुका है, और अब यूसुफ पठान के रवैये ने इस आलोचना को और हवा दे दी है। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि यूसुफ पठान को कम से कम हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा कर संवेदना जतानी चाहिए थी। इससे यह विश्वास कायम रहता कि वे सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि असली जनप्रतिनिधि हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यूसुफ पठान समय रहते अपने व्यवहार में बदलाव लाएंगे या पार्टी नेतृत्व को उनके खिलाफ कोई सख्त कदम उठाना पड़ेगा? फिलहाल तो सोशल मीडिया पर चाय की चुस्की उनकी राजनीतिक छवि पर भारी पड़ती दिख रही है।