बजट 2025 : एमएसएमई के लिए जलवायु वित्त को मजबूत करने की दिशा में कदम

  • Post By Admin on Feb 28 2025
बजट 2025 : एमएसएमई के लिए जलवायु वित्त को मजबूत करने की दिशा में कदम

केंद्रीय बजट 2025-26 में छोटे और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को बढ़ावा देने के लिए कई घोषणाएं की गई हैं। जिससे ये उद्योग स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एमएसएमई की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो जीडीपी का 30% योगदान करते हैं, लेकिन इन उद्योगों को जलवायु वित्त की पहुंच में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं।

एमएसएमई और जलवायु परिवर्तन: एक जटिल संबंध

एमएसएमई भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन इनका पर्यावरण पर गहरा असर भी पड़ता है। उभरते बाजारों में कुल प्रदूषण के 40% उत्सर्जन के लिए छोटे और मध्यम उद्योग जिम्मेदार हैं। इस संदर्भ में, भारत के नेट-जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एमएसएमई की भूमिका अहम हो जाती है। हालांकि, इन उद्योगों को हरित वित्त तक सीमित पहुंच और जागरूकता की कमी की वजह से स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में कठिनाई होती है।

बजट 2025 में एमएसएमई के लिए प्रमुख घोषणाएं

बजट 2025 में एमएसएमई के लिए कुछ प्रमुख घोषणाएं की गई हैं, जिनसे इनकी समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

  •  गारंटी कवर में वृद्धि : इससे कर्ज देने वालों का जोखिम कम होगा और छोटे व्यवसायों को आसानी से वित्तीय सहायता मिल सकेगी।
  •  ऋण प्रक्रिया का सरलीकरण : ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बनाने से छोटे उद्योगों को वित्तीय सहायता मिल सकेगी।
  •  महिला और एससी/एसटी उद्यमियों के लिए विशेष टर्म-लोन : महिला उद्यमियों और अनुसूचित जाति/जनजाति के उद्यमियों को विशेष टर्म-लोन दिए जाएंगे।
  •  क्रेडिट कार्ड की सुविधा : एमएसएमई के लिए क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान की जाएगी, जिससे उन्हें उनके वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी।

इसके अलावा, नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन, नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन और न्यूक्लियर एनर्जी मिशन के तहत एमएसएमई को स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में नए अवसर मिलने की उम्मीद है। हालांकि, वित्तीय संस्थानों को हरित विकास से जोड़ने पर इस बजट में विशेष ध्यान नहीं दिया गया, जबकि यह बेहद जरूरी है।

एमएसएमई के लिए मौजूदा जलवायु वित्त परिदृश्य

भारत में जलवायु वित्त की कुछ प्रमुख योजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें सिडबी द्वारा वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर शुरू की गई जोखिम साझाकरण सुविधा और एमएसई-GIFT योजना शामिल हैं, जो कम ब्याज दरों पर हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने में मदद करती है। हालांकि, भारत में केवल 14% एमएसएमई को ही औपचारिक वित्तीय मदद मिलती है और उनमें से भी बहुत कम को जलवायु वित्त का लाभ मिलता है।

जलवायु वित्त तक पहुंचने में चुनौतियां
एमएसएमई के लिए जलवायु वित्त उपलब्ध कराने में कई प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

•    हरित निवेश से मुनाफा आने में समय लगता है।
•    निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव को मापना कठिन होता है।
•    पूंजी बाजार तक सीमित पहुंच और उच्च ब्याज दरें वित्तीय बोझ बढ़ाती हैं।
•    सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग का अभाव एमएसएमई के लिए एक और बाधा है।

आगे की राह : क्या किया जाना चाहिए?

  • सरकार को एमएसएमई के लिए एक मजबूत जलवायु वित्त तंत्र बनाना होगा, जिनमें
  • कम जोखिम वाले वित्तीय मॉडल और कम ब्याज दरों पर हरित ऋण प्रदान किए जाएं।
  • ग्रीन रिपोर्टिंग को अनिवार्य किया जाए, ताकि पारदर्शिता बढ़े और निवेशकों का विश्वास बढ़े।
  • कार्बन उत्सर्जन रिपोर्टिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप एमएसएमई को सक्षम किया जाए।
  • जलवायु वित्त से जुड़ी जानकारी और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएं ताकि एमएसएमई सही दिशा में कदम बढ़ा सकें।

भारत को जलवायु वित्त और नीति समर्थन के जरिए एमएसएमई को हरित बदलाव के लिए सक्षम बनाना होगा। सही सहयोग मिलने पर ये छोटे उद्योग देश के नेट-जीरो लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यदि एमएसएमई को जलवायु वित्त तक सही तरीके से पहुंच प्राप्त हो, तो वे न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि आर्थिक समृद्धि में भी योगदान कर सकते हैं।

@climateकहानी