बिहार की महिलाओं ने बनाई शराब की बोतल से चूड़ियाँ
- Post By Admin on Sep 21 2024

पटना : बिहार की महिलाओं ने अपनी कला के जरिए न केवल अपनी पहचान बनाई है बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त हो रही हैं। चाहे वह शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाना हो, बांस की शिल्पकला हो या दक्षिण भारतीय तंजौर पेंटिंग, इन महिलाओं ने अपने कठिन हालातों को पीछे छोड़कर नए अवसरों का सृजन किया है। इनकी कला की तारीफ बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन भी कर चुके हैं, जिन्होंने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो के दौरान बिहार की ममता देवी की बांस से बनी कलाकृति की सराहना की थी।
लाजवंती देवी : सिक्की कला से आत्मनिर्भरता की ओर
गोपालगंज की लाजवंती देवी की कहानी संघर्ष और सफलता का प्रतीक है। बिहार में शराबबंदी के बाद, वह और उनके परिवार को बड़ी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पहले वे और उनके पति शराब बेचते थे, लेकिन शराबबंदी के बाद जीविका से जुड़कर उन्होंने अपनी मां से सीखी हुई सिक्की कला को रोजगार का जरिया बनाया। अब वह सिक्की से हैंडक्राफ्टेड उत्पाद जैसे दउरी, फूल डाली, हॉटपॉट, चूड़ियां और हैंडबैग बनाती हैं। लाजवंती देवी खुद नदियों और तालाबों के किनारे से सिक्की काटकर लाती हैं, उसे सूखाकर विभिन्न रंगों में रंगती हैं, और फिर अद्वितीय कृतियां तैयार करती हैं। उनकी यह कला अब उनके परिवार का आर्थिक आधार बन चुकी है।
ममता देवी : बांस की शिल्पकला में निपुण
समस्तीपुर की ममता देवी भी अपनी कला के माध्यम से एक उद्यमी के रूप में स्थापित हो चुकी हैं। ममता देवी और उनके पति रामचंद्र राम मिलकर बांस की शिल्पकला से उत्पाद तैयार करते हैं। उनकी कला की तारीफ अमिताभ बच्चन ने भी की है। एक मेले में वे करीब 2 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। बांस की पट्टियों से डिजाइनिंग कर, उन्हें फेवीकॉल की मदद से चिपकाया जाता है, और फिर वार्निश पेंट किया जाता है ताकि उत्पाद टिकाऊ और आकर्षक बने। ममता देवी और उनके पति बांस का उपयोग करते हुए विभिन्न उत्पादों की रेंज 25 रुपये से 1500 रुपये तक में बेचते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है |
संगीता देवी : शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने का अनोखा सफर
रोहतास की संगीता देवी की कहानी प्रेरणादायक है। उनके पति की मौत शराब पीने के कारण हुई, और उन पर अपने पांच बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। संगीता देवी ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया और उन्हीं शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने का काम शुरू किया। 2020 में जीविका से जुड़ने के बाद, वह शराब की बोतलों को मशीन से तोड़कर, उन्हें भट्टी में गलाकर, चूड़ियों का आकार देती हैं। इन चूड़ियों को केमिकल मिलाकर रंगा जाता है और फिर सीप और मोती से सजाया जाता है। यह काम उन्हें एक आर्थिक स्वतंत्रता की राह पर लेकर गया है, और आज वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं।
कृष्णा देवी : तंजौर पेंटिंग से नया जीवन
शेखपुरा की कृष्णा देवी के लिए तंजौर पेंटिंग वरदान साबित हुई। चेन्नई में अपने पति के साथ रहते हुए उन्होंने यह कला सीखी, और अब वह इसे बिहार में आगे बढ़ा रही हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनके पति का रोजगार छिन गया, लेकिन कृष्णा देवी ने अपनी कला को पेशे में तब्दील कर लिया। तंजौर पेंटिंग में गोल्ड फॉयल और साउथ की चित्रकला शैली का इस्तेमाल कर वह भगवान के चित्र बनाती हैं। छोटी पेंटिंग बनाने में उन्हें 15 दिन लगते हैं, जबकि बड़ी पेंटिंग में 6 महीने तक का समय लग सकता है। उनकी पेंटिंग्स की कीमत 6 हजार रुपये से लेकर 6 लाख रुपये तक होती है।
महिलाओं का संघर्ष और सशक्तिकरण
ये कहानियाँ बिहार की महिलाओं के संघर्ष, हिम्मत और सशक्तिकरण की मिसाल हैं। जीविका जैसे कार्यक्रमों से जुड़कर, उन्होंने अपनी कला को न केवल एक नए मुकाम पर पहुंचाया है, बल्कि अपने परिवार और समुदाय को भी प्रेरित किया है। चाहे वह सिक्की कला हो, बांस शिल्पकला या फिर शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाना, इन महिलाओं ने दिखा दिया है कि मुश्किल हालातों में भी नए अवसरों की तलाश की जा सकती है।
बिहार की ये महिलाएं आज समाज में एक मिसाल पेश कर रही हैं कि कड़ी मेहनत, हुनर और आत्मविश्वास से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।