छोटी - छोटी ईमानदारी !
- Post By Admin on Jan 06 2025

बड़ी-बड़ी बेइमानी के राजमहल तक पहुंचने का रास्ता छोटी-छोटी ईमानदारी की गलियों से होकर गुजरता है । त्रेता हो, द्वापर हो या कलयुग हो, तब भी वही बात थी, अब भी वही है। रावण को भी जानकी-हरण से पूर्व साधू वेश धरना पड़ा। दुर्योधन द्वारा इन्द्रप्रस्थ वाली बड़ी बेइमानी से पूर्व तमाम तरह की छोटी-छोटी ईमानदारी करनी पड़ी। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो इस बात की ही पुष्टि करते हैं कि जब तक छोटी-छोटी ईमानदारी का ट्यूशन नहीं लोगे, लंबा हाथ साफ नहीं कर पाओगे। इन दिनों बड़ी-बड़ी बेइमानी के सिंहासन में इन्हीं छोटी-छोटी ईमानदारी के कील ठुके होते हैं।
एक 'इंटरनेशनल बालक' है ! उसके पुरखों ने जो किया, वह भी वही करने की कोशिश में अपने कुरते की जेब को फाड़कर, फिर उसे फटा हुआ बतलाने के लिए उसमें से अपना पंजा निकालकर बार-बार दिखा रहा है, ताकि उसके पंजे के फेर में पड़ने वाली जनता को वह अंगूठा दिखा सके, किन्तु उसकी यह छोटी-सी ईमानदारी हस्तिनापुर के 'जुगलजोरी' की 'अपडेटेड' 'तीन सौ सत्तर' जैसी ईमानदारी के सामने 'आउटडेटेड' साबित हुई। "भाइयों एवं बहनों" वाली ईमानदारी के सामने 'मां-बहन' वाली ईमानदारी पानी-पानी हो-हो कर पानी भरने लगती है। परिणामत: अब वह कुरते वाली ईमानदारी से 'छड़पकर' टी-शर्ट वाली ईमानदारी पर आ गया है । आगे का मामला देखना अभी बाकी है क्योंकि उसका मामला तत्काल बनता हुआ दिख नहीं रहा !
कुछ दिन पहले एक सफेद लुंगीधारी साउथ वाले चचा ने फ्लैट की बालकनी में छोटी-छोटी ईमानदारी के गमले में 'बैगन' उगा लिए! दुर्भाग्यवश बैंगन का साइज़ इतना बड़ा हो गया कि सीबीआई उनकी दीवार फांदकर उन्हें सीधे ले गई श्रीकृष्ण जन्मभूमि! अब वे वहीं कई 'स्वनामधन्य' अनाम बच्चों के 'बापुओं' के साथ 'दहल कट' से टाइम पास कर रहे हैं ।
हस्तिनापुर के एक 'मफलरधारी' खांसी वाले 'सुपरसोनिक' साब जी ने तो अपने महाराष्ट्रीयन 'बापू' के साथ छोटी-छोटी ईमानदारी की ऐसी 'खांसी' की कि अरबों के आवास में करोड़ों का बाथरूम, करोड़ों के बाथरूम में लाखों के बेसिन, लाखों के बेसिन में हजारों का नल और उसी नल के नीचे 'नल-दमयंती' की अद्भुत 'कथा-कहानी' ! हालांकि भूल बस इतनी सी हो गयी कि छोटी-छोटी ईमानदारी करते-करते 'खांसीवश' जल्दी में टाप गियर लगा दिए। दरअसल उनके एक कवि मित्र ने उनको 'मधुशाला' कुछ इस तरह सुनाया कि 'सोमरस' के फेर में पड़ गए ! परिणामत: अपने 'उपमित्र' के साथ पहुंच गए 'आसाराम बापू' के दर्शन करने जहां राधे मां के भी दर्शन होने लगे !
यह सर्वविदित है कि छोटी-छोटी ईमानदारी की जन्मस्थली मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ही है जिसने संपूर्ण विश्व को लोकतंत्र के साथ बुद्ध भी दिया। चूंकि इसने विश्व को बुद्ध दिया, यही कारण है कि यहां उड़ती चिड़िया को भी बुद्धू बनाते हुए हल्दी लगाने के साथ-साथ, स्कूटी पर भैंसा ढोने की महाक्रिया संपादित कर दी जाती है ।
इन दिनों आचार्य चाणक्य और आर्यभट्ट की इसी पावन भूमि पर भी उनके समर्थ उत्तराधिकारी अटेंडेंस की छोटी-छोटी ईमानदारी के रास्ते 'नीचे' पड़ी शिक्षा को 'ऊपर' पहुंचाने का महाप्रयास संपादित कर रहे हैं। 'कुछ' तो, आर्यभट्ट की इस पावन धरा पर अवस्थित गुरुकुल के कोने-कोने में 'खगोलीय परिघटना' के अद्भुत दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए 'वायरल वीडियो' में लीलाएं संपादित कर रहे हैं और कुछ लघु 'डीजे' द्वारा इस देश के भविष्य निर्माण के क्रम में उनके भावनात्मक समुत्थान की शिक्षा संपादित कर रहे हैं। हालांकि कुछ 'प्रभारी' भी छोटी-छोटी ईमानदारी की इन्हीं गलियों से गुजरते हुए 'बड़े-बड़े' विकास के 'कीर्तिमान' स्थापित कर चुके है, कुछ कर रहे हैं और कुछ करने को बेचैन होते हुए अपनी अपनी बारी का इंतजार करते हुए ईमानदारी की माला जप रहे हैं। हालांकि यह स्पष्ट होना बाकी है कि उनके द्वारा अधिक विकास किसका हुआ? शिक्षा का या......??
डॉ. सुधांशु कुमार
लेखक स्तंभकार, व्यंग्यकार और शिक्षाविद हैं।