कनफुंकवा-कनफुंकनी
- Post By Admin on Jan 11 2025

कनफुंकवा-'कनफुंकनी' जीव की एक ऐसी प्रजाति है जो अक्सर दफ्तर, दुकान, मकान, परिवार एवं पार्टी आदि में पायी जाती है ! इनकी बाह्य शारीरिक संरचना तो मानुस वाली, किन्तु दिल बंदर, दिमाग लोमड़ी, नासिका कुकुर एवं दृष्टि चील के गुणों से युक्त होती है। दिल बंदर का होने के कारण ए प्रजाति समय के अनुसार उछल-कूद करती रहती है-मतलब कभी उछलकर इधर, तो कभी उधर। उलट-पलट ! ''जब जइसन, तब तइसन" ! इनका दिमाग लोमड़ी का होने के कारण ए अपने साहेब-साहिबान के दिमाग के साफ्टवेयर में अपना वायरस खट से 'घुसेड़' देती हैं। फिर क्या ? राजा हो या मंत्री, 'परधान' हो या प्रिंसिपल, प्रभारी हो या सचिव, सबके सीपीयू का साफ्टवेयर 'कनफुंकनी' के वायरस से 'करप्ट' होकर मानिटर को उल्टा-सीधा सिग्नल सेंड करने लगता है। तब जो कनफुंकनी कहे, वही सही !
दरअसल कनफुंकनी का निर्माण एक विशेष वातावरण एवं आनुवंशिकता का परिणाम होता है। उसकी वाणी में मधुरता ऐसी होती है कि कान में पड़े तो लगे शहद ही धीरे-धीरे 'ससरकर' हृदय स्थली को रससिक्त करने की ठीकेदारी ले बैठी है । ज्योतिष की भाषा में यूं समझें कि इनकी कुंडली के सप्तम भाव में 'चापलूसी' विराजमान होती है जो अन्य ग्रहों पर भी अपनी छाप छोड़ती है ।
कनफुंकनी की इतिहास - परंपरा अत्यंत ही समृद्ध रही है ।द्वापर में शकुनी तो त्रेता में मंथरा इसके उदाहरण हैं । कलियुग में, दफ्तरों, पार्टियों, विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में ए बहुतायत संख्या में पायी जाती है। यूं तो ए बगुला की तरह शांत दिखती हैं किंतु जैसे ही इनके सामने से कोई मछली गुजरती है, झट से चोंच मार देती हैं। फिर क्या, धीरे-धीरे सभी को पता चल जाता है कि अप्रोच कहां करना है! फूल-अच्छत धूप-दीप चढ़ाने और दिखाने की विधि और स्थान में सहज ही परिवर्तन हो जाता है। कनफुंकनी द्वारा चींजे संपादित होने लगती हैं। 'सबकुछ' सेट होने के बाद अचानक से विकास कार्यों में 'ऊफान' आ जाता है। सबका चहुंमुखी विकास होने लगता है। बैंक का भी, बैलेंस का भी। इनके अनुसार विकास की परिभाषा बनने बिगड़ने लगती हैं। तदुपरांत बैंक बैलेंस के विकास में किसी भी प्रकार की रुकावट सरकारी कार्यों में बाधा मानी जाने लगती है और सरकारी कार्यों में बाधा का परिणाम-स्पष्टीकरण, वेतनबंदी, विभागीय कार्यवाही, आदि आदि इत्यादि। जब भी सहयोगियों द्वारा नियम विरुद्ध मामले का किसी प्रकार की असहमति जताई जाती है, तब उसे मैनेज करने की जिम्मेदारी कनफुंकनी की ही होती है। पहले तो ले-देकर मैनेज करने की कोशिश की जाती है, जब उससे भी बात नहीं बने, तब कंफुंकवा कनफुंकनी की सियार बुद्धि उसे बगल से निकाल ले जाती है। जिस प्रकार कनफुंकनी अपने स्वामी की पहरेदारी करती है, उसी प्रकार स्वामी भी हर स्थिति में कनफुंकनी की रक्षा करने के साथ-साथ उसकी सुविधाओं का खयाल रखता है ।
-व्यंग्य
लेखक शिक्षाविद, स्तंभकार एवं व्यंग्यकार हैं
-डॉ. सुधांशु कुमार