कामकाजी महिलाओं को SC का झटका, पीरियड्स लिव की याचिका पर सुनवाई से इनकार
- Post By Admin on Feb 24 2023

दिल्ली : महिलाओं और छात्राओं को हर महीने मासिक धर्म से जुडी तकलीफों का सामना करना पड़ता है. इसके बावजूद भी वह इस समस्या को परे रखकर अपना काम करती है, चाहे वह हाउसवाइफ हो या कामकाजी महिला हो या फिर छात्रा हो. कुछ दिनों पहले कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को हर महीना मासिक धर्म से जुडी तकलीफ को लेकर एक वकील ने लिव के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक ज्ञापन सौपा गया था. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह नीतिगत मामला है. इसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन दिया जाना चाहिए. शैलेन्द्र मणि नाम के एक वकील ने दाखिल याचिका में कहा कि महिलाओं को गर्भावस्था के लिए छुट्टी मिलता है, लेकिन मासिक धर्म के लिए नहीं. वकील ने आगे कहा कि यह भी महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा अहम मुद्दा है. इसको लेकर बिहार समेत कुछ राज्यों में दो दिन का अवकाश देने का प्रावधान बनाया है. हर राज्य में ऐसे नियम बनाने की आज्ञा दी जाए या फिर केंद्रीय स्तर पर कानून पारित किया जाए.
याचिका में यूनाइटेड किंगडम, ताईवान, जापान जैसे कई देशों में महिलाओं के पीरियड्स के दौरान अवकाश देने के लिए बने कानून का भी हवाला दिया है. हालांकि चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचुड, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पारडीवाला की बेंच ने सुनवाई की शुरुआत में ही कह दिया कि यह एक नीतिगत विषय है, इस पर सरकार और संसद विचारविमर्श कर सकती है. चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन दें.
इस मामले में खुद को भी पक्ष बनाये जाने की मांग कर रही कानून की एक छात्रा की तरफ से यह बयान आया कि इस तरीके के नियम बनाने से महिलाओं को नौकरी पाने में कठिनाई होगी. चीफ जस्टिस ने छात्रा को कानून बनाने से इनकार कर दिया, लेकिन चीफ जस्टिस ने उसकी दलील पर सहमति जताई.