आखिर कुंवारापन पर इतना जोर क्यों

  • Post By Admin on Dec 27 2023
आखिर कुंवारापन पर इतना जोर क्यों

यह दिलचस्प है कि कुंवारी दुल्हनों की मांग भारत के अलावा अन्य देशों में भी है। यूएन वुमन की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में प्रतिवर्ष सात करोड़ से अधिक महिलाएं वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरती हैं। यह अनुमति डॉक्टर, अस्पताल, अदालत और सरकारें देती हैं। क्या किसी विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्तता या बलात्कार की शिकार लड़की को अपना जीवन दोबारा शुरू करने का अधिकार नहीं है? 

आज भी पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों का कुंवारापन एक बड़ी धरोहर है। एक लड़की की वर्जिनिटी उसकी उपलब्धियों और वजूद से कहीं ज्यादा मायने रखती है। लड़की शादी तक कुंवारी है तो संस्कारी, सुशील। नहीं है तो समाज के पास विशेषणों की कमी नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं, शादी की पहली रात चादर पर खून लगने को दुनियाभर में कौमार्य परीक्षण का एक तरीका माना जाता है, जबकि यह बात पूरी तरह झूठ है। रिप्रोडक्टिव हेल्थ जर्नल की रिपोर्ट साबित करती है कि खून आना वर्जिनिटी का चिन्ह है ही नहीं, क्योंकि हाइमन टूटती नहीं है, स्ट्रेच हो जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि वर्जिनिटी को हाइमन से जोड़कर देखना गलत है। पहली बार संबंध बनाने पर खून निकलता ही है, यह एक गलतफहमी है, क्योंकि 90 प्रतिशत मामलों में पहली बार संबंध बनने पर खून नहीं निकलता। कारण यह परत केवल शारीरिक संबंधों के अलावा टैंपोन, व्यायाम, साइकिलिंग, तैराकी, मास्टरबेशन और घुड़सवारी जैसे खेलों की वजह से टूट जाती है या फिर वह बहुत पतली हो या हो ही नहीं। विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्जिन लड़की के वजाइना का आकार छोटा होता है, यह झूठ है, क्योंकि हर लड़की के वजाइना का आकार उसके शरीर की माप पर निर्भर करता है। वजाइना का छोटा-बड़ा या लूज-टाइट होना उसके वर्जिन होने से संबंध नहीं रखता। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में वर्जिन का अर्थ है ओरिजनल, पवित्र या अनछुआ यानी कि जो अपने प्राकृतिक रूप में हो। उससे कोई छेड़छाड़ न हुई हो।

अगर बायोलॉजिकली बात करें तो हाइमन एक पतले से टिश्यू की एक परत होती है, जो वजाइना के अंदर होती है। भारत के अलावा अन्य देशों में भी पुरुष कुंवारी लड़की के लिए लालायित रहते हैं। मामला एक देश का नहीं, बल्कि कई देशों की सोच का है। अफसोस दुनिया के 42 फीसदी देशों में आज भी वर्जिनिटी टेस्ट जारी है। यह परीक्षण नौकरी, स्कॉलरशिप, शादी और जांच के नाम पर अलग-अलग तरीकों से किए जा रहे हैं। वर्जिनिटी टेस्ट कैसे की जाए, इसकी खोज 1898 में की गई थी। इस टेस्ट को दो उंगलियों का परीक्षण भी कहते हैं। यह दुखद है कि टू फिंगर टेस्ट से रेप पीड़िता के कौमार्य का परीक्षण किया जाता है। हालांकि इस टेस्ट के परिणामों की सटीकता हमेशा से शक के घेरे में रही है। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टू फिंगर टेस्ट रेप पीड़िता को उतनी ही पीड़ा पहुंचाता है, जितना दुष्कर्म के दौरान पीड़ा होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्जिनिटी टेस्ट को बेबुनियाद घोषित कर चुका है। इस मामले को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएन ह्यूमन राइट्स और यूएन वुमन जैसे कई संगठनों ने ग्लोबल अपील भी जारी की थी। वर्जिनिटी टेस्ट महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन है और हर देश में कानून बनाकर इसे प्रतिबंधित किया जाए। हालांकि बीते कुछ समय में इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की जैसे देशों ने कानून बनाकर इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया है, लेकिन ज्यादातर देशों में इसे लेकर कोई ठोस कानून नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का तर्क है कि ऐसी जांच निजता का हनन है। उनका यह भी मानना है कि कई जगह वर्जिनिटी खोने को सील टूटना तक कहा जाता है जैसे महिला की जीवित देह न  होकर पैक सामान हो।

क्या कभी किसी ने ऐसा सुना है कि किसी महिला ने शादी की रात पति को अपमानित कर कहा हो कि तू वर्जिन नहीं है, मैं अपने घर जा रही हूं। भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 में भी इस बात का उल्लेख है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के अलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता। क्या कौमार्य जांच करवाना एक बड़ा लैंगिक भेदभाव नहीं है? क्या वर्जिन टेस्ट मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है? क्या यह टेस्ट अवैज्ञानिक नहीं है? अगर एक लड़का यह जानना चाहता है कि उसकी पार्टनर वर्जिन है या नहीं तो एक लड़की को भी यह जानने का अधिकार है कि उसका पार्टनर वर्जिन है या नहीं? फिल्म वर्जिन भानुप्रिया की बॉलीवुड अभिनेत्री उर्वशी रौतेला के मुताबिक, महिलाओं के बीच वर्जिनिटी के मुद्दे पर अभी भी दोहरे मापदंड और कलंक हैं। उनका मानना है कि अगर कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खो देती है तो पारिवारिक या सामाजिक दबाव नहीं होना चाहिए। आधुनिक युग में शादी से पहले पुरुष दोस्तों से शारीरिक संबंध, लिव इन रिलेशनशिप, बलात्कार आदि की वजह से कई लड़कियों की शादी में रुकावटें आती हैं। अगर शादी के बाद पता चलता है कि लड़की की वर्जिनिटी पहले ही भंग हो चुकी है तो शादी टूटने की नौबत आ जाती है। यही वजह है कि महिलाएं हाइमन के टूटने को लेकर तनाव में रहती हैं। मिस्र के गीजा में हुए एक सामाजिक अध्ययन में शामिल ज्यादातर महिलाओं ने बताया कि सुहागरात को वे बहुत तनाव में थी। सेक्स के दौरान उन्हें बहुत घबराहट हुई और बाद में भी वे सामान्य न हो सकीं। इसकी वजह हाइमन और कुंवारेपन को लेकर फैले मिथक थे। साल 2017 में लेबनान में हुए एक अध्ययन में शामिल 416 महिलाओं में से लगभग 40 प्रतिशत ने बताया कि अपने हाइमन को सुहागरात तक बचाए रखने के लिए उन्होंने शादी से पहले एनल या ओरल सेक्स ही किया था।

एक सर्वे में जब भारतीय पुरुषों से पूछा गया कि उनकी दुल्हनों का कौमार्य अब भी उतना ही संवेदनशील मुद्दा है, जितना एक दशक पहले था तो 77 फीसदी पुरुषों का कहना था कि अगर कोई महिला उन्हें खुलेआम बताए कि उसने शादी से पहले यौन संबंध बनाए हैं तो वे उससे शादी नहीं करेंगे। हालांकि मेडिकल साइंस बहुत आगे बढ़ गया है। पुरुषों की रूढ़िवादी सोच के चलते लड़कियां अब हाइमेनोप्लास्टी सर्जरी का सहारा ले रही हैं। पिछले दशक में देश में हाइमेनोप्लास्टी की मांग में लगातार वृद्धि हुई है। सर्जन एक सर्जरी के माध्यम से योनि की टूटी हुई झिल्ली को रिपेयर कर देता है। यह सर्जरी सिर्फ हाई क्लास की लड़कियां नहीं करवा रही हैं, बल्कि अपर मिडिल और मिडिल क्लास की लड़कियां भी करा रही हैं। एक चिकित्सीय संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार लड़कियां यह सब मजबूरन कराती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी न आए। डॉक्टरों के अनुसार, सर्जरी कराने वाली लड़कियां अपनी सहेली या माता-पिता के साथ आती हैं और सर्जरी कराकर लौट जाती हैं। दर्जनों क्लिीनिक, निजी अस्पताल और फार्मेसियां हाइमन सर्जरी की पेशकश कर रही हैं। फेक ब्लड कैप्सूल, पाउडर और जेल क्रीम की ऑनलाइन भरमार है और झूठ पर खड़ा है 14 हजार करोड़ का व्यापार। डॉक्टर महिलाओं के डर का फायदा उठा रहे हैं और इस हानिकारक प्रथा के लिए भारी शुल्क वसूल कर रहे हैं। सवाल ये है कि जब हाइमन का कोई इस्तेमाल ही नहीं है तो फिर सर्जरी कर उसे वापस दुरुस्त करने का क्या फायदा। देखा जाए तो शिक्षा की कमी, संस्कृति की कमी और कानूनों की अवहेलना के कारण कौमार्य परीक्षण की लोकप्रियता बढ़ी है। शादी के पहले हाइमन का होना इतना जरूरी है कि आज नकली हाइमन बेचने वाली सैंकड़ों कंपनियों से लड़कियां हाइमन खरीद कर इस्तेमाल कर रही हैं। ऐसा करके वे खुद भी कहीं ना कहीं इस मानसिकता का समर्थन कर रही हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर इसे काफी नकारात्मक चलन के रूप में देखती हैं। उनका कहना है कि जिस तरह समाज बदल रहा है, उसमें यौन संबंध बनाना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि एक लड़की किसी लड़के के साथ समय व्यतीत करती है तो कौमार्य दोनों का टूटता है। अगर पुरुषों को इससे कोई परेशानी नहीं है तो महिलाओं को इसे छुपाने की क्या जरूरत है। कोई भी वैज्ञानिक प्रगति महिलाओं की भलाई के लिए होनी चाहिए, न कि उनके शोषण के लिए। समाजशास्त्री सामिया एलुमी कहते हैं कि हम आधुनिक समाज में रहने का दावा करते हैं, लेकिन यह आधुनिकता महिलाओं के यौन संबंधों से जुड़ी आजादी में नहीं दिखती। अब समय आ गया है कि महिलाएं अपने देह की कमान अपने हाथों में लें और पुरुष अपनी उदारता का परिचय दें। आज जब दुनिया भर में सरकार कौमार्य की जांच और हाइमन सर्जरी पर रोक लगा रही हैं तो शिक्षकों के लिए भी यह अच्छा होगा कि वे इन प्रतिबंधों के पीछे के तर्कों को क्लास रूम तक ले जाएं और युवाओं को जागरूक करें।

गीता यादव
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार