प्राचार्य की महानता कॉलेज के आकार से नहीं, छात्रों पर पड़े प्रभाव से मापी जाती है : डॉ. अरुण
- Post By Admin on Sep 20 2025

बेंगलुरु : बेंगलुरु सिटी (कर्नाटक) के होम्योपैथिक चिकित्सक और क्रॉनिक डिजीज एवं किडनी स्टोन विशेषज्ञ डॉ. अरुण कुमार सिंह ने एक लेख में शिक्षा व्यवस्था और प्राचार्यों की भूमिका पर गहन विचार व्यक्त किए हैं। उनका कहना है कि समाज में यह गलत धारणा बन चुकी है कि बड़े कॉलेज का प्राचार्य, छोटे कॉलेज के प्राचार्य से अधिक महान होता है, जबकि वास्तविकता यह है कि महानता का आकलन कॉलेज के आकार से नहीं, बल्कि उसके प्राचार्य के कार्य, नेतृत्व क्षमता और छात्रों पर पड़े प्रभाव से किया जाना चाहिए।
डॉ. सिंह के अनुसार, जो प्राचार्य केवल प्रशासनिक कार्यों तक सीमित न रहकर स्वयं छात्रों को पढ़ाते हैं, उनकी ख्याति स्वतः ही बढ़ जाती है। इससे न केवल छात्र-छात्राओं को लाभ मिलता है, बल्कि अधीनस्थ शिक्षक भी अपने प्राचार्य से प्रेरित होकर कक्षा में पढ़ाने के लिए प्रेरित होते हैं। उन्होंने कहा कि यदि विश्वविद्यालय के कुलपति स्वयं समय निकालकर विभागों और कॉलेजों का भ्रमण करें तथा छात्रों को पढ़ाएं, तो पूरे शैक्षणिक माहौल पर सकारात्मक असर पड़ेगा। इससे विश्वविद्यालय और कॉलेज दोनों की ख्याति देश-विदेश तक फैलेगी।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकारी या निजी शिक्षक बनना बड़ी बात नहीं है, बल्कि छात्रों का भविष्य संवारना ही शिक्षक की सच्ची जिम्मेदारी है। ऐसे शिक्षक समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं और उनकी ख्याति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलती है।
डॉ. सिंह ने यह भी लिखा कि बड़े कॉलेज का प्राचार्य अक्सर संसाधनों और टीम पर निर्भर करता है, जबकि छोटे कॉलेज का प्राचार्य सीमित साधनों में छात्रों के और करीब रहकर व्यक्तिगत मार्गदर्शन देता है। किसी भी प्राचार्य की वास्तविक महानता उसके नेतृत्व, बदलाव लाने की प्रेरणा शक्ति, नवाचार की सोच और छात्रों के जीवन में डाले गए सकारात्मक प्रभाव से तय होती है।
उन्होंने अंत में निष्कर्ष दिया कि—महान प्राचार्य वह नहीं जो बड़े कॉलेज का हो, बल्कि वह है जो छात्रों की जिंदगी में बदलाव लाता है और समाज में सकारात्मक योगदान देता है।