IPCC की बैठक शुरू, अमेरिका की अनुपस्थिति से वैश्विक जलवायु सहयोग पर उठे सवाल
- Post By Admin on Feb 28 2025

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) का 62वां पूर्ण सत्र आज से शुरू हो गया है। जिसमें जलवायु परिवर्तन पर सातवीं आकलन रिपोर्ट (AR7) और कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल टेक्नोलॉजीज पर रिपोर्ट तैयार करने का खाका तय किया जाएगा। इस बैठक में 195 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं, लेकिन अमेरिका की अनुपस्थिति ने वैश्विक जलवायु सहयोग को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
अमेरिका की अनुपस्थिति पर बढ़ी चिंता
रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के अधिकारी इस बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं। जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि अमेरिका की गैरमौजूदगी वैश्विक जलवायु सहयोग के लिए एक झटका साबित हो सकती है, क्योंकि IPCC की रिपोर्टों का महत्वपूर्ण प्रभाव देशों की जलवायु नीतियों पर पड़ता है।
वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की चिंता
भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक और IPCC AR5 व AR6 के प्रमुख लेखक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा, “जलवायु संकट अब अधिक गहरा हो गया है, लेकिन कई देशों में राजनीतिक बदलावों के कारण जलवायु कार्यवाई धीमी हो रही है। अमेरिका का इस बैठक से दूरी बनाना वैश्विक सहयोग को कमजोर करता है।”
इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर अंजल प्रकाश ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा, “जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही संभव है और इस तरह के कदम से यह प्रयास कमजोर होगा।”
इस सप्ताह की बैठक में नए आकलन रिपोर्टों के प्रारूप पर चर्चा होगी, साथ ही उनके बजट और समय-सीमा पर भी विचार किया जाएगा। 2029 तक तैयार होने वाली सातवीं आकलन रिपोर्ट (AR7) के अंतिम संश्लेषण पर भी चर्चा की जाएगी।
वैज्ञानिकों का नेतृत्व और अमेरिका का योगदान
अमेरिका की अनुपस्थिति के बावजूद, IPCC के वैज्ञानिकों का कहना है कि वे इस बैठक को सफल बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। केन्या की जलवायु वैज्ञानिक डॉ. जॉयस किमुताई ने कहा, “अमेरिकी वैज्ञानिक व्यक्तिगत रूप से इस प्रक्रिया में योगदान दे सकते हैं और अन्य देशों को अब आगे बढ़कर नेतृत्व संभालना होगा।”
वैश्विक नेतृत्व की आवश्यकता
IPCC की बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब जलवायु परिवर्तन से जुड़े वैश्विक लक्ष्य अधर में लटके हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह कदम जलवायु कार्यवाही को धीमा कर सकता है, लेकिन यह अन्य देशों के लिए नेतृत्व का अवसर भी है।
मलेशिया की जलवायु विशेषज्ञ प्रो. तान स्री डॉ. जेमीला महमूद ने इस मुद्दे पर कहा, “जलवायु संकट सिर्फ पर्यावरणीय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य आपातकाल भी है। हमें इसे राजनीति से अलग रखकर विज्ञान को प्राथमिकता देनी होगी।”
अब सवाल यह है कि क्या अन्य देशों की सहभागिता अमेरिका की अनुपस्थिति की खाई को भर सकेगी और वैश्विक जलवायु सहयोग को आगे बढ़ा पाएगी? या फिर यह एक बड़ा संकट बनेगा?