राजनीति और साहित्य की अग्रदूत थीं नंदिनी सत्पथी, बनीं ओडिशा की पहली महिला मुख्यमंत्री
- Post By Admin on Aug 04 2025

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति और साहित्य के इतिहास में अगर नारी शक्ति की मिसाल किसी एक नाम से दी जानी हो, तो वह निस्संदेह नंदिनी सत्पथी होंगी। ओडिशा की पहली महिला मुख्यमंत्री, तेजस्वी सांसद, प्रखर वक्ता और ओजस्वी लेखिका—नंदिनी सत्पथी ने हर मंच पर अपने योगदान से नया मानदंड स्थापित किया। 4 अगस्त 2006 को भले ही उन्होंने अंतिम सांस ली हो, लेकिन उनकी राजनीतिक चेतना और साहित्यिक धरोहर आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
आजादी की अलख जगाने वाली बालिका
9 जून 1931 को कटक के पीथापुर में जन्मी नंदिनी सत्पथी बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम की भावना से ओतप्रोत थीं। मात्र आठ वर्ष की उम्र में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ दीवारों पर आजादी के नारे लिखना और यूनियन जैक फहराने से इनकार करना उनके जुझारूपन का प्रमाण था। इस साहसिक कदम के लिए उन्हें ब्रिटिश पुलिस की मार भी झेलनी पड़ी, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा।
राजनीति में बुलंद मुकाम
1962 में नंदिनी सत्पथी ओडिशा में कांग्रेस की प्रमुख महिला नेता के रूप में उभरीं। महिलाओं की संसद में भागीदारी बढ़ाने के राष्ट्रीय प्रयासों के तहत उन्हें राज्यसभा में भेजा गया। 1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया, जहां उन्होंने दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से जनसंपर्क को नया आयाम दिया।
1972 में बीजू पटनायक के कांग्रेस छोड़ने के बाद नंदिनी सत्पथी ने ओडिशा की कमान संभाली और 1972 से 1976 तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं। वह दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली भारत की पहली महिला बनीं।
आपातकाल में दिखाया नैतिक साहस
आपातकाल के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी की नीतियों से असहमति जताई और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 1977 में वे ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ से जुड़ीं, और बाद में 1989 में राजीव गांधी के आग्रह पर पुनः कांग्रेस में लौट आईं। वर्ष 2000 तक वे ढेंकनाल से विधायक रहीं।
साहित्य में समर्पित रचना संसार
राजनीति के साथ-साथ नंदिनी सत्पथी का साहित्यिक अवदान भी उल्लेखनीय रहा। उड़िया मासिक पत्रिका कलाना की संपादक के रूप में उन्होंने साहित्य को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्होंने तस्लीमा नसरीन की चर्चित पुस्तक लज्जा और अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट का उड़िया में अनुवाद किया।
1998 में उन्हें ‘साहित्य भारती सम्मान’ से सम्मानित किया गया। उनकी लेखनी, सामाजिक चेतना और महिला सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता, आज भी प्रेरणादायी मानी जाती है।
विरासत जो आज भी जीवित है
4 अगस्त 2006 को भुवनेश्वर में उनका निधन हो गया, लेकिन नंदिनी सत्पथी की विचारधारा और योगदान आज भी समाज, राजनीति और साहित्य में जीवित हैं। वह एक ऐसी आवाज थीं, जिन्होंने नारी शक्ति की असल परिभाषा गढ़ी।