पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात पर टिकी दुनिया की नजर, जानें अमेरिका को लेकर क्या कह रहे विशेषज्ञ
- Post By Admin on Dec 04 2025
नई दिल्ली : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गुरुवार शाम भारत पहुंच रहे हैं और उनके आगमन से पहले ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल तेज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली उनकी मुलाकात को दुनिया भर के रणनीतिक हलकों में एक अहम क्षण माना जा रहा है—खासकर इसलिए क्योंकि यह यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन का पहला भारत दौरा है।
भारत–रूस वार्ता से जहां ऊर्जा, रक्षा और तकनीकी सहयोग के नए आयाम खुलने की उम्मीद है, वहीं अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए यह मुलाकात असहज करने वाली साबित हो रही है। यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका लगातार भारत पर रूस से ऊर्जा आयात कम करने का दबाव बनाता रहा है। ट्रंप की नई टैरिफ नीति को इसी दबाव का ताजा रूप माना जा रहा है। इसके बावजूद भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर ही निर्णय लेगा।
रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में भारत–रूस संबंध वर्षों से मजबूत रहे हैं, और यही वजह है कि कई पश्चिमी देशों की नजरें इस मुलाकात पर टिकी हुई हैं। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश रूस के बढ़ते प्रभाव और यूक्रेन युद्ध को लेकर पहले से ही बेचैन हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे समय में पुतिन की भारत यात्रा यह संदेश देती है कि नई दिल्ली रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगी।
चीन भी इस मुलाकात को बारीकी से देख रहा है। एशिया में भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच भारत–रूस संवाद का असर क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन पर पड़ना तय माना जा रहा है। चीनी और अमेरिकी मीडिया में भी इस मुलाकात को लेकर कवरेज तेज हो गई है।
आईएएनएस से बातचीत में प्रमुख अमेरिकी विशेषज्ञों ने वॉशिंगटन की बढ़ती चिंता को साफ तौर पर रेखांकित किया।
लीसा कर्टिस, जो ट्रंप प्रशासन में वरिष्ठ पदों पर रह चुकी हैं, ने कहा, “अमेरिका को यह बैठक बिल्कुल मददगार नहीं लगेगी। यह ऐसे समय में हो रही है जब पुतिन यूक्रेन पर हमले तेज कर रहे हैं और यूरोप को साइबर-अटैक व ड्रोन घुसपैठ की धमकियां दे रहे हैं।”
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह यात्रा वाशिंगटन के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि भारत को दबाव में नहीं लाया जा सकता और वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखेगा। कर्टिस का मानना है कि अमेरिका को अतिप्रतिक्रिया से बचना चाहिए, क्योंकि भारत–रूस संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं।
ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन की तन्वी मदान ने वॉशिंगटन की दो बड़ी चिंताओं की ओर ध्यान खींचा—पहली, भारत पुतिन को किस स्तर का समारोहिक महत्व देता है, और दूसरी, रक्षा व ऊर्जा से जुड़े कौन से समझौते अंतिम रूप लेते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी विशेषज्ञ भारत के रूसी तेल आयात के आंकड़ों को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहेंगे।
पुतिन–मोदी मुलाकात पर दुनिया की निगाहें इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि यह शिखर बातचीत मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों के बीच एक नया समीकरण गढ़ सकती है। यह यात्रा न केवल भारत–रूस संबंधों की मजबूती दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि नई दिल्ली वैश्विक दबावों के बीच अपनी स्वतंत्र कूटनीतिक राह चुनने में सक्षम है।