अचला सप्तमी 2025 : भगवान भास्कर के जन्मोत्सव पर विशेष
- Post By Admin on Feb 04 2025

4 फरवरी को माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर भगवान भास्कर का पावन जन्मोत्सव अचला सप्तमी के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस पर्व को सूर्य सप्तमी और रथ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान सूर्य के तेज, ऊर्जा और जीवनदायी शक्ति के प्रति समर्पित है, जिनके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है।
भगवान भास्कर: सृष्टि के संचालनकर्ता
भगवान भास्कर को साक्षात् नारायण का स्वरूप माना जाता है। वे संपूर्ण जगत के संचालनकर्ता हैं। वे ऋतुपति के रूप में सभी ऋतुओं के स्वामी हैं और उनके प्रभाव से ही पृथ्वी पर जीवन चक्र सुचारु रूप से चलता है। पं. जय किशोर मिश्र के अनुसार, भगवान सूर्य ही वे परम गुरु हैं जिनकी महावीर हनुमान जी ने भी उपासना की थी।
भगवान भास्कर के 12 रूपों को 12 महीनों के ज्योतिर्लिंग के समान महत्व प्राप्त है। उनके उपासक मग ब्राह्मण के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे प्राचीन काल से ही सूर्य आराधना के प्रमुख साधक रहे हैं।
अचला सप्तमी का व्रत और उसका महत्व
अचला सप्तमी के दिन व्रत करने का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन किए गए व्रत का पुण्य 14 वर्षों तक किए गए रविवार व्रत के समान माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु सूर्योदय के समय पवित्र नदियों या जलाशयों में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और विशेष मंत्रों का जाप करते हैं।
पौराणिक कथा और वेदों में उल्लेख
सनातन धर्म की रक्षा हेतु भगवान भास्कर ने कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया। इसलिए उन्हें कश्यप नंदन कहा जाता है। वेदों में भगवान सूर्य के महत्व को इन पंक्तियों में वर्णित किया गया है:
"नमस्ते रूद्र मान्यव रसा नाम पतेय नमः"
यह मंत्र सूर्य देव की अनंत ऊर्जा और उनकी दिव्यता का प्रतीक है।
मग बंधुओं की भव्य उपासना
सूर्य उपासक मग बंधु इस पर्व को विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाते हैं। वे सूर्य देव के तंत्र-मंत्र और विशेष अनुष्ठानों के माध्यम से आराधना करते हैं। इस दिन विशेष सूर्य यज्ञ, सूर्य नमस्कार, और सूर्य स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
अचला सप्तमी का आध्यात्मिक प्रभाव
अचला सप्तमी का व्रत व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि, यश और दीर्घायु प्रदान करता है। यह व्रत आत्मिक शुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है।
पं. जय किशोर मिश्र ने बताया कि अचला सप्तमी केवल एक पर्व नहीं है। बल्कि यह हमें प्रकृति, सूर्य ऊर्जा और सनातन परंपरा के महत्व को समझने का एक दिव्य अवसर प्रदान करता है।