सुषमा स्वराज पुण्यतिथि विशेष : जनसेवा, कूटनीति और नेतृत्व की मिसाल थीं भारतीय राजनीति की वाणी की वीरांगना

  • Post By Admin on Aug 06 2025
सुषमा स्वराज पुण्यतिथि विशेष : जनसेवा, कूटनीति और नेतृत्व की मिसाल थीं भारतीय राजनीति की वाणी की वीरांगना

नई दिल्ली : भारतीय राजनीति में सशक्त नेतृत्व, ओजस्वी वाणी और मानवीय संवेदनाओं की प्रतीक रहीं सुषमा स्वराज की आज पुण्यतिथि है। एक ऐसी राजनेता, जिन्होंने न सिर्फ संसद में अपनी दमदार उपस्थिति से सबको प्रभावित किया, बल्कि विदेश मंत्री के रूप में वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

हरियाणा से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक की यात्रा
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में जन्मी सुषमा स्वराज ने राजनीति में अपने चार दशक लंबे सफर के दौरान कई ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए। मात्र 25 वर्ष की उम्र में हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बनीं और प्रदेश की सबसे कम उम्र की मंत्री होने का गौरव प्राप्त किया।

वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री, भाजपा की पहली महिला प्रवक्ता, भारत की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री, और उन चंद नेताओं में रहीं जिन्हें देश की जनता ने हर भूमिका में सराहा।

सोशल मीडिया पर भी बनीं मदद की मिसाल
2014 से 2019 तक विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज ने जन-संवेदनशील विदेश नीति को आकार दिया। सोशल मीडिया को कूटनीतिक टूल की तरह इस्तेमाल करते हुए उन्होंने हजारों भारतीयों को विदेशों में मुश्किल हालात से सुरक्षित निकाला। मेडिकल वीजा से लेकर लापता भारतीयों की तलाश तक, उनके ट्विटर हैंडल ने मंत्रालय को आमजन से जोड़ा।

विदेश नीति को दिया मानवीय चेहरा
उनकी कूटनीति में न गर्मी थी, न कमजोरी, बल्कि एक स्पष्टता और गरिमा थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2016 और 2017 में दिए उनके भाषणों ने पाकिस्तान को आतंकवाद पर सख्त लहजे में घेरा और वैश्विक पटल पर भारत की मजबूती को रेखांकित किया।

राजनीति में महिला नेतृत्व का मजबूत चेहरा
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति में कदम रखने वाली सुषमा स्वराज ने 1980 के दशक में भाजपा में सक्रिय भूमिका निभाई। राम मंदिर आंदोलन से लेकर पार्टी के संगठनात्मक विस्तार तक, उन्होंने महिला नेतृत्व का उदाहरण पेश किया। उमा भारती के साथ वे भाजपा की महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती रहीं।

52 दिन की मुख्यमंत्री और लंबी विरासत
1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं सुषमा स्वराज का कार्यकाल भले ही 52 दिनों का रहा, लेकिन उन्होंने अपनी भाषण कला और निर्णयात्मक शैली से उस छोटी अवधि में भी अपनी छाप छोड़ी।

अंतिम विदाई और स्मृति
6 अगस्त 2019 को उनका निधन एक युग का अंत था। उस दिन न सिर्फ एक नेता चली गई, बल्कि भारतीय राजनीति की एक संवेदनशील, सशक्त और संघर्षशील आवाज भी हमेशा के लिए शांत हो गई।

आज भी जब कोई विदेशी संकट में फंसे भारतीय की मदद की बात होती है, सुषमा स्वराज की याद अनायास ही लोगों के मन में कौंध जाती है। वे राजनीति की नहीं, जनसेवा की भाषा बोलती थीं।