मानवों की भैंस विषयक असहिष्णुता

  • Post By Admin on Dec 02 2024
मानवों की भैंस विषयक असहिष्णुता

भैंस समाज की सभा बुलाई गई! मेनू-बिहार का प्रसिद्ध एक भैंस बाजार का 'खटाल'! उद्देश्य-मानवों एवं उसकी विचित्र प्रजातियों - मास्टरों, व्याख्याताओं, 'परफेसरों', लेखकों, पत्रकारों, नेताओं, 'मीडिया हाउस' आदि की भैंस विषयक असहिष्णुता का सुनियोजित अहिंसक विरोध एवं चरणबद्ध आंदोलन पर विचार विमर्श ! 'सभापति' - 'मोटकी' चितकबरी भैंस! दूध - सात लोटा सुबह, पाँच 'लोटा' शाम, कुल मिलाकर बारह 'लोटा' ! गोबर - दो टोकरी। सर्वप्रिय आहार - हरी दूब, पड़ोसी की 'खरउढ़ी', खिली हुई हरी-हरी खेसारी... यदि यह सब उपलब्ध न हो, तब भूंसा और मसूर का चोकर मिश्रित 'सानी'! दुर्भाग्य वश यदि यह भी उपलब्ध न हो, तब अंत में किसी आदर्श विद्यालय अथवा प्रशिक्षण संस्थानों में संचालित हो रहे 'मेस' का भोजन ! मालिक - व्याख्याता 'सोंटाचंद'!!

इस सभा में नाना प्रकार की भैंस प्रतिनिधि उपस्थित हुईं। चितकबरी, दुबली, मोटी, नागिन जैसी पूंछ वाली, बड़ी-छोटी सीधी-टेढ़ी सींग वाली, मोटे-थूथन वाली, लंबे -लंबे कानों वाली, आदि-आदि! कोई अपने दोनों कानों को थूथन से सटाए, एकाग्रचित्त ध्यानस्थ होकर, अधमूँदी आंखों से बुद्धत्व को प्राप्त होने की तैयारी कर रही थी, तो कोई 'मिनट्स आफ मीटिंग' मनमस्तिष्क में अंकित करने का दायित्व संभाल रही थी। एक भैंस तो एक अखबार में एक देशी बाबा द्वारा विज्ञापित  फेसवॉश और क्रीम खरीदने का मन बना रही थी, जिससे चेहरा चमकाया जा सके! उनमें से कई ऐसी भी थीं, जो कवयित्री और दार्शनिक सरीखी मुद्राओं का अभिनय करती हुई शून्य को ताक रही थीं  ताकि कल के अखबार में 'फोटू' आकर्षक आए! इन सभी विभिन्नताओं के बीच एक समानता यह थी कि सभी भैंसें एक मत से नेताओं, मालिकों, लेखकों, शिक्षाविदों, मीडियाकर्मियों और संपादकों के अलावे बचे खुचे क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों को ठेंगा दिखा रही थीं, कि तुमलोग जिंदगी भर एक दूसरे की टांगें खींचते रहो और यहां तुम्हारे विरुद्ध प्रस्ताव पास होने जा रहा है । तभी, मुखियाइन चितकबरी भैंस ने 'बां---" की ध्वनि के साथ अपना संबोधन शुरु किया। उसकी इस ध्वनि के साथ ही सभी भैंसें शांत होकर 'सेल्फ डिसिप्लिन' का नायाब नमूना पेश करने लगीं। सब अपने-अपने 'कानाग्र' को 'थुथुन' से स्पर्श करने की कोशिश करने लगीं, मानों वे  'थुथनासन योग' में दक्ष हों। सब संवादलीन! 

मुखियाइन चितकबरी भैंस ने संबोधित करते हुए कहा-"आज के इस ऐतिहासिक सभा में उपस्थित बहनों, हम भैंस समाज के ऊपर आदिकाल से ही मनुष्यों ने तरह-तरह के अत्याचार किए हैं। हमनें उन्हें क्या- क्या नहीं दिया - पाड़ा, पाड़ी, दूध, गोबर, घी, मक्खन, आदि। किंतु, उन्होंने कभी भी हमारे इमोशन की कद्र नहीं की । हमारे सभी दूध दूह कर, कभी हमारे बच्चों को भूखा रखा, तो कभी थन में 'गुदगुदी' लगने या नाखून गड़ने से उत्पन्न दर्द के कारण अनायास 'लथाड़' चल जाने पर 'सोंटिआया' भी! इतना ही नहीं, इन्होंने अपने समाज के लिंग भेद के दोहरे मानदंड को हमारे ऊपर भी थोपा। इनके घर यदि बेटा हो तो सोहर, हमारे यहां हो, तब तरह-तरह के ताने! वो तो रात-बेरात उन नासपीटों की नजरें बचाकर अपने लाल -ललनाओं को थन घुमाकर दूध पिला दिया करती हैं, अन्यथा हमारे 'सोना पाड़ा बाबू' को तो ये 'भैंसालोक' ही पहुंचा दें। बहनो! आपको मालूम है कि इनका अत्याचार यहीं नहीं रुका, हमारी ममता के अजस्र प्रवाह को रोकने के लिए इन्होंने 'दुबगली' में बांधना शुरू कर दिया, फिर भी  हमारी ममता पर वह अंकुश नहीं लगा सके, हमने उसकी भी काट निकाल ली। वो डाल-डाल, हम पात-पात! अपने 'सोना पाड़ा बाबू' के लिए हमने अपने थन में ही दूध रोकना शुरू कर दिया, लेकिन इन बेइमानों को तो देखो, ये इसे दूध की चोरी कहते हैं! अब आप ही बताओ, भूख से तड़प रहे अपने बच्चे को अपना ही दूध पिलाना चोरी है क्या? अरे 'चोरनी' हम नहीं महाचोर तो तुम हो, जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो! कभी फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, व्हाट्सएप आदि पर चैटिंग कर-करके क्लास के टाइम की चोरी करते हो, कभी 'परधान' बनकर मेस में घपला। इतना ही नहीं, अपनी ही मातृभूमि के टुकड़े करने का नारा तथाकथित सर्वोच्च संस्थान में पढ़-पढ़कर लगाते हो, साजिश करते हो! छि:!! खैर, तुम्हें जो कहना है, कहते रहो, तुम्हारे ताने मेरी पूंछ पर! तुम अगर चोरी करो, लहू चूसो, घोटाला कर करके अपने संवर्ग और  देश का दिवाला निकालो, स्कूल-कालेज के बेंच, डेस्क, प्रीफैब, खिड़की का शीशा, किंवाड़ और कैंपस का माटी तक 'भमोड़' जाओ तो बहुते अच्छा और मैं यदि थन घुमाकर अपने ही कलेजे के टुकड़े को दूध पिलाऊँ, तो चोरनी? वाह रे भला मानुस!!... मुझे तो तुम्हें बनाने वाले पर लघु शंका हो रही है... अच्छा है कि हमें 'मानुस' न बनाया, भैंस बनाया। मुझे नहीं बनना तेरे जैसा! हम भैंसन तेरी तरह जिस नाद में खाती हूं, उसमें गोबड़ नहीं न करतीं?  खैर, तुम भले ही बेटा बेटी में भेद करो, हम पाड़ा-पाड़ी में अंतर नहीं करनेवाली!!

बहनों, एक बात और। हम पर मालिकों ने ही नहीं, नेताओं ने भी जूल्म किया है, हम उनसे भी खफा हैं । इन्होंने अपनी बिरादरी के साथ-साथ हमें भी 'यूज एण्ड थ्रो' किया है । मेरी सींग से होकर सत्ता तक पहुंचने वाले मेरा ही चारा खा गए! नेता तो नेता, असहिष्णुता का ढिंढोरा पीटने वाले साहित्यकार भी इनसे पीछे नहीं। इन्होंने भी हमारी प्रतिष्ठा को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन्होंने हमेशा हमारी उपेक्षा की और जब भी लेखनी चलाई, उल्टी ही। हमने जीवन भर इन्हें समृद्धि दी। बावजूद इसके, ये हमारे ही गाढे दूध की चाय पी-पी कर तथाकथित साहित्यकार और शिक्षाविद हमारा मजाक ही उड़ाते रहे ! तरह-तरह की कहानियों, मुहावरों और कहावतों के द्वारा हमारा ही उपहास उड़ाते रहे -'भैंस के आगे बीन बजाई, भैंस रही पगुराय' ! सालों ! तुम्हें सिर्फ भैंस ही सूझी ? बकरी, गाय, बैल, भालू नहीं दिखाई दिये ? 'गइल भंइसिया पानी में' धोखा भीइल जवानी में' ! हरामखोरों, तुम क्या दूध से नहाते हो? पोखरिया में क्या तुम नहीं 'चुभकते' ? अपनी तुम्हें नहीं सूझती ?..'काला अक्षर भैंस बराबर'! चुगलखोरों, तुम्हें मेरी काली चमरी तो दिख गयी, लेकिन श्वेत दूध राशि नहीं दिखी... अपना कोयले-सा काला मन और नहीं दिखा ? वह तो शुक्र मनाओ 'मन्ना डे' साहब का जिन्होंने हमारे लिए आवाज उठाते हुए प्रतिकार किया -"मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा, खेत में चारा चरती थी, तेरे बाप का वो क्या करती थी...।" ये दोयम दर्जे के लोग, दूसरे पर जूल्म करते हुए सारी हदें पार कर देते हैं और जब खुद पर बनती है तो असहिष्णुता याद आ जाती है, मानवाधिकार की गोद में जाकर बैठ जाते हैं...। तुम्हारे लिए मानवाधिकार, हमारे लिए कुछ नहीं ? बहनों अब हमलोग भी कोर्ट में एक 'भैंस हित याचिका' दायर करेंगी कि हमारा भी एक भैंसाधिकार आयोग बने, वरना दूध देना बंद कर देंगी। जब दूध दुहते वक्त हम सब अपना अपना दूध 'सुटका' लिया करेंगी, तब इनकी अंकल ठिकाने आएंगी। एक तरफ मूर्ति का विरोध भी और दूसरी तरफ बुत परस्ती भी !! वाह रे दोयम दर्जे के 'मानुस'।

 बहनों! वैसे तो इस दुनिया को इन 'मानुसों' ने रहने लायक नहीं छोड़ा है लेकिन हमारे लिए दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है। आज के इस सभा में मैं आप सबकी तरफ से यह घोषणा करती हूं कि- आज से दूध दूहते समय टेढ़े-मेढ़े आदमी को तब तक लथाड़ मारेंगी, जब तक वह सीधे रास्ते पर न आ जाए और अपने वर्ताव में सुधार न कर लें। साथ ही, अब हमलोग किसी भी नेता को अपनी सींग का दुरुपयोग नहीं करने देंगी। चुनाव के वक्त उन्हें 'नामिनेशन स्पाट' पर भी नहीं ले जाएंगी। नेताओं के साथ नाम जुड़ने पर स्वाभिमान और प्रतिष्ठा खंडित होती है।... अब हम सब भी अपने-अपने पाड़ा-पाड़ी को पढ़ा लिखा कर देश के मशहूर मीडिया हाउस में पत्रकार बनाएंगी और स्कूल एवं ट्रेनिंग कालेजों में प्रिंसिपल बनाएंगी जिससे हम भी समाज में  थुथुन उठाकर जी सकें। इतना ही नहीं, अब हम सभी सड़कों और रास्तों पर धरना प्रदर्शन किया करेंगी, जिससे उन्हें पता चलता रहेगा कि भैंस नामक भी कोई प्राणी होती हैं !" चितकबरी भैंस की इस घोषणा पर सभी उपस्थित भैंस ने एक स्वर से 'बां..." की ध्वनि के साथ समर्थन किया । तदुपरांत चितकबरी भैंस के सारे प्रस्ताव 'मिनट्स आफ मीटिंग' में दर्ज हो गये और दर्ज होते ही सभी भैंस ने पूंछ उठाकर उसका समर्थन किया। इसका असर यह हुआ कि अगले ही दिन एक नेताजी, जो सबका अटेंशन अपनी ओर खींचने के लिए भैंस पर चढ़कर 'नामिनेशन' फाइल करने जा रहे थे, उन्हें भैंस ने 'उमक' कर पटक दिया। नेताजी का पैर टूटते-टूटते रह गया !

लेखक शिक्षाविद, स्तंभकार एवं व्यंग्यकार हैं !

डा. सुधांशु कुमार