झपसी बरसात
- Post By Admin on Oct 05 2025
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बरसात आई, बदरा छाए,
गांव के रस्ते फिर दलदल पाए ।
तीन दिन से नभ झुका हुआ,
धरती का आंचल भीगा हुआ।
कुएं का पानी , पोखर लबालब,
छत से टपके बूंदों का जलतरंग सब।
मां कहे- "झपसी लागल रे बेटा !"
खेतन में सोने लगल है मेड़ा।
गाय बंधी बथान में चुपचाप,
चूल्हा बुझा, उठे धुंआ आप।
बालक खेले छप्पर के नीचे,
कागज की नाव चले धीरे-धीरे।
पानी में भींगती है आस,
झपसी में जागे मिट्टी की प्यास।
हर बूंद कहे -"मत भूलो गांव",
यही है संस्कृति, यही है ठांव।
- शशि सिद्धेश्वर कुमार "गुलाब यादव"