चार साल बाद म्यांमार में बदले हालात : आपातकाल खत्म, मगर लोकतंत्र अब भी दूर
- Post By Admin on Jul 31 2025

यंगून : तख्तापलट के बाद सत्ता पर काबिज म्यांमार की सेना ने आखिरकार गुरुवार को देश से आपातकाल हटा दिया है, जो बीते चार वर्षों से लागू था। राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद यह फैसला लिया गया। इसके साथ ही देश में आगामी आम चुनावों की राह औपचारिक रूप से खुल गई है।
सैन्य शासन के प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने नई 30 सदस्यीय संघीय सरकार के गठन की घोषणा की है और अपने करीबी सहयोगी न्यो साव को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। हालांकि देश के भीतर अब भी गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है और लोकतंत्र समर्थक सशस्त्र समूहों का प्रतिरोध लगातार तेज हो रहा है।
चुनाव से पहले कानूनी बाधा हटाई
म्यांमार के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में आम चुनाव नहीं कराए जा सकते। सैन्य शासन ने पहले ही कहा था कि वह दिसंबर 2025 में आम चुनाव कराएगा। ऐसे में आपातकाल हटाया जाना चुनाव के लिए आवश्यक कदम था।
जनवरी 2025 में हुई रक्षा परिषद की बैठक में 31 जुलाई तक आपातकाल बढ़ाया गया था। इसके बाद जुलाई में सेना ने चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने पर मृत्युदंड तक का प्रावधान करने वाला एक विधेयक भी पारित किया, जिससे विपक्षी दलों और लोकतंत्र समर्थकों की चिंताएं और गहरी हो गई हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और आलोचना
हालांकि अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने सैन्य शासन द्वारा कराए जाने वाले चुनाव को पहले ही अवैध और दिखावटी करार दिया है। उनके अनुसार जब तक म्यांमार में लोकतंत्र बहाल नहीं होता और राजनीतिक कैदियों को रिहा नहीं किया जाता, तब तक कोई भी चुनाव निष्पक्ष नहीं माना जा सकता।
2021 का तख्तापलट और इसके बाद का संघर्ष
गौरतलब है कि 1 फरवरी 2021 को म्यांमार की सेना ने आम चुनावों में आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की भारी जीत को नकारते हुए तख्तापलट कर दिया था। इसके बाद राष्ट्रपति विन म्यिंट और आंग सान सू की समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया।
तब से लेकर अब तक देश राजनीतिक अस्थिरता, सशस्त्र संघर्ष और मानवाधिकार हनन से जूझता रहा है। 2,900 से अधिक लोग इस हिंसा में मारे गए और 18,000 से ज्यादा को गिरफ्तार किया गया।
कठिन रास्ता आगे
हालांकि आपातकाल हटाना म्यांमार की लोकतांत्रिक बहाली की दिशा में एक अहम कदम माना जा सकता है, लेकिन राजनीतिक स्वतंत्रता, विपक्ष की भागीदारी और निष्पक्ष चुनाव की गारंटी के बिना इस प्रक्रिया पर सवाल उठते रहेंगे।