महर्षि दयानंद सरस्वती की 201वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई

  • Post By Admin on Feb 23 2025
महर्षि दयानंद सरस्वती की 201वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई

मुजफ्फरपुर: फाल्गुन कृष्णपक्ष दशमी, संवत् 2081 के अवसर पर जवाहरलाल रोड, घिरनी पोखर स्थित आर्य समाज मंदिर में आर्य समाज के संस्थापक, महान समाज सुधारक और युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती की 201वीं जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।

कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक यज्ञ से हुई, जिसमें उपस्थित आर्य नर-नारियों ने विश्व कल्याणार्थ मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां अर्पित कीं। इसके उपरांत बिहार राज्य आर्य प्रतिनिधि सभा के उपप्रधान और आर्य समाज मुजफ्फरपुर के मंत्री प्रो. व्यास नंदन शास्त्री वैदिक की अध्यक्षता में "महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन-दर्शन" विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. शास्त्री ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती 19वीं सदी के महानायक थे। उनके आदर्श विचार और त्रैतवाद का सिद्धांत वेदों पर आधारित थे। उन्होंने वेदों को ईश्वरीय वाणी और सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत बताया। महर्षि दयानंद ने वेदों की ओर लौटने का संदेश दिया और भारतीय समाज को अंधविश्वास और पाखंड से मुक्त करने का संकल्प लिया।

महर्षि दयानंद का जीवन और योगदान

सन् 1824 में गुजरात के काठियावाड़ जिले के टंकारा गांव में जन्मे मूलशंकर आगे चलकर संन्यासी बने और दयानंद सरस्वती के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने मथुरा में अपने गुरु स्वामी विरजानंद जी से वेद, व्याकरण और आर्ष विद्याओं का अध्ययन किया और गुरु के आदेशानुसार अपना जीवन वेद प्रचार, नारी उद्धार, समाज सुधार और राष्ट्र सेवा को समर्पित कर दिया। महर्षि दयानंद ने नारी शिक्षा को बढ़ावा देते हुए महिलाओं को वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। उन्होंने विधवा विवाह को प्रोत्साहित कर समाज से कुप्रथाओं को दूर करने का कार्य किया। पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए उन्होंने 'सत्यार्थ प्रकाश', 'ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका' और 'संस्कार विधि' जैसे ग्रंथ लिखकर समाज को दिशा दिखाई।उन्होंने "स्वराज" शब्द का प्रथम उद्घोष किया और भारतीय ज्ञान परंपरा की रक्षा के लिए गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की। प्रो. शास्त्री ने कहा कि आज के समाज को महर्षि दयानंद के विचारों को अपनाना चाहिए, तभी वैदिक संस्कृति, समाज और राष्ट्र का संपूर्ण विकास संभव होगा।

संगोष्ठी में वक्ताओं के विचार

इस अवसर पर रवि भूषण आर्य, आचार्य कमलेश दिव्यदर्शी, प्रमोद कुमार आर्य, धर्मशीला आर्या और अनिला आर्या सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने महर्षि दयानंद सरस्वती के समाज सुधार कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वेदों के प्रचार-प्रसार से ही राष्ट्र की उन्नति संभव है।

कार्यक्रम के दौरान मनोहर भजनों की प्रस्तुति से माहौल भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम में राजीव रंजन आर्य, भागवत प्रसाद आर्य, डॉ. विमलेश्वर प्रसाद विमल, सतीश चंद्र प्रसाद, अरुण कुमार आर्य, अनिल कुमार मेहता, सुनील कुमार अधिवक्ता, मालती देवी और नरेंद्र तपीले सहित कई गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में महर्षि दयानंद सरस्वती के आदर्शों को आत्मसात करने और समाज सुधार के उनके अभियान को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।