दुकान दउड़ी

  • Post By Admin on Dec 07 2024
दुकान दउड़ी

तमाम चीजों की तरह 'दुकान दउड़ी' भी तरह-तरह की होती हैं। तरह -तरह की 'दुकान दउड़ी' तरह-तरह के लोग तरह-तरह से चलाते हैं। कुछ दुकानें स्वयं चलती हैं, कुछ चलायी जाती हैं और कुछ चलानी पड़ती हैं। कुछ गोचर होती हैं,  कुछ अगोचर! अगोचर दिखाई तो नहीं देती, किंतु होती अवश्य हैं और उसमें बिना पूंजी लगाए ही चांदी-ही चांदी! इस दुकान दउड़ी को वही चला सकते है, जिनकी कुंडली के सप्तम भाव में वृहस्पति विद्यमान होते हैं। अत: इसके लिए ढंग से पढ़ाई करनी पड़ती है। अक्सर अगोचर 'दुकान दउड़ी' का कनेक्शन 'ऊपर' तक होता है! परमसत्ता तक!!

सच तो यह है कि आज हमारी पैदाईश ही दुकान में होने लगी है। कभी हास्पिटल में भी हुआ करती थीं! पैदा होते ही हम पर दुकान का कब्जा!! फिर जैसे-जैसे हमारा 'काग्नेटिव डेवलपमेंट' होता जाता है वैसे - वैसे हमारी दुकानदारी बुद्धि भी खुलने लगती है। 

फिर क्या, जिसकी जैसी बुद्धि, उसकी वैसी दुकान 'दउड़ी'। कोई 'दउड़ी' में दुकान चला रहा है तो कोई दुकान में 'दउड़ी' बेच रहा है। तब दुकान के अंतर्गत ही तमाम तरह की जैविक क्रियाएं घटित होने लगती हैं। अत: अपडेट यह है कि जीवन नश्वर, 'दुकान दउड़ी' ही शाश्वत है क्योंकि 'कलिकाल' में  पृथ्वीलोक पर 'दुकान दउड़ी' की ही महादशा चल रही है। ग्रह नक्षत्र भी अब 'दुकान' के अधीन ही भर-भर 'दउड़ी' अपना फल दे रहे हैं!  अत: जितनी बड़ी दुकान, उतनी बड़ी पढ़ाई और जितनी बड़ी पढ़ाई, उतनी बड़ी 'दुकान दउड़ी'!

एक बड़े 'दुकानदार' के अधीन 'दुकान' में 'दुकान दउड़ी' पर शोध कर चुके एक शोधार्थी ने अपनी 'हाइपोथिसिसि' में लिखा कि छोटे-छोटे चोर अदालतों में फंस जाते, जेलों में संड़ते हैं ! बड़े-बड़े चोर का इतिहास लिखा जाता है। नेपोलियन हो, हिटलर हो, स्टालिन,  सिकंदर, तैमूरलंग, बाबर, अकबर, औरंगजेब, या अशोक हो ! ऊपर-ऊपर उनके तौर तरीके जैसे भी हों, 'महाबड़का' चोर हैं ! उनसे बड़े लूटेरे खोजने मुश्किल हैं किंतु उनकी लूट इतनी बड़ी है कि लूट जैसी मालूम नहीं पड़ती, सम्राट मालूम पड़ते हैं। बड़का डकैत हैं! उनसे बड़े हत्यारे खोजने मुश्किल हैं। एच.सी.वेल्स ने यूं ही नहीं लिखा है कि "अगर तुम एकाध हत्या करो तो मुश्किल में पड़ोगे। अगर तुम लाखों हत्याएं करो तो इतिहास तुम्हारा गुणगान करेगा। इस जगत में छोटा फंसता है, बड़ा बच जाता है!" मतलब जितनी बड़ी 'दुकान दउड़ी, उतना ही सेफ। आज जो भी अपवाद स्वरूप एकाध बड़का चोर को छोड़ दिया जाए तो निन्यानवे प्रतिशत छोटे-छोटे चोर से जेल भरे पड़े हैं। उन्होंने ढंग से पढ़ाई की होती, तो जेलों के मेनटेनेंस पर सरकार का इतना रुपया नहीं खर्च होता, जितना अभी हो रहा है और यह सब यूं ही नहीं हो जाता। जेल नहीं जाने के लिए बड़ी-बड़ी पढ़ाई करनी पड़ती है! दिन-रात माथा खपाना पड़ता है, सवेरे उठकर देर रात तक किताबों पड़ आंखें गड़ानी पड़ती हैं!  कोचिंग, पीटी, मेन्स, साक्षात्कार, फिर सिंगल बेंच, डबल बेंच, सुप्रीम कोर्ट आदि की वैतरणी पार करने के बाद 'दुकान दउड़ी' नामक मोक्ष की प्राप्ति होती है  वरना पूरी जिंदगी खेत में पसीना बहाना पड़ सकता है। 

 भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को यह कहना भूल गए थे कि 'कलियुग' में पढ़ाई ही मोक्ष का द्वार होगी। बड़े-बड़े चोरों के लिए भी पढ़ाई 'कंपल्सरी' होगी, अन्यथा उसकी 'दुकान दउड़ी' नहीं चल सकेगी। बिना पढ़ाई के चोरी करने पर कारागृह दर्शन निश्चित है। पढ़ाई के बल पर कलिकाल के चोर वातानुकूलित कक्ष से ही अपने साइबर-फ्राड के साथ-साथ अन्य प्रकार की भी  चौर्यक्रिया संपादित कर सकेंगे। तब साइकिल की क्षमता में 'चोर' वातानुकूलित कक्ष से कार भी मेनटेन कर सकेंगे!!

लेखक, शिक्षाविद, स्तंभकार एवं व्यंग्यकार हैं

डॉ. सुधांशु कुमार