जमीन के लिए अमृत है गोबर और सूखा पत्ता

  • Post By Admin on Feb 23 2023
जमीन के लिए अमृत है गोबर और सूखा पत्ता

बेगूसराय : भारत दुनिया में कृषि रसायनों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहां रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक के बढ़ते उपयोग से जमीन की गुणवत्ता घट रही है। इसके दुष्प्रभावों से मनुष्य, पशु, पक्षी, पानी और पर्यावरणीय जीवन असुरक्षित हो गया है। बड़े पैमाने पर ऐसे रसायनों का खेत में इस्तेमाल हो रहा है, जिसे दुनिया के विभिन्न देशों ने प्रतिबंधित कर दिया है। इसका प्रतिफल है कि औसतन एक भारतीय प्रत्येक दिन 0.27 मिलीग्राम कीटनाशक आहार के साथ अपने पेट में डालता है। सब्जी, अनाज, फल, दूध एवं पानी के जरिए मानव शरीर में पहुंचकर दम्मा, साइनस, हृदय रोग, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, थायरॉइड, एलर्जी, मोतियाबिंद एवं कैंसर का कारण बन रहा है। जबकि प्रकृति में खेती के लिए स्वयं ही सभी व्यवस्था कर रखी है। पहले प्राकृतिक व्यवस्था से खेती होती थी तो लोग गंभीर बीमारी से कम प्रभावित होते थे। अब सरकार द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जाने के बावजूद लोग पतझड़ में पत्तों का खेत में सदुपयोग करने के बदले उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। जबकि यह सुखा पत्ता खेती-किसानी में उपयोग के बाद लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

प्रकृति और पर्यावरण के लिए लगातार लोगों को प्रेरित करने वाले शिव प्रकाश भारद्वाज बताते हैं कि अभी पतझड़ के मौसम में मानव जाति का सबसे बड़े हितैषी पेड़-पौधे सूखे पत्ते के रूप में धन की बारिश कर रहे हैं। लेकिन मूर्ख मानव इसे जलाकर खुद की असमय हत्या कर रहा है। गाय के गोबर और सूखे पत्ते को मिलाने के बाद साल भर में अमृत रूपी जैविक खाद मिल जाता है। उन्होंने बताया कि प्रकृति ने कभी भी आसमान से डीएपी या पोटाश की बारिश नहीं की है, फिर भी लाखों वर्ष से धरती हरी भरी है। जंगल में सूखे पत्ते ही खाद का काम करते हैं। विभिन्न रोगों से कराह रहे मानव की रक्षा जैविक खेती ही कर सकती है। कृषि और कृषि प्रधान देश में अजीब सी सरकार है। शहरी क्षेत्र में गौ पालन नहीं कर सकते हैं, जबकि सबसे ज्यादा दूध और दुग्ध उत्पादन यहीं उपयोग में लाया जाता है। हर बड़े आवासीय विद्यालय, महाविद्यालय, सोसाइटी एवं मुहल्ले में गौ पालन की सुविधा दी जाए। सब्जी और खाद्य अपशिष्ट रिसायकल का यह सबसे अच्छा तरीका है।अन्य विभागों की तरह ही डेयरी विभाग की स्थापना करनी चाहिए। यह काम किसानों को आउटसोर्स कर किया जा सकता है। सैकड़ों एकड़ में फैले संस्थान के लिए यह वरदान होगा, रोजगार सृजन में यह बड़ा बदलाव ला सकता है। जहर रूपी नकली दूध पीने वालों को राहत मिलेगी। मिनी फॉरेस्ट की स्थापना हर शहर एवं बड़े संस्थान में जल्द से जल्द किया जाए। करीब-करीब हर शहर जहर बन चुका है। कम समय में मिनी फॉरेस्ट शहरवासियों को राहत दे सकता है। मिनी फॉरेस्ट की स्थापना होते ही पक्षियों की संख्या बढ़ जाती है। यही पक्षी अपशिष्ट की रीसाइक्लिंग कर देते हैं। अपशिष्ट पानी का उपयोग ऐसे मिनी फॉरेस्ट में किया जा सकता है। भारद्वाज गुरुकुल परिसर में यह किया जा चुका है। बच्चों के बर्बाद खाना को चिड़िया चुन कर खा जाती है। लाखों लीटर पानी की बचत यह मिनी फॉरेस्ट करते हैं। परिसर में बाहर के मुकाबले तीन से चार डिग्री टेम्परेचर कम होता है। गर्म जमीन ही ग्लोबल वार्मिंग करता है। पेड़ की छाया जमीन को कम गर्म होने देता है। अगर सूखे पत्तों को जल्द सड़ाना चाहते हैं तो उसकी कुट्टी कर दें।

प्रकृति से खिलवाड़ कर ग्रामीण क्षेत्र में ताड़ का पेड़ तेजी से काट दिया गया। नतीजा ठनका और बिजली से कई लोग हर वर्ष मारे जा रहे हैं। यही ऊंचे-ऊंचे पेड़ आम लोगों की जान बचाते थे। बिजली का असर पेड़ पर होता था, मानव सुरक्षित रह जाता था।क्षणिक लाभ के लिए हमने खुद से अपना नुकसान करना शुरू कर दिया है। हो ना हो प्रकृति मानव की आबादी को कम करने के लिए उसे मतिभ्रष्ट कर रही हो। आधुनिकता की अंधी दौड़ में तेजी से भाग रहे मानव को सतर्क होना होगा। अन्यथा यह दौड़ मानव ही नहीं, पूरे प्रकृति के लिए जानलेवा बन जाएगा।