मकर संक्रांति: ऋतु परिवर्तन और ऊर्जा के संचार का महत्वपूर्ण पर्व

  • Post By Admin on Jan 13 2025
मकर संक्रांति: ऋतु परिवर्तन और ऊर्जा के संचार का महत्वपूर्ण पर्व

इस वर्ष हेमंत ऋतु का समापन और शिशिर ऋतु का आरंभ एक साथ हो रहा है, जो विशेष रूप से इस समय को पुण्यदायक और शुभ बनाता है। माघ मास का आरंभ और पुश मास का समापन पूर्णिमा तिथि सोमवार को हो रहा है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड में अमृत की परवाह का प्रतीक है। यह समय द्वापर युग के समान अत्यधिक महत्व रखता है। मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी को सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच आएगी, जो एक विशेष खगोलीय घटना है।

पं. जय किशोर मिश्र ने बताया कि संक्रांति के आरंभ होने के 12 घंटे पूर्व से पुण्यकाल की शुरुआत हो जाती है, जिससे यह समय और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। गंगासागर में इस दिन अमृत की उछाल देखने को मिलेगी। वहीं प्रयाग में भी अमृत का निरंतर प्रवाह रहेगा, जब तक सूर्य कुंभ राशि में स्थिर रहेंगे।

हेमंत ऋतु का स्थिर जड़त्व, शिशिर ऋतु के आगमन के साथ परिवहन, परिवर्तन, रूपांतरण और नई ऊर्जा का संचार करता है। इस समय देवत्व और बाल सूर्य की शक्ति में वृद्धि होती है।.जिससे ब्रह्म मुहूर्त से शिव, बाल विष्णु और ब्रह्म के जागृत होने से नवीनता का आरंभ होता है। यह परिवर्तन शारीरिक और मानसिक ऊर्जा के स्तर पर एक नई शुरुआत का संकेत है।

मग महात्म में इस समय का विशेष उल्लेख है और यह समय प्राचीन अध्यात्म विज्ञान और आधुनिक तरंग विज्ञान के मणिकांचन संयोग का प्रतीक बन रहा है। पं. जय किशोर मिश्र ने इस बात को भी बताया कि द्वापर युग में गंगापुत्र भीष्म पितामह ने भी इस शुभ योग का इंतजार किया था। मकर संक्रांति का पर्व भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है और यह ऋतु परिवर्तन के साथ शारीरिक क्षमता में वृद्धि प्रदान करने वाला है।

इस दिन को लेकर विशेष रूप से भारत में कई स्थानों पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, जो इस ऊर्जा के संचार को और भी बढ़ावा देते हैं। मकर संक्रांति का यह पर्व एक नई शुरुआत और ऊर्जा के संचार का प्रतीक है जो शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर सकारात्मक बदलाव लाता है।