अब फूलों से बनाएं बच्चों का वाटर कलर : पांच प्राकृतिक विकल्प जो हैं सुरक्षित और रचनात्मक
- Post By Admin on Jul 03 2025

बच्चों की पेंटिंग और आर्ट क्लास को अब बनाया जा सकता है और भी रंगीन, वह भी बिना किसी रासायनिक नुकसान के। बाजार में मिलने वाले वाटर कलर में मौजूद रसायन कई बार बच्चों की त्वचा और सेहत के लिए नुकसानदायक साबित होते हैं। लेकिन अब इसका एक आसान, सुरक्षित और पारंपरिक उपाय सामने आया है — फूलों से बने प्राकृतिक वाटर कलर।
जानकारों और क्राफ्ट एक्सपर्ट्स के अनुसार, रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले कुछ खास फूलों से जीवंत और सुरक्षित रंग तैयार किए जा सकते हैं, जो बच्चों की कला में नयापन भी लाते हैं और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं होते।
जानिए किन 5 फूलों से बना सकते हैं प्राकृतिक वाटर कलर:
• गुलाब से बनाएं गुलाबी रंग
गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर उसका रस निकालें, फिर उसे धूप में हल्का सुखाकर उसमें थोड़ा अरारोट मिलाएं। यह रंग गुलाबी या हल्का लाल रंग देने में सक्षम होता है। स्टोर करने के लिए इसे कांच की बोतल में रखें।
• गेंदा से तैयार करें पीला या नारंगी रंग
पूजा में अक्सर प्रयुक्त गेंदे के फूलों को पीसकर उनके रस से पीला रंग बनाया जा सकता है। नारंगी गेंदे से नारंगी रंग भी तैयार किया जा सकता है। रस में अरारोट मिलाकर ठंडा करें और बोतल में भरें।
• गुड़हल से पाएं गाढ़ा लाल रंग
गुड़हल के गहरे रंग के फूल लाल रंग के लिए उपयुक्त हैं। पंखुड़ियों को पीसकर, उनका रस निकालें, सूखाएं और अरारोट मिलाकर सुरक्षित करें। अलग-अलग रंगों के गुड़हल से विविध शेड्स भी तैयार किए जा सकते हैं।
• केसर के फूल से बनाएं बैंगनी रंग
केसर के बैंगनी पुष्पों को पीसकर निकाला गया रस गहरा बैंगनी रंग देता है। बच्चों की पेंटिंग में यह रंग आकर्षण का केंद्र बन सकता है।
• अपराजिता से तैयार करें नीला रंग
नीले रंग के अपराजिता फूल से प्राकृतिक नीला या बैंगनी रंग बनाना संभव है। यह फूल न केवल चाय बल्कि कला में भी अब अपनी जगह बना रहा है।
सुरक्षित, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल
ये सभी रंग न केवल बच्चों की त्वचा और आंखों के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी पूरी तरह अनुकूल हैं। घर पर इन फूलों से रंग बनाना एक रचनात्मक पारिवारिक गतिविधि भी बन सकती है।
शहर के कई स्कूल अब बच्चों के लिए इस तरह के प्राकृतिक रंगों से पेंटिंग प्रतियोगिता आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, ताकि बच्चों में रचनात्मकता के साथ-साथ प्रकृति के प्रति जुड़ाव भी बढ़ाया जा सके।
अब वक्त है बच्चों के रंगों की दुनिया को भी प्रकृति से जोड़ने का — रंग भी, रस भी, और सुरक्षा भी।