एक राष्ट्र एक चुनाव को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दी मंजूरी
- Post By Admin on Sep 20 2024
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नई दिल्ली : 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर रामनाथ कोविंद पैनल की सिफारिशों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मंजूरी दे दी। इसका मकसद लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा और स्थानीय निकायों का चुनाव कराना है। लेकिन ये इतना आसान नहीं है। इसे लागू करने के लिए सरकार को एक नहीं, बल्कि दो-दो संविधान संशोधन विधेयकों को पास कराना होगाI जिसके तहत संविधान में कई बदलाव करने पड़ेंगेI
कोविंद कमिटी की रिपोर्ट को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद आगे क्या होगा ?
कोविंद पैनल की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट मीटिंग के बाद बताया कि यह समूह रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को लागू करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव दो चरणों में लागू किए जाएंगेI
1. पहला लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए
2. दूसरा आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों के लिए।
लागू करने का प्लान कैसे है?
सबसे पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसके बाद दूसरे चरण में पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्थानीय निकाय चुनाव आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराए जाएंगे। सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होगी। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा। केंद्र पूरे देश में इस बारे में विस्तृत चर्चा शुरू करेगा। पैनल की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा।
वैष्णव ने कहा कि बड़ी संख्या में पार्टियों ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का समर्थन किया है और केंद्र अगले कुछ महीनों में इस पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि कोविंद पैनल की सिफारिशों पर पूरे भारत में तमाम मंचों पर चर्चा की जाएगी।
क्या-क्या है कोविंद पैनल की सिफारिशों में ?
कोविंद पैनल के मुताबिक जब संसद का सत्र होगा, तो इस कदम को अधिसूचित करने के लिए एक तारीख तय की जानी चाहिए। उस तिथि के बाद होने वाले राज्य चुनावों से बनने वाली सभी विधानसभाएं केवल 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक की अवधि के लिए ही होंगी। इसका मतलब है कि बदलाव के लिए लोकसभा चुनाव के बाद एक तारीख तय की जाएगी। उस तारीख के बाद जिन राज्यों में चुनाव होंगे, उनका कार्यकाल आम चुनावों के साथ तालमेल बिठाने के लिए कम कर दिया जाएगा।
इसका मतलब है कि 2024 और 2028 के बीच बनने वाली राज्य सरकारों का कार्यकाल 2029 के लोकसभा चुनावों तक ही होगा। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अपने आप एक साथ होंगे।
उदाहरण के तौर पर, जैसे बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं तो 'ONOE' लागू करने के लिए उसकी विधानसभा का कार्यकाल 2029 तक रहेगा यानी सिर्फ 4 साल का। इसी तरह 2027 में यूपी विधानसभा के चुनाव होने हैं, तो उसके बाद बनने वाली सरकार सिर्फ 2 साल रहेगी। ऐसे ही अन्य राज्यों के मामले में भी होगा। फिर 2029 में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा का चुनाव भी मुमकिन हो सकेगाI
रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि अगर हंग असेंबली या हंग पार्लियामेंट की स्थिति हो, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी ही किसी अन्य स्थिति में नया सदन बनाने के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं - चाहे वह लोकसभा हो या राज्य विधानसभाएं।
इस तरह बनी नई सरकार का कार्यकाल भी लोकसभा के पिछले पूर्ण कार्यकाल की शेष अवधि के लिए ही होगा और इस अवधि की समाप्ति सदन के विघटन के रूप में काम करेगी। इसे अभी जो उपचुनाव की प्रक्रिया होती है, उससे और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। किसी लोकसभा, विधानसभा या राज्यसभा की सीट के रिक्त हो जाने की स्थिति में उपचुनाव कराए जाते हैं। लेकिन उपचुनाव में जीतकर आए जनप्रतिनिधि का कार्यकाल लोकसभा या विधानसभा के बाकी बचे कार्यकाल जितना ही होता है। राज्यसभा की स्थिति में भी 6 साल का कार्यकाल पूरा होने में जितना समय बचा होता है, उतने समय के लिए ही उपचुनाव से जीते सांसद का कार्यकाल रहता है। बिल्कुल इसी तरह त्रिशंकु संसद या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में चुनाव तो होंगे लेकिन जो सरकार बनेगी वह अगले आम चुनाव तक ही रहेगी। यानी अगर 2 साल बाद ही मध्यावधि चुनाव की नौबत आ जाए तो अगली सरकार का अधिकतम कार्यकाल सिर्फ 3 साल होगा, न कि 5 साल
वैष्णव ने आगे कहा कि पैनल ने एक साथ चुनाव के लिए व्यापक समर्थन पाया, जिसके बाद कैबिनेट ने प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा कि 80% से अधिक उत्तरदाताओं ने इसका समर्थन किया है और विपक्षी दलों को समर्थन देने के लिए अंदर से दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं कोविंद पैनल की सिफारिशों को माने तो 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कम से कम 18 संवैधानिक संशोधनों की जरूरत होगी। इनमें से ज्यादातर संविधान संशोधनों के लिए राज्य विधानसभाओं के समर्थन की जरूरत नहीं होगी। लेकिन, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगीI जिन्हें संसद द्वारा पारित करना होगा।
ONOE के दो अलग-अलग चरणों के लिए, दो संवैधानिक संशोधन विधेयक पास करने होंगे। इनके तहत नए प्रावधानों को शामिल करने और अन्य में संशोधन सहित कुल 15 संशोधन किए जाएंगे।
पहला संविधान संशोधन विधेयक
कोविंद पैनल की सिफारिश के अनुसार, पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद - 82ए डालेगा। अनुच्छेद 82ए उस प्रक्रिया को स्थापित करेगाI जिसके जरिए देश एक साथ चुनाव की ओर बढ़ेगा।
दूसरा संविधान संशोधन विधेयक
दूसरा विधेयक संविधान में अनुच्छेद 324ए पेश करेगा। यह केंद्र सरकार को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के समानांतर चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार देगा।
क्या राज्यों की विधानसभा से भी मंजूरी की जरूरत होगी?
दो संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने के बाद, संसद अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन प्रक्रियाओं का पालन करेगी। चूंकि केवल संसद को ही लोकसभा और विधानसभा से संबंधित चुनाव कानूनों को बनाने का अधिकार है, इसलिए पहले संशोधन विधेयक को राज्यों से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। लेकिन, स्थानीय निकायों में चुनाव से जुड़े मामले राज्य के अधीन हैं और इसके लिए दूसरे संशोधन विधेयक को देश के कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना जरूरी होगा।
राष्ट्रपति की सहमति और कार्यान्वयन
दूसरे संविधान संशोधन विधेयक को राज्यों से मंजूरी के बाद, और दोनों सदनों में निर्धारित बहुमत से पारित होने के बाद, विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए जाएंगे। एक बार जब वह विधेयकों पर हस्ताक्षर कर देती हैं, तो वे कानून बन जाएंगे। इसके बाद, कार्यान्वयन समूह इन अधिनियमों के प्रावधानों के आधार पर इन बदलावों को अंजाम देगा।
एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र के संबंध में प्रस्तावित कुछ बदलावों के लिए कम से कम आधे राज्यों से मंजूरी की जरूरत होगी। संविधान के अनुच्छेद 325 में एक नया उप-खंड सुझाएगा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदान के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए।