महाकुंभ में माँ बाप करेंगे जिंदा बेटी का पिंडदान
- Post By Admin on Jan 09 2025
प्रयागराज : प्रयागराज महाकुंभ में एक ऐसी घटना घटित हुई। जिसने धार्मिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक नया इतिहास रचा। आगरा के पेठा व्यवसायी दिनेश सिंह और उनकी पत्नी रीमा ने अपनी 13 वर्षीय बेटी राखी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। जिसे अब “गौरी” के नाम से जाना जाएगा। यह कदम न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन गया है।
गंगा स्नान के बाद लिया निर्णय
महाकुंभ मेले में गंगा स्नान के बाद, राखी ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच साध्वी बनने का संकल्प लिया और उनका नामकरण “गौरी” किया गया। अब वह जूना अखाड़े की साध्वी बन चुकी हैं और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हो गई हैं। उनका पिंडदान 19 जनवरी को अखाड़े के शिविर में किया जाएगा, जो उनके आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक होगा। इसके साथ ही वह अपने माता-पिता के परिवार से अलग हो जाएंगी और गुरु के परिवार का हिस्सा बन जाएंगी।
एक होनहार छात्रा से साध्वी बनने तक का सफर
राखी, जो पहले स्प्रिंग फील्ड इंटर कॉलेज में कक्षा नौ की छात्रा थीं और आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखती थीं, अचानक साध्वी बनने का निर्णय ले बैठी। यह फैसला तब लिया, जब उन्होंने अखाड़े के साधु-संतों का जीवन देखा और उनसे प्रेरणा ली। राखी ने बताया, “शुरुआत में साधुओं की धुनी रमाते देखकर डर लग रहा था, लेकिन चौथे दिन मेरे मन में वैराग्य जागा। मैंने तय कर लिया कि मैं अपना जीवन सनातन धर्म के प्रचार के लिए समर्पित करूंगी।”
गुरु की दीक्षा और साध्वी बनने की प्रक्रिया
राखी के परिवार से पारिवारिक संबंध रखने वाले जूना अखाड़े के श्रीमहंत कौशल गिरि ने राखी को वैदिक रीति-रिवाज से साध्वी बनने की दीक्षा दी। महंत कौशल गिरि ने राखी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रहीं। महंत ने कहा, “परिवार ने बिना किसी दबाव के बेटी का दान किया। यह राखी और उसके माता-पिता की सामूहिक इच्छा थी। अब गौरी को अध्यात्म और धर्म की शिक्षा दी जाएगी।”
माता-पिता का समर्थन और भावनाएं
राखी के पिता दिनेश सिंह और मां रीमा अपनी बेटी के फैसले से खुश हैं। दिनेश सिंह ने कहा, “बेटी की खुशी ही हमारी खुशी है। जब उसने साध्वी बनने की इच्छा जताई, तो हमें गर्व हुआ कि वह धर्म की सेवा करना चाहती है।” वहीं, रीमा ने बताया कि चार साल पहले जब कौशल गिरि ने उनके मोहल्ले में भागवत कथा कराई थी, तभी से उनके मन में भक्ति जागृत हुई थी।
छोटी बहन और सहेली की भावनाएं
राखी की छोटी बहन निक्की अपनी बहन के साध्वी बनने के फैसले से थोड़ी उदास है। वहीं, उसकी सहेली लक्षिता ने फोन पर रोते हुए उसे इस फैसले से रोकने की कोशिश की, लेकिन गौरी ने दृढ़ता से अपने धर्म के पथ को चुना।
कुंभ में परंपराओं का पुनर्जीवन
दान और भक्ति के प्रतीक महाकुंभ में कन्या दान की परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए गौरी का साध्वी बनना एक नई मिसाल है। महंत कौशल गिरि ने कहा कि कुंभ और महाकुंभ में कन्या दान एक पुरानी परंपरा है और गौरी के रूप में उन्होंने एक नई पीढ़ी को धर्म के पथ पर समर्पित होते देखा।
आगे की योजना
गौरी अब अखाड़े की दिनचर्या और चुनौतियों को स्वीकार कर चुकी हैं। वह कहती हैं, “अब मेरा जीवन केवल सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और अध्यात्म के लिए समर्पित रहेगा।” यदि वह पढ़ाई जारी रखना चाहेंगी, तो उन्हें अध्यात्म और धर्म से जुड़ी शिक्षा दी जाएगी। महाकुंभ 2025 में आगरा के परिवार द्वारा किया गया यह ‘कन्या दान’ न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया है, बल्कि यह समाज को यह दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है। गौरी का संकल्प और परिवार का समर्थन इसे महाकुंभ की सबसे यादगार घटनाओं में से एक बना देता है।
समाज के लिए एक प्रेरणा
राखी का यह निर्णय समाज को यह संदेश देता है कि यदि किसी के पास सही मार्गदर्शन हो और वह धर्म के प्रति समर्पित हो, तो वह कोई भी उम्र हो, सही रास्ते पर चलने का साहस रखता है। उनकी दृढ़ता और परिवार का समर्थन न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन गया है।