15 अगस्त 1950 : जब आज़ादी के जश्न को निगल गया असम-तिब्बत का 8.6 तीव्रता वाला भूकंप

  • Post By Admin on Aug 14 2025
15 अगस्त 1950 : जब आज़ादी के जश्न को निगल गया असम-तिब्बत का 8.6 तीव्रता वाला भूकंप

नई दिल्ली : 15 अगस्त 1950—देश जब स्वतंत्रता की तीसरी वर्षगांठ मना रहा था, तब धरती ने इतिहास के सबसे भयावह झटकों में से एक महसूस किया। असम और तिब्बत की धरती पर 8.6 तीव्रता का भूकंप आया, जिसने पलक झपकते हजारों जिंदगियां निगल लीं और पूरे क्षेत्र को मलबे में बदल दिया। यह न सिर्फ आज़ाद भारत का पहला बड़ा भूकंप था, बल्कि 20वीं सदी के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक के तौर पर दर्ज हुआ।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, इस भीषण आपदा का उपकेंद्र तिब्बत के रीमा क्षेत्र और असम की मिश्मी पहाड़ियों में था। मिश्मी और अबोरी पहाड़ियों में 70 से अधिक गांव पूरी तरह तबाह हो गए। असम में करीब 1,500 और तिब्बत में 4,800 से अधिक लोगों की आधिकारिक मौतें दर्ज हुईं, जबकि कुछ अनुमानों में यह आंकड़ा 20 से 30 हजार तक बताया गया।

भूकंप के झटके इतने तीव्र थे कि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का प्रवाह बदल गया, जिससे भयंकर बाढ़ ने तबाही को और बढ़ा दिया। पहाड़ों में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ, चट्टानें टूटकर गिरीं और जंगलों का भूगोल बदल गया। इस आपदा ने स्पष्ट कर दिया कि हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय रूप से कितना संवेदनशील है।

भारत के भूकंपीय मानचित्र के मुताबिक, देश का 59 प्रतिशत हिस्सा मध्यम से गंभीर भूकंप के खतरे वाले क्षेत्र में आता है, जहां 7 या उससे अधिक तीव्रता के झटके संभव हैं। 1897 (शिलांग, 8.7), 1905 (कांगड़ा, 8.0), 1934 (बिहार-नेपाल, 8.3) और 1950 (असम-तिब्बत, 8.6) जैसे चार बड़े भूकंप देश की त्रासदीपूर्ण विरासत का हिस्सा हैं।

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि हिमालयी पट्टी में 8.0 या उससे अधिक तीव्रता का एक और भूकंप कभी भी आ सकता है—और 15 अगस्त 1950 की भयावह यादें इस चेतावनी को और गंभीर बना देती हैं।