हम कल्पना मात्र हैं, ब्रह्म की कल्पना

  • Post By Admin on May 29 2023
हम कल्पना मात्र हैं, ब्रह्म की कल्पना

कितना काल्पनिक है संसार!

ऐसा क्या है तुम्हारे आसपास जिसके अस्तित्व का आधार कल्पना नहीं है? समूचा संसार कल्पना से ओतप्रोत है। आँखें बंद करते ही यह कल्पना हमें कुंडलित कर लेती है। क्यों ना करे, मन का सामर्थ्य यही है। हम सब एक कल्पना में हैं और कितनी वास्तविक प्रतीत होती है यह कल्पना।

मनुष्य ब्रह्मा के मानस पुत्रों का वंशज है। मानस अर्थात् मन द्वारा उत्पन्न। ब्रह्म के आयाम में भौतिक कुछ भी नहीं, वहाँ तो मन ही सर्वेसर्वा अधीक्षक है। कारणों का कारण, सबका संस्थापक, सबका नियामक। ग्रह-नक्षत्र, सूर्य-चंद्रमा, पशु-पक्षी, प्रत्येक प्राणी, प्रत्येक भाव, जन्म-मृत्यु तक मन के ही उद्भीज हैं। यह मन ही भौतिक भ्रम उत्पन्न करता है। ब्रह्मा की मूल शक्ति मन है और यह सृजनकारी कल्पनाशील मन ब्रह्मा के आश्रित है, इसलिए उन्हें ‘पितामह’ कहा गया। लेकिन कल्पना का एक बड़ा विकार यह है कि यह मनुष्य को बाँध लेती है। उसकी क्षमताओं को सीमित कर देती है। जीवन के विषय में मनुष्य कही-सुनी बातें कुछ भी मान लेता है और यह मानना ही कल्पना का दोष है। जो मान चुके हैं, उनका मनुष्य जीवन विफल हो जाता है। क्योंकि जीवन मानने के लिए नहीं, जानने के लिए मिला है। जहाँ कहीं तुम जाने बिना ही मान लेते हो, तुम्हारी संभावनाएँ वहीं ख़त्म हो जाती हैं।

तुम केवल वही देखने में समर्थ होते हो जो दिख रहा है लेकिन तुम्हारी आत्मा का ध्येय तो निर्गुण है। फिर इन चक्षुओं से किसे ढूँढते फिरते हो? अदृश्य को तो केवल अनुभव किया जा सकता है और अनुभूति के लिए दृगों को बंद करना आवश्यक है। तुम एक सृजन हो, तुममें सर्जक के लिए जिज्ञासा होनी चाहिए। ब्रह्मरूप में जो बुद्धि तुम्हारे भीतर विद्यमान है, वही तुम्हें बाक़ी योनियों से पृथक करती है। अदृश्य को देखने की चेष्ठा ही तुम्हें ब्रह्म का बोध कराने में सक्षम है। और ब्रह्मबोध ही तुम्हें कल्पनामुक्त कर सकता है, यातनामुक्त कर सकता है।

- जया मिश्रा ‘अन्जानी’