पुरखा पुरनिया संवाद में याद किए गए पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर

  • Post By Admin on Aug 19 2023
पुरखा पुरनिया संवाद में याद किए गए पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर

मुजफ्फरपुर : शनिवार को मालीघाट स्थित सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान द्वारा पुरखा पुरनिया संवाद का आयोजन प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार मिश्र की अध्यक्षता में की गई। इस अवसर पर संगीत के प्रोफेसर पंडित डॉ. राकेश कुमार मिश्र को पुरखा पुरनिया सम्मान से अंगवस्त्र एवं लोकगीतों में आजादी के स्वर प्रदान कर सम्मानित किया गया।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. राकेश कुमार मिश्र ने बताया कि ईश्वर से साक्षात्कार का सबसे सरल और सशक्त माध्यम है-संगीत। साथ ही उन्होंने 
पंडित विष्णु दिगंबर जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंडित पलुस्कर जी समाज को संगीत से जोड़ेने के लिए गांव-गांव घूम कर संगीत का प्रचार प्रसार किए और बच्चों को संगीत सीखने हेतु विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने गंधर्व संगीत महाविद्यालय की स्थापना भी की। आंखों की रोशनी खोने के बाद भी अनेकानेक शिष्य तैयार करने के साथ-साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक से एक अनमोल कलाकार भी दिए और पंडित जी ने संगीत पर 50 से अधिक किताबें लिखीं, और महिलाओं की संगीत में रुचि जगाने का कार्य भी किए।

सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान के संयोजक लोक कलाकार सुनील ने बताया कि विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को बचपन में एक भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। समीपवर्ती एक कस्बे में दत्तात्रेय जयंती के दौरान उनकी आंख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई उसके बावजूद भी दृढ़इच्छाशक्ति के कारण हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे भारतीय समाज में संगीत और संगीतकार की उच्च प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक, समर्थ संगीतगुरु, अप्रतिम कंठस्वर एवं गायन कौशल के घनी भक्तहृदय गायक हैं। पलुस्कर ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। पलुस्कर ने लाहौर में गान्धर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहित कर आधुनिक पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिए।

धन्यवाद ज्ञापन सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान के संरक्षक डॉक्टर एस. एस. बिहारी ने दी और बताया की संगीत ईश्वर को स्मृति में रखने का सबसे कारगर साधन है। यह सबसे ऊंची कला है और जो इसे समझते हैं वे भक्ति के सबसे ऊंचे सोपान पर हैं।'