बिहार गुरू के तत्वावधान में लोकमान्य तिलक स्मरण व संवाद का आयोजन

  • Post By Admin on Aug 01 2023
बिहार गुरू के तत्वावधान में लोकमान्य तिलक स्मरण व संवाद का आयोजन

मुजफ्फरपुर : लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता थे जिन्होंने भारतीयों के मन में राष्ट्रीय भाव को जगाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उनके समर्थन में संगठित होकर लोगों ने न सिर्फ स्वाधीनता की लड़ाई में अपने जीवन को समर्पित किया बल्कि उन्हें एक ऐसे राष्ट्रीय नेता के रूप में स्वीकारा भी। इसलिए लोकमान्य तिलक के स्मरण और संवाद को याद करना और उनसे जुड़े विचारों को समझना महत्वपूर्ण है। 

आज इसी क्रम में उनके पुण्यतिथि पर बिहार गुरु के तत्वाधान में लोकमान्य तिलक स्मरण व संवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए अमर बाबू ने तिलक जी के ख्यातियों पर प्रकाश डाला । इस विषय पर जानकारी देते हुए अविनाश तिरंगा उर्फ़ ऑक्सीजन बाबा ने कहा कि आज तिलक को स्मरण करना ही उद्देश्य नहीं है बल्कि उन्हें खुद में समाहित कर उनके जैसा बनना लक्ष्य है। लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता रामकृष्ण पंत तिलक एक शिक्षक थे और माता गंगाबाई तिलक एक साध्वी थीं। तिलक ने अपनी शिक्षा विद्यालय में पूरी की और उसके बाद दक्षिण पश्चिम रेलवे के एक अधिकारी के रूप में काम करना शुरू किया। लेकिन उनका वास्तविक इच्छित लक्ष्य राष्ट्रीय सेवा और देश के स्वतंत्रता के लिए काम करना था। तिलक को जागृति होने का अनुभव वर्ष 1896 में बाई बाबा सठे के संगठन की धार्मिक यात्रा के दौरान हुआ। उनके द्वारा की गई इस यात्रा ने उन्हें राष्ट्रीय चेतना के साथ संपन्न किया और उन्हें अपने लक्ष्य की दिशा में एक मजबूत भारतीय राष्ट्र की स्थापना के लिए संकल्पित किया।

इस कार्यक्रम में तिलक के संवादों में राष्ट्रीय एकता और स्वावलंबन के महत्व को बहुत जोर दिया गया। उनके माध्यम से लोगों को धर्म, संस्कृति और इतिहास के महत्व के बारे में शिक्षा मिलती थी। उनके अध्यात्मिक भावनाओं को देखते हुए उन्हें "लोकमान्य" का उपाधि दिया गया था, जिसका अर्थ होता है "लोक के आदर्श"। उनके विचारों में स्वराज्य, समाज सुधार, शिक्षा, गणतंत्र और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर बहुत जोर था। तिलक ने विदेशी शिक्षा की विरोधीता की और उन्होंने स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार करने के लिए अखिल भारतीय श्रेणी शखा की स्थापना की। उन्होंने "स्वराज या स्वदेशी" नारे को लोकप्रिय बनाया और इस नारे के माध्यम से लोगों को देश के स्वावलंबन के महत्व को समझाया। भारतीय नौजवानों को समर्थ, संघटित और देशप्रेमी बनाने के लिए उन्होंने तरुण विवाह पद्धति का प्रचार किया और विवाह के मध्यम से देश के एकता को बढ़ावा दिया। उनके संघी विचारधारा का उद्दीपन और प्रेरणा बाद में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों ने कामयाबी हासिल की।

लोकमान्य तिलक का निधन 1 अगस्त, 1920 को हुआ, लेकिन उनके संवाद और विचार अमर हैं। उनके द्वारा दी गई सीखों, संघटना का महत्व, स्वदेशी आंदोलन, राष्ट्रीय एकता और स्वाधीनता के लिए संघर्ष का प्रेरणा पूरे देश को आज भी एक स्मृति और संवाद के रूप में रहेगा। उनके स्मरण और संवाद को याद करने से हम एक ऐसे महान नेता के संदेश को समझेंगे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया और जिनका योगदान भारतीय समाज के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। सुदामा न्यूज़ परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में विभेष त्रिवेदी, प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, शम्भुनाथ चौबे, रामप्रवेश सिंह, डब्लू चौधरी, महंत मृत्युंजय दास, गणेश सिंह, अखिलेश राय, सोनू सिंह, सुनील गुप्ता, कुमार विरल, मनोज सिंह, स्वामी जी समेत दर्जनों लोग उपस्थित रहे।