प्राचार्य देवता

  • Post By Admin on Apr 12 2024
प्राचार्य देवता

देवता नाना प्रकार के होते हैं - अग्नि देवता, वरुण देवता, वायु देवता, सूर्य देवता, चन्द्र देवता आदि आदि इत्यादि ! लेकिन इन दिनों अविश्वस्त सूत्रों के हवाले से पता चला है कि एक और देवता जंबूद्वीप के भारतखंड के 'कपाड़' पर अवतरित हुए हैं , जो देखने में तो 'डिट्टो' मानुस के आकार- प्रकार के हैं , परंतु वास्तव में उनका लूर - लच्छन बिल्कुल डिफरेंट ! वैसे तो ऊपर - ऊपर उनका सारा फंक्शन मनुष्यों वाला ही दिख रहा प्रतीत होता है किंतु आंतरिक संरचना देवों वाली होती है । जिस प्रकार आसन्न संकट का आभास पाकर  देवता गण 'त्राहिमाम' संदेश लेकर महादेव की शरण में जा पहुंचते थे, उसी प्रकार  ए देवता भी 'ऊपर' पहुंच जाते हैं । इनका आधा टेंशन 'ऊपर - ऊपर' ही देवाधिदेव महादेव के द्वारा समाप्त कर दिया जाता है, बचे आधे टेंशन को नीचे 'मैनेज' करते हैं । 

वैसे, व्युत्पत्ति के आधार पर इन देवताओं के दो प्रकार होते हैं ‌ । प्रथम प्रकार के अंतर्गत वे आते हैं जो किसी भी तरह का 'मैटर' 'नीचे' ही 'मैनेज' कर लेते हैं - 'मिल-बैठकर' । दूसरे वे होते हैं जो हर समस्या को देवाधिदेव महादेव से 'मैनेज' करवाते हैं । चूंकि उनसे बार बार मैटर 'मैनेज'  करवाना पड़ता है इसलिए इनका भक्ति भाव प्रथम वाले देवता की तुलना में कुछ अधिक ही रहता है देवाधिदेव के प्रति,अंत: स्वाभाविक है कि प्रथम की तुलन में ए देवता अच्छत - चंदन -पान -फूल-भांग-धतूरा कुछ अधिक ही अर्पित करते रहते हैं उनके श्रीचरणों में । औघरदानी की कृपाकटाक्ष भी कुछ अधिक ही मेहरबान होती है इनपर इसलिए ए 'कुछ' अधिक ही रिलैक्स होकर बैटिंग करते हैं। 

प्राचार्य देवता की खासीयत यह होती है कि जैसे जैसे ए पुराने होते जाते हैं वैसे - वैसे इनके चेहरे की लाली और साइनिंग कान्फिडेंस के साथ 'राइजिंग इंडिया' होती जाती है और जैसे- जैसे इनकी साइनिंग राइज करती है, वैसे -वैसे इनके 'गण' की साइनिंग तिरोहित होती जाती है। इनके इस कार्यक्रम को देखकर अनायास ही गांव में बिताया हुआ बचपन याद आ जाता है  और वासंती बयार की तरह छोटा -छोटा दृश्य आंखों में नाचने लगता है जिनमें से एक दृश्य में कुछ लोग छोटे से तालाब में मछ्ली पकड़ने के लिए अधिकांश पानी मशीन से बाहर 'उपछ' चुके होते हैं, और बचे घुटने भर पानी को तालाब के बीचों-बीच  मेड़ बांधकर एक तरफ के पानी को दूसरी तरफ डोल - डोलकर 'डोल' से 'उपछते' हैं और जैसे -जैसे एक तरफ पानी कम होता जाता है दूसरी तरफ वैसे - वैसे बढ़ता जाता है । यहां भी प्राचार्य देवता के मुखारविंद की साइनिंग के साथ भी कुछ उसी तरह का 'सिचुएशन क्रिएट' होता दिखता है। बेचारे गण आसपास 'हकासल- पियासल' 'लगे रहो इंडिया' रहते हैं और उधर.. . !!

 प्राचार्य देवता के उपर्युक्त दोनों प्रकार के अलावे 'सिचुएशनली' एक और प्राचार्य देवता पाए जाते हैं जिन्हें टेक्निकली 'प्रभारी प्राचार्य देवता' कहते हैं । जो कभी- कभी ऐसा होता है कि 'लगन-तिहार'' 'मरनी -खरनी' 'न्योता - पिहानी' में प्राचार्य देवता के लंबे अवकाश पर जाने या आकस्मिक सिधार जाने के उपरांत कार्य के निर्बाध संचालन हेतु महादेव द्वारा गणों में से ही देखने सुनने में तंदुरुस्त 'पहलवान' गण को वित्तीय अधिकार सहित पदभार दे दिया जाता है । बनावट के आधार पर इनके भी दो भेद यहां देखने -सुनने समझने को मिल जाते हैं । इनमें से प्रथम प्रभारी प्राचार्य वे होते हैं जो पद का भार अपने ऊपर ले लेते हैं और दूसरे वे , जो पद के ऊपर भार बनकर 'भाड़ी' बन जाते हैं। चूंकि ए प्रभारी प्राचार्य देवता, ओरिजनल प्राचार्य देवता के स्टाइल की केस स्टडी सूक्ष्म तरीके से कर चुके होते हैं , इसलिए ए भरसक कोशिश करते हैं कि ओरिजनल प्राचार्य देवता की 'ओरिजनलिटी' इनके कैरेक्टर में 'ढुक' जाए , लेकिन घटित हो जाता कुछ और ही है  ! अपने कालिज टाइम में मैंने ऐसे ही एक प्रभारी प्राचार्य देवता को देखा था , जो प्राचार्य देवता के कैरेक्टर को अपने स्वभाव में उतारने के प्रयास में खुद के स्वभाव से उतर गए ! प्राचार्य की गंभीरता ओढ़ते -ओढ़ते वे इतने गंभीर हो गए कि वे विभिन्न 'पदार्थों' का सेवन भी गंभीर रूप से करने लगे । परिणाम - बवासीर ! बाद में उनका होम्योपैथी ट्रिटमेंट शुरू हुआ जो लंबा चला...इतना लंबा कि वे लंबवत हो गए ! दर असल हुआ कुछ यूं कि जब भी उनके सामने कुछ खाने का पदार्थ आता तो वे प्राचार्य देवता की तरह 'सिचुएशनली' 'दस- बीस- पच्चीस- और कभी -कभी अधिकतम तीस परसेंट ही खाते, क्योंकि उनके डायटीशियन ने उन्हें कह छोड़ा था कि उससे अधिक खाने पर मोटापे का खतरा बढ सकता है। उदर उन्नत हो जाएगा ! मिजाज नासाज हो सकता है !! तदुपरांत 'लोग- बाग' आपके मुखारविंद की साइनिंग पर कम और 'राइजिंग उदर' पर अधिक दृष्टि-आघात करेंगे । अतः यदि 'लाईट' में नहीं आना है तो 'परसेंटेज' में  खाइए और मेनटेन रहिए। तब से वह 'परसेंट' में ही खाते , यहां तक कि 'खाते' भी है तो इस 'डिजाइन' से कि प्रतीत होता है  जैसे ग्यारहों एकादशी व्रतधारी हों । वह जब खाने के बाद यदि पानी भी पीते तो कंबल ओढ़कर, घी की तो बात ही मत करिए! 

 बुद्धत्व की परमदशा को प्राप्त इस प्रभारी प्राचार्य देवता का गणित ज्ञान अत्यंत ही उत्कृष्ट कोटि का होता है, खासकर मल्टिप्लिकेशन और परसेंटेज में इनकी खासी दक्षता होती है । बुद्धत्व को प्राप्त ध्यानस्थ अवस्था में जब भी कोई सुजाता इनके सामने मनोकामना सिद्धि के उपरांत प्रसन्न होकर खीर पड़ोसती है तो ए डाइटीशियन के निर्देशानुसार 'ग्रीन' कलम से निर्धारित परसेंटेज लिख कर खाते , जिससे यह ध्यान रहे कि खाना कितना है ! इससे खाते समय बिल्कुल भी परसेंट रेसियो को नहीं भूलते। खाते समय आप बिल्कुल नहीं पता लगा सकते कि वो खा रहे हैं , और जब तक पता चले - चले, तब तक वह डाइटीशियन द्वारा निर्धारित परसेंटेज के अनुपात में खीर खा चुके होते हैं ! खाने के साथ - साथ उनकी अन्य सकर्मक - अकर्मक द्विकर्मक क्रिया भी कुछ उसी डिजाइन से घटित होती ! मानुस के आकार -प्रकार से दिखने वाले इस पारलौकिक प्राचार्य देवता में मनुष्य से इतर देखने और 'देख लेने' की विशेष 'अभिक्षमता' पायी जाती है। खासकर जब वे मधुर वाणी से आच्छादित होकर संवाद - संबंध स्थापित करते हैं , उस वक्त जरा - सी सावधानी बरतने की सलाह 'मानुस' वैज्ञानिक देते हैं । 

नोट:- इस व्यंग्य का संबंध किसी भी असली नकली प्राचार्य या प्रभारी प्राचार्य से नहीं है ! शर्तें लागू !!

@डॉ. सुधांशु कुमार (लेखक स्तंभकार, व्यंग्यकार एवं शिक्षाविद हैं)