न टॉप बड़ा, न फेल

  • Post By Admin on Jun 22 2018
न टॉप बड़ा, न फेल

इस ग्रीष्मावकाश में गांव पहुँचते ही 'बचपनिया' मित्र ने औपचारिक हाल-चाल पूछने के बाद झट एक प्रश्न छोड़ दिया -'टाप बड़ा कि फेल ?' मैं असमंजस में ! प्रश्न छोटा , पर मारक जिसने चार-पांच साल से बडों-बडो़ं को नचा रखा है । मैं उसका मुँह ताकने लगा । दरअसल मैं उसके अद्यतन विषय- ज्ञान पर स्तब्ध था , कि देखने-सुनने में छोटी सी काया के स्वामी ने इतना बड़ा सवाल कैसे छोड़ दिया ? वैसे , आजकल छोड़ने का सीजन भी चल रहा है । कहीं कोई मिसाइल छोड़ रहा है , तो कोई आतंकवादी ! फिलहाल सत्ता में आने से पूर्व पत्थरबाजों को अपनी जूती से मसलने की बात करने वाले माननीय सत्तासीन होने के बाद पत्थरबाजों के कमीनेपन से वाकिफ होते हुए भी उन्हें 'इनोसेंट' प्रमाणपत्र दे-देकर छोड़ रहे हैं । हमारा पड़ोसी हमारी इस 'परफार्मेंस' से प्रेरित हो- होकर हमारे पीछे अपने कुत्ते छोड़ रहा है । उधर अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते की डोर छोड़ रहा है तो किम अपनी जिद ! आइसिस सीरिया छोड़ रहा है तो कश्मीरी पंडित आशा की अंतिम उम्मीद ...! हमारे प्रधान सेवक आने वाले सीजन के लिए छोड़े हुए वादों -370 , मंदिर , समान नागरिक संहिता , आदि आदि  को रिसाइकिल करके पुनः छोड़ने की मसक्कत कर रहे हैं !! यहां भी सभी कुछ न कुछ छोड़ ही रहे हैं । कभी एससी एसटी , तो कभी ओबीसी कोटे का शिगूफा आदि । यदि कुछ नहीं छूट रहा , तो वह है अशिक्षा की दरकती हुई जमीन में शिक्षा का पानी !! इसी न छोड़ने और छोड़ने के क्रम में बिहार बोर्ड ने इंटर के रिजल्ट का पानी कुछ अधिक ही मात्रा में छोड़ दिया , जिसके कारण अब बच्चे हैं कि आंदोलन छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे और उनकी पीठ पर पुलिस लाठियां छोड़ रही है । इन छोड़ा-छोड़ी के बीच मित्र के इस छोड़े हुए प्रश्न के कारण मेरी बुद्धि 'निर्बुद्धावस्था' को प्राप्त हो रही है । इसके बदले वह कोई और प्रश्न भी पूछ सकता था , जैसे ट्रंप बड़ा कि किम ? व्हाइट हाउस बड़ा या सिंगापुर ? 'राहुल' बड़ा या 'गहलौत' ? 'दिग्गी' बड़ा या 'शशि' ? कश्मीर बड़ी या दिल्ली ? पत्थर बड़ा या 56 इंच का सीना ? बिहार की शिक्षा-परीक्षा बड़ी या भैंस...इस तरह के दर्जनों सवालों के जवाब मिनटों में दे देता , लेकिन उसने जो प्रश्न मेरे ऊपर छोड़ा है उसके कारण तो मेरी आंखों के सामने दिन में ही 'रूबी' , 'कल्पना' , 'गणेश' , लालकेश्वरादि छा गए ! मेरी दुर्गति सांप-छछुंदर वाली । अंततः मैंने तुलसी बाबा से संपर्क साधा ! बाबा तत्क्षण प्रकट हुए !! मैं करबद्ध अपना हाल छोड़ सुनाया । मेरी समस्या सुनते ही उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए -' को बड़ छोट कहत अपराधू ।' मैंने हार न मानी , 'भूषण' को यमपुरी में ह्वाट्सएप काल किया ! हालांकि वह छत्रसाल के साथ यमलोक की किसी समस्या पर विचार -विमर्श कर रहे थे किंतु तुरंत मेरी समस्या सुनने के बाद उन्होंने मेरे सवाल के जवाब में एक सवाल छोड़ दिया -' शिवा को सराहें या सराहें छत्रसाल को ?' मैं निरुत्तर ! अब मुझे ही कुछ करना है , यह मैं जान गया । मन में किसी की पंक्तियां कौंधी -'व्यर्थ है खुशामद करना रास्ते की / काम अपने पांव ही आते सफर में ।'  सभी के फेल होने के बाद भी मैंने  उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा और यमलोक के जर्मनी विंग में 'कोहलर' को व्हाट्सएप काल किया ! उन्होंने अपने 'सूझ सिद्धांत' को अप्लाई करने का सुझाव दिया । हारे को हरिनाम ! क्या करता ? दिशा निर्देश का पालन करते हुए अपनी चिंतना के फाटक को खोला तो हल हाथ जोड़े खड़ा था ! मैंने मित्र की ओर देखा तो उसके भोले - भाले चेहरे पर राजधानी की 'थेथरई' विराज रही थी , मानो वह सारी वस्तुस्थितियों को सिरे से खारिज करती हुई चीख-चीखकर उद्घोषणा कर रही हो -'आल इज वेल'(भावार्थ-शिक्षा गई तेल लेने , परीक्षा गई 'भांड़' में..जो हूं , सो मैं ही हूं...अंतिम सत्य ..परीक्षा और परिणाम भी.. ) मैं हल के करीब था । मैंने भी उसके सवाल के जवाब में सवाल छोड़ने की क्रिया आरंभ की - यह बता , किम बड़ा कि ट्रंप ? अपने सवाल के जवाब में यह सवाल पाकर वह सकपकाया , बोला -'न किम  बड़ा , न ट्रंप ! ' मैंने उत्साह में दूसरा सवाल छोड़ा -'मत्री बड़ा या सचिव?' उसने इसका भी वही जवाब दिया । तीसरा सवाल -'पप्पू' बड़ा या 'गल्लू' ?' उसका जवाब पूर्ववत । आलू से सोना बनाने वाली मशीन बड़ी या पानी में घुलनशील बिजली ? ' उसने फिर अपने दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से अपने सिर का एंटीना खुजलाते हुए कहा -'दोनों !' इसी प्रकार दो-चार सवालों के बाद मैंनें समझाते हुए कहा -' निष्कर्षतः न टाप बड़ा न फेल ! ' वह समझने के उपरांत भी न समझने का अभिनय करते हुए पूछा -'वो कैसे ? मैं भी उपदेशक का अभिनय करता हुआ तत्त्व ज्ञान बांचने लगा -' हे मित्र ! यह संसार मिथ्या है ...सारे संबंध स्वार्थ-संचालित हैं...यहां तक कि बिहार की शिक्षा और परीक्षा भी इसका अपवाद नहीं...जिस प्रकार यह जीवन मिथ्या और मृत्यु सत्य है , उसी प्रकार शिक्षा-परीक्षा व्यर्थ और परिणाम ही ध्रुव सत्य है । बुद्ध , महावीर आदि ने असली 'नालेज' किसी 'अस्कूल' में नहीं पाया लेकिन परिणाम दिया..सेल्फ स्टडी से ही तत्त्व ज्ञान पाया ...और उसी के अंतर्गत इस बिहार में सेल्फस्टडी विद्यालय तुम देख सकते हो । स्वयं अर्जित ज्ञान ही उत्तम ज्ञान है । जहां तक रहा तुम्हारे टाप और फेल का प्रश्न तो सभी टाप और फेल नाशवान हैं ...सब परेशान हैं... जो टाप होते हैं वह भी  परेशान होते हैं और जो फेल होते हैं वो भी । किसी को पुलिस पकड़ कर ले जाती है तो किसी की पीठ पर उनकी लाठियां चटकती हैं ...!! हे मित्र ! अब तुम ही बतलाओ 'टाप बड़ा कि फेल ?' अपने ही प्रश्न को मेरे मुख से निकलते हुए पाकर वह किसी भाव समाधि में लीन होता हुआ बोला -' न टाप बड़ा , न फेल !' मैं विजित मुसकान लिए लीची के बगीचे की तरफ बढ़ गया ...!

डा. सुधांशु कुमार
अध्यापक -सिमुलतला आवासीय विद्यालय , सिमुलतला ,
पुस्तक -ढाक के तीन पात , रंगों के देश में , नारद कमीशन , गोपाल सिंह नेपाली के काव्य में प्रकृति चित्रण (शीघ्र प्रकाश्य)