साहित्य दधीचि महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

  • Post By Admin on Nov 27 2024
साहित्य दधीचि महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

मुजफ्फरपुर : 14 जुलाई सन् 1912 को जन्में साहित्य जगत के महान कवि और लोक साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश 27 नवंबर 1994 को पंचतत्व में विलीन हुए थे। आज 27 नवंबर को समस्त प्रबुद्धजन उनके पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन करते है। राकेश ने अपनी पूरी जिंदगी साहित्य साधना में समर्पित कर दी और लोकजीवन, प्रकृति, शास्त्र और संस्कृत के गहरे अध्ययन के साथ अपनी रचनाओं को सृजा। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। विशेषकर उनकी काव्य रचनाएं जैसे चट्टान, गांडीव, मेघदुंदुभि, गंधज्वार और पद्मरागा भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

राकेश का साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं था, बल्कि वे भारतीय लोक संस्कृति, लोकगीतों और लोककाव्य के संरक्षक थे। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वे भदई गांव में रहते हुए लोक गायकों और गायिकाओं से लोकगीतों को सुनते और उन्हें संकलित करते थे। मैथिली लोकगीत संग्रह उनकी इस कड़ी मेहनत का परिणाम है। जो आज भी अतुलनीय माना जाता है। इस पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध साहित्यकार पंडित अमरनाथ झा ने लिखी थी। जो राकेश के काव्य के महत्व को उजागर करती है।

राकेश की कविताओं में भारतीय गांवों की सुगंध, कृषक जीवन, मजदूरी और खेती-बाड़ी के संघर्ष को प्रकट किया गया है। उनकी कविताओं में प्रकृति की जीवंतता का चित्रण और मिथकीय तत्वों का समावेश उनकी साहित्यिक दृष्टि की गहराई को दर्शाता है। बीआरएबीयू की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. पूनम सिन्हा कहती हैं, “राकेश जी जितने शास्त्र से जुड़े थे, उतने ही लोक जीवन से भी जुड़ी उनकी कविता में महाकाव्यात्मक औदात्य दिखाई देता है।”

वरिष्ठ कवयित्री और कथा लेखिका डॉ. इन्दु सिन्हा कहती हैं, “राकेश जी की रचनाओं में मिट्टी की सुगंध और जनजीवन के संघर्ष को महसूस किया जा सकता है। उनका साहित्य जीवन के यथार्थ और संघर्ष को बड़ी सहजता से प्रस्तुत करता है।”

राकेश के काव्य में न केवल शास्त्र, बल्कि समाज के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता और लोक जीवन की सजीवता भी झलकती है। डॉ. संजय पंकज, जो राकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर निरंतर लिखते रहे हैं, बताते हैं, “राकेश जी की कविताएं हमें संवेदनशील बनाती हैं। उनके काव्य में शौर्य, पराक्रम और पुरुषार्थ के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का वैभव भी प्रकट होता है।”

उनकी कविताओं में हमेशा भारतीयता, स्वाभिमान, संस्कार और सामाजिक चेतना की गूंज रही। वे कभी भी अपने मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं करते थे। उनकी रचनाओं में प्रगतिशीलता और परंपरा का अद्भुत संतुलन था, जो उन्हें भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में स्थापित करता है।

राकेश के जामाता ब्रजभूषण शर्मा ने भी कहा, “उनके साथ रहते हुए मुझे समय-समय पर उन साहित्यकारों के दर्शन करने का अवसर मिला। जिन्होंने साहित्य जगत को सशक्त किया। वे साहित्य के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और अपने जीवन के हर क्षण को साहित्य की सेवा में बिताते थे।”

डॉ. विजय शंकर मिश्र कहते हैं कि महाकवि राकेश केवल छायावादी कवि नहीं थे बल्कि लोक साहित्य मर्मज्ञ भी थे। मैथिली लोक साहित्य पर उन्होंने बहुत श्रम साध्य कार्य किया है।

महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश की पुण्यतिथि पर उनकी साहित्यिक यात्रा को याद करते हुए, हम उनके योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके काव्य, उनकी दृष्टि और उनके विचारों का प्रभाव आज भी साहित्य प्रेमियों और लेखकों के बीच गहरा है। राकेश की कविता आज भी हमारे दिलों में जीवित है और उनका साहित्य लोकजीवन के अनमोल रत्न के रूप में हमेशा चमकता रहेगा।