रामबाग की छात्रा ने आत्महत्या की या इस समाज ने उसकी हत्या कर दी

  • Post By Admin on May 27 2018
रामबाग की छात्रा ने आत्महत्या की या इस समाज ने उसकी हत्या कर दी

क्या सत्-प्रतिशत नम्बर लाना सफलता की गारंटी है?
अगर नहीं तो कम नम्बर आने पर हम क्यूँ अपने बच्चों को कोसते हैं?
क्या अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करना जायज़ है?

और इसी तरह के कई सवाल मन में घूम रहे हैं जब से पता चला है कि बारहवीं में कम नम्बर आने पर एक छात्रा ने ख़ुदकुशी कर ली. समझ में नहीं आ रहा है कि उसने ख़ुदकुशी की या हमने और आपने मिल कर उसकी हत्या कर दी.

इस सवाल का कोई भी जवाब देने से पहले हमें अपने मन में झाँकने की ज़रूरत है. हम कहने को तो औरों को कह देते हैं कि नम्बर कोई बड़ी चीज़ नहीं है मगर जब हमारे बच्चे कम नम्बर लाते हैं या फ़ेल हो जाते हैं, तब भी क्या यही उदारवादी सोच हम रख पाते हैं.

जवाब आप भी जानते हैं कि क्या होगा!

आज उस छात्रा की मौत से हम सभी विचलित हैं मगर क्या हम गुनहगार नहीं हैं? क्या उसके माँ-बाप गुनहगार नहीं है? क्या ये समाज और वो रिश्तेदार जो परीक्षा का नाम सुनते ही रिज़ल्ट के लिए प्रेशर बनाने लग जाते हैं उनकी ग़लती नहीं है?

मगर क्या फ़ायदा अब इन सवालों का हर साल ऐसी घटनाएँ होती हैं. हम दुःख प्रकट करते हैं और फिर भूल कर अपने बच्चों पर टॉप आने का प्रेशर बनाने लग जाते हैं. जबकि हम सब को पता है कि इन नम्बरों से कुछ नहीं होने वाला. अगर टैलेंट हैं तो सौ में से तीस नम्बर लाने वाला भी किसी मल्टिनेशनल कम्पनी में लाखों का पैकेज पा जॉब कर रहा होगा और जो टैलेंट नहीं है तो ये सौ में सौ नम्बर भी आपको कहीं नहीं ले जाएँगे.

वक़्त है अब भी आने वाली नस्लों को इस मौत के कुएँ से बचा लें. नहीं तो ये टॉप करने की अंधी दौर इन्हीं मौतों से हो कर गुज़रेंगी!

- अनु रॉय