प्रणव पर्व : डॉ. संजय पंकज का जन्म दिवस अभिनंदन
- Post By Admin on Dec 05 2024

डॉ. संजय पंकज प्रतिभा संपन्न कवि लेखक और वक्ता के रूप में सार्वदेशिक और सार्वकालिक पहचान बना चुके हैं। आज हम यह भी पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि इनके लेखन में जो विविधताएं और अनेक रूपताएं देखने को मिलती हैं वह एक ऐसी प्रतिभा की उपज है जिसका सर्वत्र सुलभ होना असंभव सा प्रतीत होता है। विषय पर पकड़ इतनी कि उसे व्यक्त करने के लिए भाषा नदी की तरह प्रवाहशील हो जाती है। डॉ. संजय पंकज के पास अपना एक विजन है, चिंतन की सीमा में असीम हो जाने की अंतर्दृष्टि है और निष्कर्ष तक पहुंचने की विलक्षण क्षमता।
डॉ. संजय पंकज का रचना संसार किसी एक एंगल से नहीं समझा परखा जा सकता। मां पर केंद्रित "मां है शब्दातीत", "शब्द नहीं मां चेतना" इन दो पुस्तकों से गुजरते हुए आप उनकी रचनात्मक विशिष्टता के बारे में जानना चाहते हैं तो पढ़िए "मंजर मंजर आग लगी है", फिर पढ़ सकते हैं "बजे शून्य में अनहद बाजा"। गीत कविता की और भी पुस्तकें प्रकाशित हैं। यहां केवल सूत्रात्मक और परिचयात्मक चर्चा की जा रही है।
गीत और कविता में सार्थक हस्तक्षेप करते हुए डॉ. संजय पंकज जब गद्य लेखन की और लौटते हैं तो वहां एक अलग संजय पंकज दिख जाते हैं। चहकती फुदकती चिड़ियों के समान भाषा की शक्ति विचार और भावना के अनेक विरोधाभासी बिंदुओं से कभी टकराती, कभी हाथ मिलाती आगे बढ़ती है। संपादन कार्य में भी निपुणता हासिल है।
कई पत्रिकाएं हैं जिनके मार्गदर्शन के लिए हमेशा मित्र की तरह साथ होते हैं। कोई एक बार पुकारे तो हजार बार वहां पहुंचकर अपने होने का विश्वास और अहसास दिलाने का काम करते हैं। सबकी उम्मीदों पर खड़ा उतरना, सबकी आंखों का स्नेह पात्र बनना, उदासी में ताजगी भरना और यथा संभव अपने जीवन का बहुमूल्य समय देकर उत्साहित करना डॉ. संजय पंकज की मौलिक पहचान है। प्रणव पर्व अब प्रतीकात्मक बन गया है। जीवन की अनंत ऊंचाइयों पर पहुंचकर ही प्रणव का आनंद प्राप्त किया जा सकता है। हर आदमी जानता है पांच दिसंबर यानी प्रणव पर्व, प्रणव पर्व यानी साहित्यकार डॉ. संजय पंकज के बहुआयामी व्यक्तित्व का हर्ष भरा अभिनंदन।
विजय शंकर मिश्र