होली के मौसम में गजटेड की ग्रहदशा

  • Post By Admin on Mar 27 2024
होली के मौसम में गजटेड की ग्रहदशा

कल मार्च क्लोजिंग का 'हिसाब किताब' लगाते-लगाते ज्यों ही आंख लगी, वीणा-हीन सूट-बूट 'करिया' चश्मा-धारी नारद जी टपक पड़े। होली की छुट्टी रद्द होने के कारण मिजाज यूं ही खट्टा था, उसमें उनके 'करिया चश्मा' के साथ ब्लू फूल पैंट, व्हाइट शर्ट और चम-चम ब्लैक 'शू' वाले अत्याधुनिक लुक ने मानो आंख में मिर्ची डाल दी।

मैंने बेचैनी से आंख 'कोंचियाते' हुए पूछ ही लिया - देवर्षि यह क्या? आपकी वीणा कहां गयी और चश्मा कब चढ़ा ? उसमें भी करिया !  ऐसा क्यों प्रभु ? देवर्षि ने 'नारायण नारायण' से अपनी बात का फीता काटते हुए कहा -  बच्चा ! होली का टाइम है , इसलिए बिहार में 'टपने' से पहले यह लुक अत्यावश्यक था !! चूंकि यहां का बच्चा सब होली में गोबर-माटी लगाता कम, कोंचता 'जादा' है,  इसलिए मजबूरी थी इस लुक की !! उनके उत्तर से असंतुष्ट होते हुए मैंने वीणा हीन हाथ की तरफ देखा,  देवर्षि समझ गए , कहा-"  उसे हिडेन कर दिया है  ताकि होली में 'होम डिलिवरी ' के महाप्रभाव से प्रभावित होकर यहां के भक्त अपनी भक्ति भाव से 'बाल्व' जलाने के लिए उसके तार में 'टोंका' न फंसा दे ! जहां तक इस लुक का मामला है, तो इन दिनों इसका यहां  कुछ अलग ही क्रेज है, इसलिए इसे धारण कर लिया जिससे होली के हुड़दंग में मेरी देह पर कोई गोबर माटी न फेंक दें और करिया चश्मा का सबसे बड़ा एडवांटेज है कि इससे सामने वाले को पता नहीं चलता कि हम देखते किधर है। चूंकि यह गजटेड वाला लुक है, इसलिए डिग्निटी मेनटेन करने के लिए करिया चश्मा 'जादा' ठीक रहता है। होली के टाइम में 'यदि' नजर 'कहीं' कुछ अधिक देर तक ठहर भी जाए तो गजटेड वाली गंभीरता मेनटेन रहे। बूझे बात? देवर्षि के मुंह से ऐसी बातें सुनकर कुछ आश्चर्य के भाव मन में तो आए लेकिन होली के मौसम के कारण उनकी मन: स्थिति मैं समझ रहा था।

हालांकि जिस तरह देवर्षि मेरे बाकी प्रश्न का जवाब बिना पूछे ही दिए जा रहे थे उससे एक प्रश्न और उभर रहा था कि वह हमारे मूल प्रश्न का जवाब क्यों नहीं दे रहे ? यह सोचते हुए कि हो सकता है कि होली के हुड़दंग के कारण उनके माइंड से यह प्रश्न 'स्लिप' कर गया होगा, मैंने पूछ ही लिया - 'हे प्रभु , हे दीनबंधु-जगन्नाथ के मीडिया प्रभारी ! यदि आपके पास कोई लेटेस्ट इन्फार्मेशन है तो कृपया बताएं कि  इन दिनों  'बिहार शिक्षा सेवा' के प्रभारी प्राचार्यों के साथ-साथ अन्य पदाधिकारियों की ग्रहदशा कैसी चल रही है ? 

देवर्षि हमारी बेचैनी को समझते हुए मन ही मन कुछ कैलकुलेट करने के उपरांत बोले -"इन दिनों 'बिहार शिक्षा सेवा' की कुंडली के आठवें घर में केतु का प्रभाव है, जिससे चुनौतीपूर्ण स्थिति बनी हुई है। इससे अचानक स्थान परिवर्तन और यहां तक ​​कि मृत्यु और पुनर्जन्म से संबंधित स्थिति भी आ सकती है । केतु की यह दशा विरासत, वित्त और रिश्तों के 'माइलेज' में मुसीबत लाती है। सप्तम भाव में राहु के प्रभाव के कारण उनके कार्य स्थल पर झंझट, बात-बात पर वेतन-कटौती, वेतन स्थगन, स्पष्टीकरण, मालमुद्रा के प्रति अनावश्यक आकर्षण, एक दूसरे का छिद्रान्वेषण, छिटकी लगाना, आदि समस्याएं आती हैं। रही बात छुट्टी की तो छुट्टी के देवता चन्द्रमा हैं, और उन पर राहु के प्रभाव के कारण छुट्टी की 'छुट्टी' हो गयी है।

मैं इसका कारण पूछता, उससे पूर्व ही देवर्षि बोल पड़े "ऐसी अवस्था तब उत्पन्न होती है जब 'बिहार शिक्षा सेवा' के राजा की कुंडली में सूर्य पांचवे भाव में और चन्द्रमा अष्टम भाव में होने के साथ-साथ वृहस्पति कमजोर हो। इसी से ऐसी समस्याएं आती है। बेतुका फरमान, अप्रांसगिक-अतार्किक बेतूका बयान, मानसिक असंतुलन आदि की स्थिति आती है। इसके निदान चाहने वालों के लिए अनिवार्य है कि वे शनिवार को सूर्योदय के समय पीपल पर जल चढ़ाएं। शनिवार और मंगलवार को हनुमान बाहुक का पाठ करके हनुमान जी पर एक सेब चढ़ाकर उसे खा लें फिर तुलसी जल पी लें। रविवार मंगलवार छोड़कर सभी दिन को तुलसी पर जल चढ़ाकर सूर्य को प्रणाम करें, इससे जीवन में सुख-शांति, संतान सुख व समृद्धि बनी रहेगी, कार्यस्थल पर तनाव नहीं होगा, अधिकारी प्रसन्न रहेंगे और कभी भी छठ-दीपावली-होली जैसी छुट्टी पर आंच नहीं आएगी।" इससे पूर्व कि देवर्षि अन्यत्र प्रस्थान करें, अंतिम प्रश्न प्रक्षेपित करते हुए पूछ दिया - बारह परसेंट वृद्धि की क्या स्थिति है देवर्षि ? प्राप्त होगा या नहीं ? देवर्षि मुस्कुराते हुए बोले -" चूंकि बारह का मूलांक 6 होता है, इनके स्वामी असुरों के देवता शुक्र ग्रह माने जाते हैं । ऐसे अंक वाले रोमांटिक भी होते हैं लेकिन आपके प्रश्न का संबंध रोमांस से नहीं समृद्धि से है और समृद्धि के मार्ग में कुछ अरचनें भी आती है। सभी लाभार्थी मंगलवार को हनुमान चालीसा पाठ करें। सफलता मिलेगी। " इससे पहले कि कुछ और पूछते श्रीमती जी ने चिकोटी काटकर जगाते हुए कहा उठिए आज होली है आपको ट्रेनिंग में भी जाना है। जाने से पहले लहसुन छील लीजिए और हां प्याज मेरी आंख में लगता है, उसे भी काट दीजिए।

✍️ डॉ. सुधांशु कुमार (लेखक व्यंग्यकार, स्तंभकार, शिक्षाविद एवं वर्तमान में बिहार शिक्षा सेवा के व्याख्याता हैं)