संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत

  • Post By Admin on Sep 25 2024
संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत

पटना : जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए कई माताओं ने संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास शुरू कर दिया है। यह व्रत भादोकृष्ण उदयव्यापनी अष्टमी तिथि को किया जाता है, जिसे विशेष रूप से संतान की सुरक्षा और कल्याण के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। माताओं के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण उपासना का दिन होता है। इस व्रत को जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें माताएं 24 घंटे तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए कठोर तप करती हैं, जिसे विशेष रूप से संतान की सुरक्षा और कल्याण के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है।

इस व्रत का पालन करने वाली माताएं संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुखद भविष्य की कामना करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान पर आने वाले सभी संकट टल जाते हैं और उन्हें भगवान की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस उपवास का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पितृपक्ष के मध्य में आता है, जब पितरों की विशेष कृपा प्राप्त होती है।  

इस व्रत से जुड़े कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, माना जाता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रभाव से लव और कुश नाम के दो भाइयों का जन्म हुआ था। इसके साथ ही, जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। यही आगे चलकर राज परीक्षित बने। तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जीवित्पुत्रिका  व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।  

पं. जय किशोर मिश्र ने बताया कि इस व्रत में शुद्ध आचरण और वैष्णव विचारधारा का पालन करना अनिवार्य होता है। महिलाओं के लिए यह व्रत एक महाअनुष्ठान की तरह होता है, जिसमें वे अपने परिवार और संतान की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस व्रत के नियम छठ और एकादशी व्रत की तरह कठोर होते हैं, जहां उपासक को विशेष नियमों का पालन करना पड़ता हैं। 

इस दिन विकासदायक और उर्जादायक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिससे माताओं और उनके परिवार को विशेष लाभ प्राप्त होता है।