जीवन शुद्ध हुआ

  • Post By Admin on Apr 12 2024
जीवन शुद्ध हुआ

मैं सीधा सादा कोमल भंवरा 
फूल नहीं पहचान सका।
जब जब मैंने कोशिश की
हर जगह निराशा हाथ लगी।
अब सोचकर यह पछताता हूं 
यह कैसी मेरी कोशिश थी।
सुनते हैं कोशिश करने वालों की हार नहीं होती 
मैं थक हार किनारे बैठा हूं 
जज्बातों के तूफानों से।
पर आस नहीं अब तक छोड़ा 
कुछ कर जाने की कुछ पा जाने की।
मैं सोया था अलसाया था 
मीठी सपनों में खोया था।
जब नींद खुली तो यह देखा 
सपनों ने हीं भरमाए थे।
मैं रोया था पछताया था 
सपनों ने ही मुझे लूटा था।
शायद वह एक छलावा था 
वह सपना हीं अनचाहा था।
सपनों से पीछा छुट गया 
सपनों से मैं अब मुक्त हुआ 
तब जाकर जीवन शुद्ध हुआ।

@शशि सिद्धेश्वर कुमार "गुलाब"