विश्व रंगमंच की आधारशिला एवं उनके बदलते स्वरुप

  • Post By Admin on Mar 27 2024
विश्व रंगमंच की आधारशिला एवं उनके बदलते स्वरुप

आज ही के दिन पूरा विश्व 'विश्व रंग मंच दिवस' मनाता है.विश्व के सभी चर्चित रंगमंच एवं रंगकर्मी आज विभिन्न जगहों पर एकत्रित होकर नाट्य जगत के सबसे बड़े उत्सव को बड़े धूम धाम से मनाते है. विश्वभर में ''थिएटर'' के रूप में रंगमंच का शुरुआत किया गया था. किसी भी कृति को दर्शाने एवं उनके जीवतं तथ्यों को नाटक द्वारा दिखाना ही रंगमंच का मूल उद्देस्य है.भारत में भी रंगमंच का विस्तार बड़े पैमाने पर है. रंगमंच जो अपने आप में नाट्य कला को समेटे रखता है.यह थिएटर के स्वरुप में अपनी आधारशिला को दिखलाता है. रंगमंच जो कला के रूप में ''थिएटर'' के महत्व को बढ़ाने और सरकारों, राजनेताओं एवं संस्थानों के कार्यों को दिखाने और उनके चेतावनी का सर्वोत्तम माधयम माना जाता है. विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यट द्वारा की गयी थी. हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में कला के क्षेत्र में रंगमंच को बढ़ावा देने और लोगों को रंगमंच के सभी क्षेत्रों के मूल्यों से अवगत कराना है. यह दिन उन लोगों के लिए उत्सव का दिन होता है जो  ''थिएटर'' के मूल्य और महत्व को देख सकते है. रंगमंच सरकारों राजनेताओं और संस्थानों को उनके कार्यों के प्रति जागरूक करने का कार्य करती है. दुनिया के हर कोने में रंगमंच अपने वृहत स्वरुप के साथ लोगों को कला के इस अद्भुत रूपों से अवगत कराती है. इस दिवस का एक महत्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्टीय रंगमंच सन्देश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच और शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है. वर्ष 2002 में यह सन्देश भारत के प्रसिद्ध रंग कर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था.

भारत में भी इसका इतिहास वैभवशाली रहा है. भारतीय फिल्म जगत का शुरुआत भी रंग मंच से ही हुआ है. यहाँ के पारौणिक ग्रंथो में दिए गये कहानियों को भी नाट्य के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया.नाट्य कला का विकास सर्व प्रथम भारत के वेदों में लिखे गए तथ्यों के आधार पर ही किया गया था. ऋग्वेद के कतिपय सूत्र , यमी  और उर्वशी और विभिन्न संवादों को नाटक के रूपों में दिखलाया गया. नाट्य, नाटक अर्थात रंगमंच का उदय संवादों को जीवंत रूप में दिखाना उनके प्रेरणाओं पर निर्भर करता है.रंग मंच की इस कड़ी में कालिदास की मेघदूतम भी अपनी अमिट छाप छोड़ती है.मेघदूतम भी एक नाट्य शैली के रूप में विख्यात हुई.रंग मंच किसी भी कहानियों ,पात्रों एवं उनके स्वरुप को नाट्य के द्वारा दिखाने का माध्यम है.