एक लेख वृक्षों के लिए
- Post By Admin on Jun 28 2023
_11zon.jpg)
वृक्ष… धरा के रोमकूप! जिन्होंने तुमसे कभी कुछ नहीं माँगा, केवल दिया ही…छाँव, फल, लकड़ियाँ और प्राणवायु। कैसे निष्ठुर जैसे प्रहार किए तुमने उनपर! हर बार तुम्हारी बढ़ती हुई आबादी का दंश उन्होंने झेला है। तुमने इमारतें बनायीं, सड़कें बनायीं, कारख़ाने बनाए। पूरी पृथ्वी पर अपना अधिकार करते रहे। फिरभी तुम संतुष्ट नहीं हो मनुष्य! जानते हो क्यूँ? क्योंकि तुमनें अपना घोंसला जीवन के जड़ों को काटकर बनाया है। तुम्हें क्या लगता है, बड़ा सरल है जीवन को मारकर जीवित रहना? कभी नहीं!
अब भी तुम मनुष्य अपने आप में ही लगे हुए हो। अपनी पीड़ा, प्रताड़ना, अपने दुःखों का ही राग आलाप रहे हो। एक बार विचार करो, उनके लिए कौन लड़ेगा? उन मूक प्रजाति की हत्या पर कौन आवाज़ उठाएगा? कुछ नहीं कर सकते तो एक बार उनके पास जाकर आभार व्यक्त कर दो कि जीवों के प्रति उनका प्रेम कितना निःस्वार्थ है। उनका होना कितना ज़रूरी है। सृष्टि में हर कोई इस प्रेम का अधिकारी है।
अब तो तुम्हारे शहरों में मिट्टी भी नहीं बची कि तुम उनको पुनः बसा सको अपने आसपास। तुम्हारा शहर तो बरसात भी सोख नहीं पाता, सब उगल देता है। लोग जीविका उपार्जन के लिए शहर जाते थे। अब शहर से जीवन ही लुप्त हो रहा है। इमारतों ने धूप को रोक दिया है और प्रदूषण ने वर्षा को। चीख़ती हुई तुम्हारी सड़कें और वृक्षों का मौन सुनने में असमर्थ हैं। जाओ मनुष्य अपने शोर से बाहर निकलो, मौन की पीड़ा सुनो। मौन की रक्षा करो क्योंकि तुम फिरसे जंगल नहीं उगा सकते।
- जया मिश्रा ‘अनजानी’