बदलते वक्त के साथ अतीत की गहराई में गुम हो गई अनमोल धरोहर

  • Post By Admin on Apr 18 2023
बदलते वक्त के साथ अतीत की गहराई में गुम हो गई अनमोल धरोहर

बेगूसराय: मंगलवार को विश्व धरोहर दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर धरोहरों को संजोने के लिए बड़ी-बड़ी बातें होंगी। लेकिन बेगूसराय के एक अनमोल धरोहर में जहां थे घंटी, शंख, हवन संग मीठे पवन के झोंके, बदलते वक्त के साथ बदली दुनिया और दब गई कहानी भी अतीत की गहराई में, जिससे सियाराम जी भी अछूते नहीं रहे।

यह हालत है एक अदभुत धरोहर, बेगूसराय जिला के सलौना की बड़ी ठाकुरबाड़ी की। यह मंदिर पूरी के जगन्नाथ मंदिर का एहसास देता है। कहा जाता है कि लाल पत्थर से निर्मित करीब 250 साल पुराने इस मंदिर को बनाने में लगभग 16 साल लगे थे। 125 मिस्त्री काम करते रहे, जिनके लिए आठ लोहार सिर्फ छेनी बनाने का काम करते थे। उस समय पांच लाख की लागत से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। 36 सौ बीघा जमीन की उपज से जो भी रकम आता था, वह इस मंदिर में ही लगाया जाता था। इस मंदिर को निर्माण में पैसा पानी की तरह बहाया गया। मुख्य गुंबद के साथ-साथ चारों ओर का परकोट गुंबद सोना से सजाया गया था। करोड़ों की लागत से राम सीता की मूर्ति स्थापित की गई थी। जो इस मंदिर की कभी शोभा हुआ करती थी, वह भी अब नहीं है, चोरी हो गई। निश्चित रूप से अतीत को संजोकर ही वर्तमान को बेहतर कर सकते हैं।

बुजुर्गों का कहना है कि इसके सर्वप्रथम सेवक उत्तर प्रदेश स्थित इटावा के स्वामी मस्तराम जी थे। ठाकुरबाड़ी के 36 सौ बीघा जमीन से हुई उपज रामलला के देख-रेख मे उपयोग की जाती थी। उनके बाद क्रमशः लक्ष्मी दास, विष्णु दास, स्वामी भागवत दास, महंत रामस्वरूप दास पूरी तरह से कर्तव्यनिष्ठ होकर मंदिर के प्रांगण और राम लला की सेवा में समर्पित होकर आजीवन इस धरोहर की नींव बने रहे। उसके बाद इस मंदिर के दीवारों को बचाते रहे महंत विपिन बिहारी दास। लेकिन इनका निधन होते ही मंदिर का बदहाल समय आ गया। सभी लोग इस धरोहर से दूर होते चले गए। लाल पत्थर से निर्मित इस मंदिर रुपी ठाकुरबाड़ी की अद्भुत कलाकृति शायद बिहार में कहीं और नहीं है। स्थानीय लोग कहते है इस तरह का एक मंदिर सिर्फ हरिद्वार में देखा गया है। निश्चित रूप से अतीत को संजोकर ही हम वर्तमान को बेहतर कर सकते हैं।

स्थानीय निवासी वीएमसीटी के चेयरमैन डॉ. रमण कुमार झा कहते हैं कि यह आज भी कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने दामन में समेटे कहानियां सुना रहा है, अतीत के गहराइयों में शनै-शनै दफन होते धरोहरों की। जिन धरोहरों को कभी यहां का गौरव माना जाता था। आज अपने हालत पर आंसू बहा रहे इस गौरवशाली इतिहास को सजाने, संवारने, बचाने का जिम्मा ना सरकार ले रही है और ना स्थानीय लोग। मंदिर का पुनरुद्धार नितान्त आवश्यक है। मंदिर के सहारे बहुत कुछ बेहतर किया जा सकता है। अगर यहां स्वास्थ्य या शिक्षा का केंद्र बनाकर विस्तार किया जाए तो एक अदभुत प्रयास होगा। जो सिर्फ ठाकुरबाड़ी ही नहीं, क्षेत्र का भविष्य बदल देगा। कुल मिलाकर कहें तो जिस ठाकुरबाड़ी ने सलौना रेलवे स्टेशन एवं स्कूल इत्यादि दिया, आज वही ठाकुरबाड़ी अपनी बदहाली पर मौन खड़ा किसी भागीरथ का इंतजार कर रहा है। आज जब विश्व धरोहर दिवस मनाया जा रहा है तो शासन, प्रशासन, जनप्रतिनिधि और समाज को इस अनमोल धरोहर को बचाने का प्रयास शुरू करना चाहिए।