पत्नी को सांवली कहना या खाने में कमी निकालना क्रूरता नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट
- Post By Admin on Jul 27 2025

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैवाहिक जीवन से जुड़े एक संवेदनशील और पुराने मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि पत्नी को सांवले रंग को लेकर ताना मारना या उसके खाने में कमियां निकालना, भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एस.एम. मोदक की एकल पीठ ने की, जिसने आत्महत्या के लिए उकसाने के 27 वर्ष पुराने मामले में आरोपी पति को बरी कर दिया।
यह मामला वर्ष 1998 का है, जब सदाशिव रूपनवार को उसकी 22 वर्षीय पत्नी प्रेमा की मौत के बाद आत्महत्या के लिए उकसाने और मानसिक उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था। प्रेमा की लाश ससुराल से लापता होने के कुछ दिन बाद एक कुएं में मिली थी। निचली अदालत ने उस समय सदाशिव को दोषी करार देते हुए 5 साल की सजा सुनाई थी, जबकि ससुर को बरी कर दिया गया था।
कोर्ट की अहम टिप्पणियां:
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“यह सामान्य वैवाहिक कलह है, आपराधिक उत्पीड़न नहीं।”
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“रंग या खाना बनाने को लेकर ताना देना दुखद जरूर हो सकता है, लेकिन इसे आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं माना जा सकता।”
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“अभियोजन पक्ष उत्पीड़न और आत्महत्या के बीच कोई ठोस कड़ी नहीं स्थापित कर सका।”
न्यायालय ने कहा कि आरोपी के व्यवहार को “दांपत्य जीवन में सामान्य मतभेद” की श्रेणी में रखा जा सकता है, न कि आपराधिक उत्पीड़न की। जस्टिस मोदक ने कहा कि क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसावे की धाराएं तभी लागू होती हैं जब आरोपी का व्यवहार लगातार, गंभीर और जानबूझकर मानसिक या शारीरिक यातना देने वाला हो।
निचली अदालत की खिंचाई
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जज ‘क्रूरता’ और ‘उकसावे’ की कानूनी परिभाषा को सही ढंग से लागू करने में विफल रहे। इसलिए आरोपी को दोषी ठहराना न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।
इस फैसले ने न्यायिक व्यवस्था में 498A जैसे संवेदनशील कानूनों की व्याख्या और दायरे को लेकर नई बहस छेड़ दी है। यह फैसला बताता है कि हर वैवाहिक विवाद को आपराधिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता जब तक कि ठोस साक्ष्य न हों।
यह निर्णय वैवाहिक जीवन की जटिलताओं को लेकर न्यायपालिका की सोच में संतुलन की झलक देता है, जिसमें व्यक्तिगत आचरण और कानूनी सीमा रेखा के बीच स्पष्ट अंतर किया गया है।