200वीं जयंती पर वृक्षारोपण कर याद किए गए स्वामी दयानंद सरस्वती 

  • Post By Admin on Oct 24 2024
200वीं जयंती पर वृक्षारोपण कर याद किए गए स्वामी दयानंद सरस्वती 

लखीसराय : स्वामी दयानंद सरस्वती के 200वीं जयंती वर्ष पर पर्यावरण भारती द्वारा वृक्षारोपण किया गया। वृक्षारोपण का नेतृत्व पर्यावरण प्रहरी हिमालय कुमार ने किया। 

पर्यावरण भारती के संस्थापक राम बिलास शाण्डिल्य ने कहा कि पर्यावरण संतुलन हेतु संसार के मानव को महापुरुषों के जन्मदिन, पुण्यतिथि तथा मांगलिक कार्यों के शुभ अवसर पर वृक्षारोपण अभियान चलाना आवश्यक है। पृथ्वी पर केवल 15 फीसदी ही जंगल बचा है। जबकि 33 प्रतिशत जंगल अनिवार्य है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के परिणामस्वरूप बंगाल की खाड़ी में दाना नामक चक्रवात आया हुआ है। वहीं कुछ दिन पहले अमेरिका में पर्यावरण मिल्टन नामक चक्रवात आया था। पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्षारोपण आवश्यक है। दूसरा कोई विकल्प दुनियाभर के वैज्ञानिकों के पास नहीं। वृक्षों की कमी के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग हो रहा है। हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। यह संसार के मानव जीवन हेतु खतरनाक है। अतः पेड़ लगायें, मानव जीवन बचायें। 

पर्यावरण प्रहरी निखिल रंजन कुमार ने बताया कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी के 200वीं जयंती वर्ष है। वे भारत के महान संत होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उनका जन्म गुजरात के राजकोट जिला के टंकारा में 12 फरवरी 1824 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मूल शंकर था। उनके पिताजी करशन जी लालजी तिवारी शिवभक्त थे। जबकि माताजी अमृता(अम्बा) बाई वैष्णव थीं। 

उन्होंने बताया कि, उनके पिताजी ने शिवरात्रि में व्रत रखने कहे, परन्तु रात्रि में चूहों ने शिवलिंग पर उत्पाद मचाया। इसे देखकर बालक मूल शंकर मन में विचार करने लगे और मंदिर से लौट कर घर चले गए। उन्होंने संस्कृत साहित्य तथा वेदों का गहन अध्ययन किये। उनके गुरू विरजानंद दण्डीश थे। गुरूजी ने उनका नाम दयानंद सरस्वती रखा। स्वामी दयानंद सरस्वती जी की छोटी बहन और चाचा का हैजा में मृत्यु हो गया। इससे वैराग्य भाव के कारण 1846 में सत्य की खोज में घर छोड़ दिये। 1875 में मुम्बई के गिरगाँव में आर्य समाज की स्थापना किये। 1876 में सबसे पहले अंग्रेज सरकार से स्वराज्य की माँग किये। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक राजस्थान के उदयपुर में लिखे। उनका प्रसिद्ध नारा था। वेदों की ओर लौटो। 

उन्होंने आगे बताया कि, उनका आदर्श वाक्य था "कृण्वन्तो विश्वमार्यम"। 30 अक्टूबर 1883 को राजस्थान के अजमेर में दूध में जहर देकर स्वामी जी को सदा के लिए सुला दिये। इससे पहले भी 44 बार उन्हें मारने का प्रयास हुआ। वे पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। वे निराकार ब्रह्म की उपासना करते थे। ऐसे महापुरुष के 200वीं जन्मवर्ष के शुभ अवसर पर वृक्षारोपण स्मरणीय कार्य है। 

पर्यावरण भारती के वृक्षारोपण कार्यक्रम में निखिल रंजन, राम बिलास शाण्डिल्य, बैंककर्मी विनोद साह, अधिवक्ता विनय कुमार, अविनाश कुमार, नीरज नयन, सुमित कुमार रवि, हिमालय कुमार, अजय कुमार, सुधीर कुमार सिन्हा, यशस्वी, विजय कुमार साह, छात्र अमन कुमार, अंकित कुमार इत्यादि ने भाग लिए।