दिव्यांगों का मजाक नहीं होगा सहन, सुप्रीम कोर्ट ने कॉमेडियन्स को सार्वजनिक माफी का दिया आदेश

  • Post By Admin on Aug 25 2025
दिव्यांगों का मजाक नहीं होगा सहन, सुप्रीम कोर्ट ने कॉमेडियन्स को सार्वजनिक माफी का दिया आदेश

नई दिल्ली : दिव्यांगजनों की भावनाओं और अधिकारों से जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि किसी भी हालत में दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक नहीं उड़ाया जा सकता। अदालत ने स्टैंडअप कॉमेडियन्स समय रैना, विपुल गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने यूट्यूब चैनल पर सार्वजनिक माफी मांगें।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि “कॉमेडी के नाम पर किसी की पीड़ा को हंसी का पात्र बनाना न तो सामाजिक रूप से स्वीकार्य है और न ही कानूनी रूप से।” अदालत ने यह भी कहा कि मांगी जाने वाली माफी महज औपचारिक न होकर सच्चे मन से होनी चाहिए ताकि समाज में एक सकारात्मक संदेश जा सके।

इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी कॉमेडियन्स अदालत में मौजूद रहे, जबकि सोनाली ठक्कर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी पेशी दर्ज कराई। अदालत ने यह भी नाराजगी जताई कि शिकायत दर्ज होने के बाद इन कलाकारों ने तुरंत खेद प्रकट करने के बजाय पहले अपना बचाव करने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया बताते हुए कहा कि किसी की भावनाएं आहत होने पर सबसे पहला कदम ईमानदारी से माफी मांगना होना चाहिए।

मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए ठोस और स्पष्ट गाइडलाइंस तैयार करे। कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में कंटेंट क्रिएटर्स, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, सरकारी एजेंसियों और आम नागरिकों की राय शामिल की जाए, ताकि एक मजबूत और दूरगामी नीति बनाई जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को भी सख्त हिदायत दी कि वे एक हलफनामा दाखिल करें, जिसमें स्पष्ट रूप से बताया जाए कि वे अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दिव्यांगजनों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देने में कैसे करेंगे।

गौरतलब है कि हाल ही में समय रैना समेत अन्य कॉमेडियन्स के कुछ वीडियो सामने आए थे, जिनमें उन्होंने स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी से पीड़ितों और नेत्रहीन व्यक्तियों पर टिप्पणियां की थीं। इस पर आपत्ति जताते हुए एक फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि ऐसे वीडियो दिव्यांगजनों की गरिमा के खिलाफ हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल सोशल मीडिया कंटेंट निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है, बल्कि पूरे समाज के लिए भी यह संदेश है कि हंसी-मजाक की आड़ में किसी की पीड़ा और कमजोरी को निशाना बनाना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।