दुर्गम चोटियों पर बसे पांच धाम : जहां साक्षात विराजते हैं भोलेनाथ, आस्था-रहस्य और रोमांच का अद्भुत संगम
- Post By Admin on Aug 04 2025

नई दिल्ली : सावन का पवित्र महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसी अवसर पर हम आपको ले चलते हैं उन पाँच दिव्य धामों की ओर, जिन्हें ‘पंच कैलाश’ कहा जाता है। ये ऐसे धाम हैं जहां शिव के साक्षात स्वरूप विराजमान माने जाते हैं। दुर्गम चोटियों पर बसे ये तीर्थ स्थल न केवल आस्था और अध्यात्म का केंद्र हैं, बल्कि प्रकृति की अद्भुत लीलाओं और रहस्यमय कथाओं से भी परिपूर्ण हैं।
कैलाश मानसरोवर (तिब्बत)
6,638 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत को शिव का वास्तविक निवास माना जाता है। इसे हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में समान रूप से पवित्र माना गया है। ‘कोरा’ नामक परिक्रमा और मानसरोवर झील में स्नान को मोक्षदायक बताया गया है। भारत सरकार हर वर्ष जून से सितंबर तक इसकी यात्रा दो मार्गों—लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम)—से कराती है।
आदि कैलाश (उत्तराखंड)
5,945 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ‘छोटा कैलाश’ के नाम से प्रसिद्ध यह धाम पिथौरागढ़ जिले में है। मान्यता है कि यहीं शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। पास ही पार्वती सरोवर और गौरी कुंड स्थित हैं। यह तीर्थ यात्रा रोमांच और भक्ति का मिलाजुला अनुभव देती है।
श्रीखंड महादेव (हिमाचल प्रदेश)
5,227 मीटर की ऊंचाई पर कुल्लू जिले में स्थित यह धाम भगवान शिव के आत्मरूप में प्रतिष्ठित है। यहां 75 फुट ऊँचा स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। पौराणिक कथा के अनुसार भस्मासुर से बचने के लिए शिव ने यहां शरण ली थी। यह यात्रा जौन गांव से शुरू होती है और बेहद चुनौतीपूर्ण मानी जाती है।
किन्नौर कैलाश (हिमाचल प्रदेश)
6,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शिखर किन्नौर जिले में सतलुज नदी के पास है। यहां शिवलिंग दिन में कई बार रंग बदलता है, जिसे अलौकिक चमत्कार माना जाता है। बौद्ध और हिंदू श्रद्धालु समान श्रद्धा से यहां आते हैं। पार्वती कुंड और आसपास के दृश्य भक्तों को अध्यात्म से जोड़ते हैं।
मणिमहेश कैलाश (हिमाचल प्रदेश)
चंबा जिले में 5,653 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह धाम ‘चंबा कैलाश’ के नाम से प्रसिद्ध है। शिव ने यहां कठोर तप किया था। मणिमहेश झील के किनारे स्थित यह धाम आज भी चमत्कारों और गूढ़ रहस्यों से घिरा है। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति इस शिखर पर नहीं चढ़ सका है, क्योंकि यह स्वयं महादेव का आरक्षित स्थान है।
अविश्वसनीय किंवदंतियाँ
कहते हैं एक बार एक गद्दी (चरवाहा) अपने भेड़ों के झुंड के साथ कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश में पत्थर बन गया। ऐसी ही एक कथा एक सांप के बारे में भी है। मान्यता है कि जब तक शिव प्रसन्न न हों, तब तक कोई उनकी चोटी को नहीं देख सकता।
इन पंच कैलाश की यात्रा न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के उस आध्यात्मिक पक्ष को भी उजागर करती है, जहां प्रकृति, पुराण और परमेश्वर एक सूत्र में बंधे हुए हैं।