वित्तीय समावेशन में भारत की बड़ी छलांग : जन धन से यूपीआई तक, करोड़ों को मिला मुख्यधारा में स्थान

  • Post By Admin on Aug 11 2025
वित्तीय समावेशन में भारत की बड़ी छलांग : जन धन से यूपीआई तक, करोड़ों को मिला मुख्यधारा में स्थान

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) से लेकर मुद्रा लोन और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान तक, केंद्र सरकार की वित्तीय समावेशन पहलों ने देश की ग्रोथ स्टोरी को महानगरों की सीमाओं से बाहर निकालकर गांव-गांव तक पहुंचा दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आर्थिक विकास केवल कुछ शहरों या कुछ नागरिकों तक सीमित नहीं रह सकता। विकास सर्वांगीण और सर्वसमावेशी होना चाहिए।” यही सोच नीतियों, तकनीक और सामुदायिक पहुंच के अभूतपूर्व नेटवर्क के जरिए जमीन पर उतर रही है।

2021 में शुरू किया गया वित्तीय समावेशन सूचकांक बैंकिंग, बीमा, पेंशन, निवेश और डाक सेवाओं के 97 संकेतकों पर आधारित है। इसके तीन प्रमुख पहलू—पहुंच (Access), उपयोग (Usage) और गुणवत्ता (Quality)—न केवल वित्तीय सेवाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर को मापते हैं, बल्कि यह भी देखते हैं कि लोग इन्हें कितना अपनाते और समझते हैं।

जन धन योजना के तहत अब तक 55.98 करोड़ लोग औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से जुड़े हैं, जिनमें आधे से ज्यादा महिलाएं हैं। 13.55 लाख बैंक मित्र देश के दूरस्थ इलाकों तक सेवाएं पहुंचा रहे हैं। अटल पेंशन योजना में 48% ग्राहक महिलाएं हैं।

डिजिटल लेनदेन में भारत ने वैश्विक स्तर पर भी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यूपीआई अब देश में सभी डिजिटल ट्रांजैक्शंस का 85% हिस्सा संभाल रहा है और ग्लोबल रियल-टाइम डिजिटल भुगतानों में भी लगभग आधी हिस्सेदारी रखता है। 2 अगस्त को पहली बार दैनिक यूपीआई लेनदेन 707 मिलियन के आंकड़े को पार कर गए, जो पिछले दो वर्षों में दोगुना है।

हालांकि, मोबाइल बैंकिंग के तेजी से विस्तार ने ग्रामीण परिवारों को डिजिटल फ्रॉड के जोखिम के प्रति भी संवेदनशील बनाया है। इसके चलते वित्तीय साक्षरता अभियानों में अब धोखाधड़ी रोकथाम और शिकायत निवारण पर विशेष फोकस किया जा रहा है।

मुद्रा और स्टैंड अप इंडिया जैसी ऋण योजनाएं खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को सशक्त बना रही हैं। महिला समृद्धि योजना महिलाओं को क्राफ्ट स्किल में प्रशिक्षित कर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लोन उपलब्ध कराती है। किसान क्रेडिट कार्ड 7.7 करोड़ से अधिक किसानों को सस्ती ऋण सुविधा देकर साहूकारों पर निर्भरता घटा रहा है और कृषि उत्पादकता बढ़ा रहा है।

विश्व बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्स 2025 के मुताबिक, भारत में खाता स्वामित्व 2011 के 35% से बढ़कर अब 89% पर पहुंच गया है—यह वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव है।