बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित, डॉ. रागी ने की शिरकत

  • Post By Admin on Feb 18 2025
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित, डॉ. रागी ने की शिरकत

मुजफ्फरपुर : बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग और आईसीएचआर के संयुक्त तत्वावधान में "भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का उद्घाटन सीनेट हॉल में हुआ, जहां दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. संगीत कुमार रागी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। 

डॉ. रागी ने अपने उद्घाटन भाषण में पश्चिमी सोच को नकारते हुए कहा कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था, यह अवधारणा गलत है। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार अमेरिकी राष्ट्र निर्माण के दौरान कैथोलिक धर्म का सहारा लिया गया और आज यूरोपीय देश अपनी राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए कठोर वीसा नियम लागू कर रहे हैं। डॉ. रागी ने भारतीय राष्ट्रवाद के दर्शन को स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) और महात्मा गांधी के विचारों में प्रत्यक्ष रूप से देखा और कहा कि यह विचार वेदों और उपनिषदों की ऋचाओं में भी समाहित हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, सेंट्रल यूनिवर्सिटी मोतिहारी के कुलपति डॉ. संजय श्रीवास्तव ने भारतीय राष्ट्रवाद की प्राचीनता को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह विचारधारा भारत के सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ी हुई है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दिनेश चंद्र राय ने कहा कि भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति है, जो पूरे विश्व को अपने विचारों से आच्छादित करती है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है। 

विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) नीलम कुमारी ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत की संस्कृति और जीवन मूल्यों को फैलाने का माध्यम है। भारत की संस्कृति वैश्विक एकता को बढ़ावा देती है। 

इस कार्यक्रम में प्रो. जितेन्द्र नारायण, प्रो. विकास नारायण उपाध्याय, प्रो. अरुण कुमार सिंह, डॉ. दिलीप कुमार, डॉ. नित्यानंद शर्मा और डॉ. राजेश्वर प्रसाद सिंह जैसे राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ भी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय के सभी प्रमुख पदाधिकारी भी कार्यक्रम में शामिल हुए। 

कार्यक्रम के दौरान, विभाग की ओर से एक स्मारिका का भी प्रकाशन किया गया, जिसमें 90 शोधार्थियों द्वारा प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों को संग्रहित किया गया।