बिहार की शिक्षा व्यवस्था संकट में : नारों और आंकड़ों की दौड़ में खो गई पढ़ाई

  • Post By Admin on Sep 29 2025
बिहार की शिक्षा व्यवस्था संकट में : नारों और आंकड़ों की दौड़ में खो गई पढ़ाई

बिहार की शिक्षा व्यवस्था लगातार सवालों के घेरे में है। "सब पढ़ें, सब बढ़ें" जैसे नारों और "गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा" के स्लोगन के बीच अब सरकारी विद्यालयों की जमीनी हकीकत चिंताजनक हो गई है। शिक्षा विभाग के लगातार नए-नए प्रयोगों का खामियाजा सबसे ज्यादा दबे-कुचले और वंचित समाज के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।

विद्यालयों में पढ़ाई का वातावरण बनाने की बजाय आंकड़ों और डाटा संग्रह की दौड़ ने बच्चों की शिक्षा को हाशिये पर धकेल दिया है। शिक्षक, जो पहले सिर्फ पढ़ाने और विद्यार्थियों के भविष्य संवारने में जुटे रहते थे, आजकल विभागीय दबाव और नित नए आदेशों के बोझ तले दबे हुए हैं। आंकड़े तैयार करना, फॉर्म भरना और प्रशासनिक रिपोर्टिंग अब उनकी प्राथमिकता बन गई है, जबकि बच्चों को पढ़ाना पीछे छूट गया है।

शिक्षाविदों का मानना है कि "गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा" का नारा दरअसल एक सोची-समझी चाल है, जिसके तहत वास्तविक पठन-पाठन की गुणवत्ता धीरे-धीरे खत्म की जा रही है। पहले के दिनों में जब यह नारा नहीं था, तब शिक्षक विद्यालय जाकर पूरे मनोयोग से बच्चों को पढ़ाते थे और घर लौटते समय संतोष महसूस करते थे। अब वही शिक्षक नौकरी बचाने और विभागीय दबाव से जूझने की मजबूरी में मानसिक रूप से अशांत हो चुके हैं।

विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यह स्थिति जारी रही तो सरकारी विद्यालयों में पढ़ने की उम्मीद लेकर आने वाले छोटे-छोटे बच्चे निराश होकर लौटने लगेंगे। इससे शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो जाएगी। आशंका यह भी जताई जा रही है कि भविष्य में सरकार "गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा" के नाम पर सरकारी विद्यालयों को निजी हाथों में सौंपने का तर्क दे सकती है, जिससे वंचित वर्ग के बच्चे फिर से शिक्षा से दूर कर दिए जाएंगे।

शिक्षकों का कहना है कि विभागीय दबाव कम कर उन्हें सिर्फ पढ़ाने का अवसर दिया जाए। आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो और शिक्षा को उसकी मूल भावना—पढ़ना और पढ़ाना—तक सीमित रखा जाए। अन्यथा शिक्षा व्यवस्था को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

शिक्षकों का कहना है कि अब बहुत हो चुका "गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा" का खेल। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह प्रयोगों की बजाय वास्तविक सुधार करे और शिक्षकों को पढ़ाई की आज़ादी वापस लौटाए। तभी बच्चों का भविष्य और बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुरक्षित रह सकती है।

लेखक (शशि सिद्धेश्वर कुमार "गुलाब")