महाकवि राकेश स्मृति पर्व का आयोजन, काव्यधारा और लोक साहित्य पर चर्चा
- Post By Admin on Nov 27 2024

मुजफ्फरपुर : महाकवि रामइकबाल सिंह राकेश की काव्यधारा और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए महाकवि राकेश स्मृति समिति के तत्वावधान में आमगोला के शुभानंदी में महाकवि राकेश स्मृति पर्व का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में राकेश के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद प्रमुख साहित्यकारों और विद्वानों ने उनके जीवन, रचनाओं और साहित्यिक योगदान पर विचार प्रस्तुत किए।
राकेश के काव्य में लोक और शास्त्र का अनूठा संगम :
बीआरएबीयू की भूतपूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. पूनम सिन्हा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राकेश की काव्यशक्ति की गहरी सराहना की। उन्होंने कहा, “राकेश जी जितने शास्त्र से जुड़े थे, उतना ही लोक से भी जुड़े थे। उनके काव्य में जहां मिथकीय तत्वों का संगम है, वहीं गांव, कृषक, मजदूर और भारतीय लोकजीवन की सहजता भी प्रतिध्वनित होती है। उनका काव्य महाकाव्यात्मक औदात्य से ओत-प्रोत है। जिसमें भारतीय गांव का लोक उजागर हो उठता है।” डॉ. सिन्हा ने यह भी कहा कि राकेश जी को शास्त्र, संस्कृत और हिंदी दोनों विषयों का गहन ज्ञान था। जिसका उपयोग उन्होंने अपने साहित्य को समृद्ध करने में किया।
राकेश की कविता : संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों का प्रतीक :
डॉ. संजय पंकज ने राकेश की कविता को समय की आवश्यकताओं के अनुसार संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों का संवेदनशील चित्रण बताया। उन्होंने कहा, “राकेश जी की कविताएं हमें एक ऐसे समय में संवेदनशील बनाती हैं, जब मानवीय मूल्य तेजी से विघटित हो रहे हैं। वे शौर्य, पराक्रम और पुरुषार्थ के समर्थक थे। उनकी रचनाएं भारतीय संस्कृति के शाश्वत सत्य और वैभव को उजागर करती हैं।”
राकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध कार्य :
राकेश के जीवन और कृतित्व पर शोध करने वाले डॉ. केशव किशोर कनक ने उनके साहित्यिक योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “राकेश जी उस काव्य धारा के कवि थे, जो सौंदर्य बोध, राष्ट्रीयता और खड़ी बोली हिंदी की मसृणता से आगे बढ़कर प्रगतिशील चेतना की सजीवता के साथ प्रवाहित हुई। उन्होंने अपने काव्य में मिट्टी की सुगंध, जन जीवन की पीड़ा और संघर्ष को प्रकट किया।”
राकेश के लोक साहित्य योगदान पर चर्चा :
शिक्षाविद मधुमंगल ठाकुर ने राकेश के लोक साहित्य में योगदान पर जोर देते हुए कहा कि वे सिर्फ छायावादी कवि नहीं थे, बल्कि लोक साहित्य के गहरे मर्मज्ञ थे। उन्होंने मैथिली लोक साहित्य पर महत्वपूर्ण काम किया और इस क्षेत्र में उनके योगदान को व्यापक रूप से शोधित किया गया है।
राकेश की साहित्यिक समर्पण और कार्यशैली :
राकेश के जामाता ब्रजभूषण शर्मा ने आयोजन में अपने स्वागत संबोधन में कहा कि राकेश जी पूरी तरह से साहित्य के प्रति समर्पित थे। “मैंने उनके साथ बिताए समय में कई बड़े-बड़े साहित्यकारों को देखा। वे हमेशा साहित्य की चिंता और चिंतन में डूबे रहते थे।”
सम्माननीय विचारक और साहित्यकारों का योगदान :
इस आयोजन में विभिन्न सम्मानित साहित्यकारों और समाजसेवियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इनमें सेंट्रल बैंक के अवकाश प्राप्त अधिकारी प्रणय कुमार, जनप्रतिनिधि विभु कुमारी, कवयित्री डॉ. अनु, वैद्य ललन तिवारी, ब्रजभूषण शर्मा, मधुमंगल ठाकुर, प्रेमभूषण, सुधांशु राज, माला कुमारी, चैतन्य चेतन, अनुराग आनंद, कृशानु, राकेश कुमार सिंह, संतोष पाठक और शांतनु शामिल थे।
आयोजन का समापन और धन्यवाद ज्ञापन :
आयोजन के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन डॉ. केशव किशोर कनक ने किया। जिन्होंने महाकवि राकेश के योगदान को पुनः याद किया और उनके योगदान को साहित्य के विभिन्न आयामों में अमिट बताया। इस आयोजन के माध्यम से महाकवि राकेश की काव्यशक्ति और उनके योगदान को नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत किया गया। जिससे उनकी साहित्यिक धारा को और भी बल मिलेगा।