शनिवार का भीख कारोबार: धर्म, दान और अपराध का काला जाल
- Post By Admin on Dec 07 2024

शनिवार का दिन, जो आध्यात्म और शनि के प्रभाव को शांत करने के लिए जाना जाता है अब धीरे-धीरे भीख कारोबार का एक बड़ा मंच बन चुका है। दान देने की पवित्र भावना और धार्मिक आस्था के नाम पर हर शनिवार को चौराहों, मंदिरों और गलियों में भिखारियों की भीड़ इकट्ठा होती है। लेकिन क्या यह दान सच में किसी जरूरतमंद तक पहुंच रहा है या यह एक संगठित अपराध का हिस्सा बन चुका है?
शनिवार को लोग "पुण्य कमाने" के उद्देश्य से भिखारियों को पैसे, अनाज और कपड़े देते हैं। पर यह दान समाज में मदद पहुंचाने के बजाय भीख मांगने को एक पेशा बना रहा है। आज भिखारी कोई मजबूर नहीं बल्कि कई बार प्रशिक्षित और संगठित गिरोह के सदस्य होते हैं।
छोटे बच्चे, विकलांग लोग और बुजुर्गों को जबरदस्ती भीख मांगने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हर चौराहे पर बैठे भिखारियों का हिस्सा किसी न किसी बड़े गिरोह को जाता है। लोगों की भावनाओं को निशाना बनाकर यह कारोबार लगातार बढ़ रहा है।
भीख ने समाज में एक नई समस्या को जन्म दिया है, कामचोरी। जो व्यक्ति भीख मांगकर आसानी से पैसे कमा सकता है वह मेहनत क्यों करेगा? यह संस्कृति न केवल व्यक्तिगत विकास को रोकती है बल्कि पूरे समाज की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
धार्मिक आस्थाओं को अपराध का औजार बना दिया गया है। लोग सोचते हैं कि भीख देने से शनि के दोष कम हो जाएंगे। भिखारी यह जानते हैं और इसी आस्था का फायदा उठाते हैं। असली जरूरतमंद अक्सर इन भीड़ में कहीं खो जाते हैं।
भिखारियों की समस्या के समाधान के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता है। सोच-समझकर दान करने के साथ ही जरूरतमंदों की मदद के लिए भरोसेमंद संस्थाओं को सहयोग देना चाहिए। सरकार और समाज को मिलकर पुनर्वास की पहल करनी होगी ताकि उन्हें रोजगार और प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया जा सके। साथ ही, भीख मांगने को बढ़ावा देने वाले गिरोहों पर सख्त कानून लागू किए जाने चाहिए और समाज को इस मुद्दे पर जागरूक करना आवश्यक है।
शनिवार का दान एक पवित्र परंपरा है लेकिन इसे कुरीति और अपराध का जरिया बनने से रोकना हम सबकी जिम्मेदारी है। दान को सही दिशा में मोड़कर ही हम एक बेहतर और स्वावलंबी समाज बना सकते हैं। पुण्य कमाने की लालसा को जागरूकता और जिम्मेदारी से जोड़ने का वक्त आ गया है।