1965 के भारत-पाक युद्ध में क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद: एक अद्वितीय वीरता की कहानी
- Post By Admin on Aug 24 2023
नई दिल्ली : भारत-पाक युद्धों का इतिहास वीरता कथाओं से भरपूर है, और 1965 का युद्ध भारतीय सैन्य के वीर योद्धाओं की महानता का प्रतीक है। इस युद्ध के दौरान कई वीर योद्धा ने अपने अद्वितीय साहस और बलिदान से मातृभूमि की रक्षा की थी, और उनमें से एक नाम है - क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद। उन्होंने पाकिस्तान के चार से अधिक टैंकों को तबाह करते हुए अपने अत्यंत साहस और वीरता का परिचय दिलाया और उन्हें मरणोपरांत देश के शीर्ष सैन्य पुरस्कार, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1936 को भारतीय पंजाब के गुजरानवाला जिले के धरमचक्री गांव में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उनकी निष्ठा और समर्पण ने उन्हें असामान्य बना दिया। सैन्य की तरफ उनकी प्रतिबद्धता बढ़ी और वे भारतीय सेना में शामिल हो गए। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय, अब्दुल हमीद कपासी सेना के एक खास प्रकार के योद्धा थे - वे आतंक की ताकत को समझते थे और उनके दिल में अपने देश के प्रति गहरा स्नेह था। उन्होंने सिखाया कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से अपने कर्तव्यों का पालन करे तो वो किसी भी परिस्थिति में महत्वपूर्ण काम कर सकता है। युद्ध के पहले दिनों में, पाकिस्तानी सेना ने अचानक अपनी टैंक ब्रिगेड के साथ भारतीय तट पर हमला कर दिया। इस हमले के परिणामस्वरूप, भारतीय सेना को टैंकों की कमी महसूस हो रही थी। इस घातक स्थिति को देखते हुए अब्दुल हमीद का मन निर्णय लिया कि वह खुद टैंकों के साथ जाकर लड़ेंगे। अब्दुल हमीद की इस साहसी नीति ने उन्हें 8 सितंबर 1965 को खेमकलान शहीद स्मारक में पहुँचाई, जहाँ से उन्होंने अपनी आखिरी यात्रा की शुरुआत की। वे टैंक के आते ही उसे नियंत्रित करने की कोशिश की और आपत्तियों के बावजूद उसे नष्ट करने में सफल रहे। उन्होंने एक दूसरे टैंक को भी निष्क्रिय कर दिया और उनके साहस ने पाकिस्तानी सेना को चौंका दिया। इस उन्होंने एक बड़े संघर्ष के बाद उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार, परमवीर चक्र से नवाजा गया। यह सम्मान उनकी अद्वितीय वीरता और निष्ठा को मान्यता देता है जिनके प्रति वे अपने देश के प्रति थे।
अब्दुल हमीद की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाईयों से लड़कर ही हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। उनका साहस, निष्ठा और बलिदान हमें प्रेरित करता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि वीरता और साहस कभी भी आयु की संख्या से नहीं जुड़े होते, बल्कि ये मनोबल की कहानियां होती हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध में क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी अद्वितीय वीरता और साहस से दुनिया को प्रेरित किया। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि एक व्यक्ति की सही दिशा में समर्पण और मेहनत से वो किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है, और अपने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर सकता है।