जस्टिन ट्रूडो ने दिया इस्तीफा, बोले एक अफसोस रह गया
- Post By Admin on Jan 07 2025
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने लगभग एक दशक तक देश की सत्ता संभालने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। सोमवार को ओटावा में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इस बड़े फैसले की घोषणा की। 53 वर्षीय ट्रूडो ने अपनी उपलब्धियों और चुनौतियों के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण अफसोस का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि अपने कार्यकाल के दौरान वह कनाडा की चुनावी प्रक्रिया में सुधार लाने का सपना पूरा नहीं कर पाए।
क्या है ट्रूडो का अफसोस?
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रूडो ने कहा, "अगर मुझे किसी बात का पछतावा है खासकर जब हम इस चुनाव के करीब पहुंच रहे हैं, तो वह यह है कि मैं इस देश में सरकार को चुनने के तरीके को बदल नहीं पाया। मेरा सपना था कि कनाडाई नागरिकों को चुनाव में एक ही बैलेट पेपर पर दूसरा और तीसरा विकल्प चुनने का अवसर मिले।"
उन्होंने आगे कहा कि उनके लिए यह स्पष्ट हो गया है कि अगर उन्हें अपनी ही पार्टी के भीतर आंतरिक संघर्षों का सामना करना पड़ेगा, तो वह आगामी चुनाव में जनता के लिए सबसे अच्छा विकल्प नहीं बन सकते। इसी कारण उन्होंने पीछे हटने का निर्णय लिया।
आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियां बनीं कारण
ट्रूडो के इस्तीफे के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं। हाल के वर्षों में कनाडा में बढ़ती महंगाई और उनकी पार्टी के भीतर असंतोष ने ट्रूडो की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए। इन मुद्दों को लेकर उन्हें विपक्ष के साथ-साथ अपनी पार्टी के सदस्यों से भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
कंजर्वेटिव पार्टी की बढ़ती ताकत
लिबरल पार्टी की गिरती लोकप्रियता ने भी ट्रूडो के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाल ही में आए सर्वेक्षणों के अनुसार, लिबरल पार्टी कंजर्वेटिव पार्टी से 20 अंकों से पीछे चल रही है। कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। पोलीवरे ने ट्रूडो की आर्थिक और सामाजिक नीतियों की जमकर आलोचना की है।
संसदीय कार्यवाही स्थगित
इस्तीफे के बाद ट्रूडो को कनाडा के गवर्नर जनरल से 24 मार्च तक संसदीय कार्यवाही स्थगित करने की अनुमति मिल गई है। इससे लिबरल पार्टी को खुद को संगठित करने और आगामी चुनावों के लिए रणनीति बनाने का समय मिल जाएगा।
चुनावी सुधार की अधूरी इच्छा
जस्टिन ट्रूडो ने अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़े फैसले लिए, लेकिन चुनावी प्रक्रिया में सुधार उनका सबसे बड़ा अधूरा सपना बनकर रह गया। वह चाहते थे कि कनाडा की चुनाव प्रणाली में रैंक्ड चॉइस वोटिंग जैसी व्यवस्था लागू हो, जिसमें मतदाता अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार वोट डाल सकें।