तीर्थोदक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी में सामाजिक और पारिवारिक परिवेश का यथार्थ

  • Post By Admin on Mar 04 2025
तीर्थोदक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी में सामाजिक और पारिवारिक परिवेश का यथार्थ

पटना : कहानी में मानव जीवन की जटिलताएँ और संघर्षों का गहरा चित्रण होता है। किसी भी कहानी की जड़ जीवन के संघर्ष में निहित होती है। जीवन का एक हिस्सा वो भी होता है, जिसे हम चुपचाप झेलते हैं और वही हिस्सा जब हम शब्दों में ढालते हैं, तो वही कहानी बन जाती है। साहित्य केवल सामाजिक यथार्थ का ही प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के रुख को भी आकार देता है। इस यथार्थ के भीतर छुपे अंतर्द्वंद्व, रोज़मर्रा के संघर्ष और आंतरिक विचारों को व्यक्त करता है।

हिंदी कथा लेखन में प्रेमचंद के बाद फणीश्वर नाथ रेणु का नाम अत्यधिक सम्मान के साथ लिया जाता है। रेणु ने अपने लेखन में भारतीय ग्रामीण जीवन की सच्चाई को बेहद गहराई से प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ, लोकजीवन के चित्रण और मानव संवेदनाओं का उत्थान दिखता है। रेणु न केवल एक साहित्यकार थे, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को एक नया दृष्टिकोण और दिशा दी।

फणीश्वर नाथ रेणु की प्रमुख कृतियाँ जैसे ‘मैला आंचल’, ‘परती परिकथा’, ‘दीर्घ तप’, ‘ठुमरी’ आदि, ग्रामीण जीवन की समस्याओं और संघर्षों को उजागर करती हैं। इन कृतियों में एक ओर जहां ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण मिलता है, वहीं दूसरी ओर उनके लेखन में सामाजिक संघर्ष और मनुष्यता के सवाल भी उठाए गए हैं।

उनकी कहानी ‘तीर्थोदक’ एक ऐसी कृति है, जो पारिवारिक और सामाजिक जीवन के बीच हो रहे बदलावों और संघर्षों को बारीकी से दर्शाती है। इस कहानी का केंद्र बिंदु है एक महिला की तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा और उसके रास्ते में आने वाले पारिवारिक विरोध। ‘तीर्थोदक’ में रेणु ने एक पारंपरिक समाज में बदलाव की आवश्यकता को उजागर किया है और एक महिला की स्वतंत्रता की कामना को अत्यंत संवेदनशील तरीके से पेश किया है।

कहानी का सारांश

‘तीर्थोदक’ कहानी में लल्लू की मां का किरदार है, जो अपने पति बजरंगी चौधरी और परिवार के विरोध के बावजूद तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती है। एक संभ्रांत परिवार की बुजुर्ग महिला, जो जीवन भर अपने परिवार के लिए समर्पित रही है, अब अपने भीतर के इच्छाओं की अभिव्यक्ति चाहती है। उसकी यह इच्छा पारिवारिक कर्तव्यों के बोझ तले दबी रहती है, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज में महिला की इच्छाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

कहानी की शुरुआत में लल्लू की मां का घर के मुखिया बजरंगी चौधरी से संघर्ष होता है, जब वह बिना उनकी अनुमति के तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लेती है। बजरंगी चौधरी का गुस्सा और नाराजगी केवल पारिवारिक अधिकारों के विवाद के रूप में प्रकट होती है, जो महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर समाज के दृष्टिकोण को दर्शाती है। वह अपनी पत्नी की इच्छा का सम्मान नहीं करता और उसकी यात्रा को रोकने के लिए कई बहाने बनाता है। लेकिन लल्लू की मां अपने निर्णय से पलटने वाली नहीं है।

स्त्री की स्वतंत्रता की ओर कदम

कहानी में लल्लू की मां का तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय केवल एक यात्रा नहीं है, बल्कि यह महिला की मानसिकता में हो रहे बदलाव की भी निशानी है। इस यात्रा में वह खुद को परिवार और समाज की सीमाओं से बाहर देखती है। यह कहानी पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री के अधिकार, सम्मान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक सशक्त संदेश देती है। लल्लू की मां की यह यात्रा न केवल उसकी धार्मिक इच्छा को व्यक्त करती है, बल्कि वह अपने अधिकारों की भी वकालत करती है।

कहानी का समापन और संदेश

कहानी का समापन सुखद रूप में होता है। लल्लू की मां जब काशी पहुंचती है, तो उसके पति बजरंगी चौधरी खुद उसे लेने के लिए काशी आते हैं, जिससे यह दर्शाता है कि स्त्री की इच्छा और उसकी स्वतंत्रता को कभी भी पूरी तरह दबाया नहीं जा सकता। अंत में लल्लू की मां का तीर्थ यात्रा पर जाना और गंगा स्नान करना उसकी वर्षों पुरानी इच्छा की पूर्ति का प्रतीक है।

यह कहानी समाज के बदलते दृष्टिकोण को दर्शाती है, जहां एक महिला अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ी होती है और अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाती है। रेणु ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया है कि समाज के भीतर बदलाव और स्त्री के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता की आवश्यकता है।

कहानी की साहित्यिक महत्ता

फणीश्वर नाथ रेणु की ‘तीर्थोदक’ एक अत्यंत मार्मिक और प्रभावशाली कहानी है। इस कहानी में न केवल जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है, बल्कि यह समाज के उन बुनियादी सवालों को भी उठाती है, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। यह कहानी समाज, परिवार और स्त्री के बीच संघर्षों को दिखाती है, और साथ ही स्त्री की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आवश्यकता को भी समझाती है।

रेणु की यह कृति साहित्यिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि यह सामाजिक परिवेश, मानवीय संवेदनाओं और पारिवारिक रिश्तों को बेहद सजीव और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत करती है। यह एक ऐसी कहानी है जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि यह समाज में हो रहे बदलावों और स्त्री के अधिकारों के सवालों पर भी गंभीरता से विचार करने की प्रेरणा देती है।